मटर की खेती (Pea Farming) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

मटर की खेतीमटर रबी की एक प्रमुख दलहनी फसल है, विश्व में इसकी खेती भारत में सर्वाधिक होती है, मुख्य रूप से दाल एवं सब्जी में प्रयोग की जाती है, इसमे प्रोटीन और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। भूसंरक्षण की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण फसल है।

मटर की खेती Pea Farming

मटर की खेती Pea Farming

मटर की खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ हैं?

मटर की बुवाई के लिए संतुत प्रजातियाँ – जैसे की रचना, शिखा, मालवीय मटर-15, पन्त मटर-5, प्रकाश, जय, सपना, आदर्श, पन्त पी-42, तथा अमन प्रजातियाँ जिनमे किसी एक प्रजाति का चुनाव करके खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।

मटर की खेती के लिए भूमि

दोमट तथा हल्की भूमि अधिक उपयुक्त है।

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मटर के बीज की बुवाई का सही समय

तराई व भावर एवं मैदानी क्षेत्र : अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक।

पर्वतीय क्षेत्र :- अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक।

मटर की खेती के लिए बीज की प्रति हैक्टर मात्रा

मटर की बुवाई के लिए बीज की मात्रा लम्बे पौधों की प्रजा

बीज की मात्रा :  सामान्य प्रजातियाँ :- 80-100 कि.ग्रा./है

बौनी प्रजातियाँ125 कि.ग्रा./है

बुवाई की विधि

सामान्य प्रजातियाँः हल के पीछे 30 से.मी. की दूरी पर।

बौनी प्रजातियाँः   हल के पीछे 20-25 से.मी. की दूरी पर।

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बीज शोधन एवं बीजोपचार :

उपयुक्त राइजाेबियम कल्चर से चने के भॉति बीजापेचार कर बुवाई करें।

मटर की खेती में खाद एवं उर्वरक का प्रयोग

मृदा परीक्षण के अनुसार अथवा सभी प्रजातिय़ों के लिए 20 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस, 40 कि.ग्रा. पोटाश, 30 कि.ग्रा. गन्धक तथा 60 कुन्तल गोबर की खाद प्रति हैक्टर बुवाई से पर्वू मिटटी में मिला दें।

मटर की खेती में  निराई-गुड़ाई खरपतवार का नियंत्रण

मटर की फसल मे बुवाई से 25-30 एवं 45-50 दिनो बाद खुरपी द्वारा खरपतवारो को निकाल देना चाहिए। खरपतवारनाशी रसायन जैसे पडेमिथिलीन 30 ई.सीकी 100 लीटर मात्रा पानी मे घालेकर बुवाई के तुरन्त बाद प्रति हैक्टर छिडक़ाव से खरपतवारो का प्रयागे कम होता है।

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मटर की फसल में सिचाई का सही समय

यदि जाडो मे वर्षा न हो तो एक चने की सिचांई फूल आने से पहले तथा दसूरी फली बनते समय करना लाभप्रद हाते है। सिचांई हल्की होनी चाहिए।

फसल सुरक्षा

प्रमुख कीट कौन कौन से है, जिससे मटर फसल में नुकसान हो सकता है उसका नियंत्रण कैसे करें?

1. तनाछेदक कीटः- अक्टूबर में  बुवाई न करें। इस कीट की रोकथाम के लिए इमीडाक्लाेप्रिड 3 मि.ली. या थायोमेथोक्जाम 2 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बुवाई करें।

2. पत्ती में सुरंग बनाने वाले कीटः- नीम सीड करनेल एक्सट्रैक्ट 5 प्रतिशत अथवा डायमेथोएट 30 ई.सी. की प्रति हैक्टर 1.00 लीटर मात्रा 600-700 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करें |

3. फलीछेदक कीटः- प्रोफेनोफास 1.5 लीटर प्रति हैक्टर 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल के ऊपर छिडक़ाव करें |

मटर की फसल मे लगने वाले रोग और उसका नियंत्रण किस तरह से करें?

बीज शोधन:- बीज जनित रोग से बचाव के लिए थाइरम 2.5 ग्राम या जिकं मैगंनीज कार्बोमेट 2 ग्राम अथवा कार्बेन्डाजिम या बेनोमिल 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज बोने से पर्वू शोधन कर लेना चाहिए।

रसायनिक विधि से बीज शोधन के बाद राइजाेबियम कल्चर द्वारा भी बीज का उपचार करना चाहिए।

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खड़ी फसल पर रोग नियंत्रण

1. बुकनी (पाउडरी मिल्डयू) रोगः- पंत मटर 13, पंत मटर 14, पंत मटर 42, पंत मटर 74 आदि अवरोधी किस्मों का प्रयोग किया जाये | 3 कि.ग्रा. घुलनशील गंधक या 600 मि.ली. डाइनोकेप 48 ई.सी. या 500 ग