सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

सोयाबीन  की खेती : उत्तराखण्ड में सोयाबीन  खरीफ की मुख्य तिलहनी फसल है। सोयाबीन में 20 प्रतिशत तेल व 40 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है। सोयाबीन से दूध, दही, पनीर, आटा, नमकीन एवं कई अन्य प्रकार के व्यजंन भी बनाये जाते  है। सोयाबीन की खेती मैदानी क्षेत्रों में अभी हाल में ही कुछ वर्षो से शुरू हुई हैI इसमे 40 से 50 प्रतिशत प्रोटीन तथा 20 से 22 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती हैI इसके प्रयोग से शरीर को प्रचुर मात्रा में प्रोटीन मिलती हैI प्रदेश के बुंदेलखंड के सभी जनपदों एवम बदाऊ, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, मेरठ आदि जिलो में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती हैI

सोयाबीन की खेती

सोयाबीन की खेती     Source

सोयाबीन की कौन-कौन सी उन्नतशील प्रजातियाँ पाई जाती है?

इसमे बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती है जैसे की- पी. के. 772, 262, 416, पी. एस. 564, 1024, 1042, जे.एस. 71-5, 93-5, 72-44, 75-46, जे.एस.2, 235, पूसा16, 20 ऍम ए यू एस46 एवं 37 प्रजाति है।

बीज दर

एक हैक्टर की बुवाई हेतु 80-85 प्रतिशत जमाव वाला 75 कि.ग्रा1.5 कि.ग्रा. या प्रति नाली बीज पर्याप्त हाते है।

बीज उपचार

बीज जनित रोगों से बचाव हेतु सोयाबीन के बीज को 2 ग्राम थीरम 75 डब्ल्यूपी+ 1 ग्राम काबेनडजिम 50 डब्ल्यू पी. पी. (2:1) प्रति कि. ग्रा बीज की दर से मिलाकर उपचारित करना चाहिए।

राइजोबियम से बीज उपचार

सोयाबीन  की खेती में बीजों को बुवाई से पूर्व राइजोबियम नामक जैव उवर्रक से उपचारित किया जाना लाभदायक हाते है। औसतन एक कि.ग्रा. बीज के लिए 15-20 ग्राम जैव उर्वरक की आवश्यकता होती है एक एकड़ (20 नाली)  में लगने वाले बीजों  के लिए 400-500 ग्राम जैव उर्वरक की मात्रा टीकाकरण हेतु प्रर्याप्त हाते है। एक एकड़ भूमि  के लिए आवश्यक 30 किग्रा. बीज  के उपचार हेतु 200-300 मि.ली. पानी  में 25-30 ग्राम गुड़ घोलकर एक बार उबाल लें। इस घोल के ठण्डा होने के उपरान्त इसमें 400-500 ग्राम जैव उर्वरक मिला लें। छाया में बीजों को पक्के फर्श या पोलीथीन शीट पर रखकर ढेर बना लें। इन बीजों पर धीरे-धीरे जैव उर्वरक का घोल डालते हुए हाथों से तब तक मिलाते रहे जब तक सारे बीजों पर एक समान जैव उर्वरक की परत न चढ़ जाये। उपचारित बीजों को छाया में 15-20 मिनट सुखाकर तुरन्त बुवाई कर दे। द्रव (लिक्विड) राइजोबियम के प्रयोग हेतु  100 मि.ली. की मात्रा एक एकड़ में लगने वाले 30 कि.ग्रा. बीज के उपचार हेतु प्रर्याप्त है। इस का प्रयोग भी 100 मि.ली. पानी में मिलाकर उपरोक्त विधि द्वारा बीजों का टीकाकरण किया जाता हैं।

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बुवाई का समय

पर्वतीय क्षेत्रो मे बुवाई का उपयुक्त समय मई के अन्तिम सप्ताह से जून के दूसरे सप्ताह तक है। भावर तथा तराई में बुवाई का समय जून अन्तिम सप्ताह से जुलाई प्रथम सप्ताह तक  है। देर से बुवाई  करने पर उपज कम मिलती है।

सोयाबीन की फसल उगाने के लिए अपने खेतों की तैयारी

सोयाबीन की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी भूमि सर्वोत्तम  है। सामान्यतः मैदानी एवं पर्वतीय क्षेत्रों की सभी प्रकार की मिटटी  में इसकी खेती की जा सकती है। 6.5-7.0 पी.एच. मान वाली मृदायें सोयाबीन की खेती के लिए सर्वोत्तम होती  है। यदि मिटटी अधिक अम्लीय हो तो मृदा परीक्षण के आधार पर छूने के प्रयोग के उपरान्त पाटा लगाकर खेत को समतल कर ले जिसमें सिचांई एवं जल निकास की उचित व्यवस्था हो सके।

सोयाबीन की बुवाई का सही समय

बुवाई हल के पीछे 3-4 से. मी . की गहराई पर लाइनों में करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 से. मी. रखनी चाहिए। भावर में लाइन से लाइन की दूरी 60 से. मी . रखनी चाहिए। जमने के पश्चात 15 से 20 दिन के अतंर अधिक धने पौधों को निकाल करके पौधे से पौधे की दूरी 5-7 से. मी. कर देनी चाहिए।

सोयाबीन  की खेती में उर्वरकों का प्रयोग

सोयाबीन  की खेती मे  भूमि की तैयारी के समय 10 टन सड़ी गोबर की खाद डालें इससे जडों में ग्रंथियां अच्छी बनती है। इसके साथ सामान्यतः उन्नतशील प्रजातियों सें अधिक पैदावार लेने के लिए 20 कि.ग्रा. नत्रजन 60 किग्रा फास्फोरस तथा 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा अंतिम जुताई में हल के पीछे कूड़ा में डाले। बोने के 30-35 दिन बाद सोयाबीन के एक या दो पौधे उखाड़ कर देख लिया जाय कि जड़ो में ग्रन्थियॉ बनी है या नहीं यदि ग्रन्थियॉ नहीं बनी हो तो 30 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टर (600 ग्राम/नाली) की दर से फूल  आने से पूर्व प्रयोग किया जाए। जिन खेतों में जस्ते की कमी हो वहां पर 25.0 किग्रा. जस्ता (जिकं सल्फेट 22-24 प्रतिशत)/है. डालना चाहिए। सोयाबीन की अधिक उपज के लिए५ 20-30 कि.ग्रा. सल्फर/हैक्टर डालना चाहिए।

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सोयाबीन की निराई-गुडाई और उस पर खरपतवारों का नियंत्रण

बुवाई के 20-25 दिन बाद निराई कर देनी चाहिए। इसके 20-25 दिन बाद खरपतवार होने पर दूसरी निराई कर देनी चाहिए। खरपतवार नाशक रसायन एलाक्लोर 50 ई. सी . 4 ली. प्रति हैक्टर (40 मि.ली./नाली) की दर से 500-600 लीटर पानी (10-12 लीटर प्रति नाली) मे घोल बना कर बुवाई से 48 घण्टे  के भीतर छिडक़ाव करे। यदि एलाक्लोर उपलब्ध न हो तो खरपतवारनाशक रसायन फ्लूकलोरोलीन 45 ई. सी. 2.0 ली. प्रति हकैटर घोल बनाकर बुवाई से पहले खेतो में छिडक़ कर 3-4 से. मी. उपरी सतह में मिलाने के बाद बुवाई करें क्योंकि यह रसायन उपरी सतह में रहने पर उडऩशील रहता है। यदि आवश्यक हो तो बाद में एक निराई और कर देनी चाहिए। यदि खड़ी फसल में खरपतवार नियत्रंण करना हो तो क्युजालोफास ईथाईल 5 ई. सी. ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करने से  खरपतवार नियत्रंण हो जाता है।

सिंचाई एवं जल निकास

वर्षा न हो तो फूल  एवं फली बनते समय सिचांई अवश्य करें।

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सोयाबीन की फसल में कौन-कौन से कीट लगने की संभावना होती है

पत्ती काटने वाला कमला कीट

यह कीट बालदार तथा गहरे पीले रगं का होता है। इसके शरीर पर पीले या भूरे रोयें  होतें है। इसकी राकेथाम के लिए लमेडा साइहेलोथिन 5 ई.सी./250 मि.ली./हैक्टर अथवा इमामिक्टन बेन्जोएट 5 एस.जी/250 गा्रम/हैक्टर अथवा ट्राइजोफॉस 40 इ.सी./750 मि.ली./हैक्टर को 700-800 लीटर पानी/हैक्टर की दर से छिडक़ाव करें।

हरी अर्ध कुण्डलक इल्ली

यह कीट भी सोयाबीन का प्रमुख कीट है इसकी राकेथाम के लिए क्लोरान्ट्रानिलिप्रोले 18.5 एस.सी./150 मि.ली/हैक्टर अथवा इन्डोक्साकार्ब 15.8 ईत्र.सी./333 मि.ली./हैक्टर की दर से छिडक़ाव करें।

तम्बाकू की इल्ली

यह सोयाबीन की पत्तियों को क्षति पहुंचाने वाला हानिकारक कीट है। इसकी मादा समूह में अण्डे देती है। इसकी रोकथाम के लिए इन्डोक्साकार्ब 15.8 एस. सी/ 333 मि.ली./हैक्टर अथवा क्लोरान्ट्रानिलिप्रोले 18.5 एस.सी./150 मि.ली./हैक्टर अथवा इमामिक्टन बेनजोएट 5 एस.जी/250 ग्राम/हैक्टर की दर से छिडक़ाव करें।

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तना छेदक मक्खी (स्टेम मक्खी)

यह मक्खी धात्विक काले रगं की होती है। जो 70-80 प्रतिशत पौधों को ग्रसित करती है। इसकी राकेथाम के लिए क्लारान्ट्रानिलिप्रोले  185 एस.सी./150 मि.ली/हैक्टर अथवा इन्डोक्साकार्ब 15.8 ई. सी./333 मिली./हैक्टर अथवा फोरेट 10 जी./15 कि.ग्रा/है. की दर से छिडक़ाव करें। सफेद मक्खीः- सफदे मक्खी का वयस्क छोटे आकार का होता है। यह मक्खी अण्डे पत्तियों की निचली सतह पर देती है तथा पीला विषाणु रोग फैलाती है | इसके नियत्रंण हेतु कार्बोफ्यरांन 3 जी /50 कि.ग्रा. /हैक्टर की दर से खेत मे मिलाए।

सोयाबीन की फसल में रोगों पर नियंत्रण

सोयाबीन की फसल में अकुंरण की बहुत बड़ी समस्या है जो कि बीज एवं पौध गलन रोग से होती है। इसके लिए बीज को 2 ग्राम थाइरम एवं 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम के मिश्रण से प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से  शोधित करके बोना चाहिए। खडी फसल में पर्णचित्ती, जीवाणु, स्फोट, श्यामवर्ण, पीला मोजेक एवं राइजोक्टोनिया अगंमारी आदि बीमारियॉ भी दिखाई देती  है।

फसल पर रोग के लक्षण दिखाई पड़ने पर कार्बेन्डाजिम नामक दवा 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर पहना छिडक़ाव बुवाई के 60 दिन के बाद करें | दूसरा व तीसरा छिडक़ाव 15 दिन के अतंराल में करें | जीवाणुस्फोट, पीला चित्तवर्ण रोग से बचाव हेतु रोग अवरोधी प्रजातियाँ लगायें। फसल में रोग वाहक, कीड़ों की सख्ंया कम करने के लिए मानाक्रेटाफेस 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव लक्षण दिखाई दने के बाद तथा 10 दिन के अतंराल पर दूसरा एवं तीसरा छिडक़ाव करें | पानी की मात्रा प्रति हैक्टर 700-800 लीटर रखें। जीवाणु जनित रोग में पत्तियों पर आलपिन के सिर के बराबर 1 मि.मी. के पीले धब्बे बनते हैं जो बाद में भूरे पड़ जाते हैं। इसकी राकेथाम के लिए कापर आक्सीक्लारेइड 50 डब्ल्यू पी 1.5 कि.ग्रा./हैक्टर स्ट्रेप्टोसाइक्लिन का 150 ग्राम/हैक्टर को 700 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर प्रथम लक्षण दिखाई देने पर छिडक़ाव करना चाहिए। श्यामव्रण रोग की राकेथाम के लिए मैनकोजेब या जीनबे-75 डब्ल्यू पर 2.5 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से लक्षण दिखाई देेते समय 10 दिन के अतंराल पर छिडक़ाव करें |

सोयाबीन की खेती में लगभग प्रति हेक्टेयर कितनी उपज प्राप्त होने की संभावना होती है

20-25 कुन्तल/हैक्टर (40-50 कि.ग्रा./नाली) प्राप्त की जा सकती है।

10 thoughts on “सोयाबीन की खेती (Soybean Cultivation) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

  1. kailash meena says:

    nice

  2. Sohan Choudhary says:

    Super salusan

  3. Shriram mahajan says:

    Very nice

  4. Rahul Choudhary says:

    Soyabean me DAP kitna dalna chahiye our yuriya kitna

    1. agriavenue says:

      लेख क ध्यान से पढे सभी जानकारी मिलेगी |

  5. Nirmal says:

    Jordar nuske

  6. Kailash Madhavrao Kagne says:

    Very nice

  7. RAJARAM says:

    Very nice

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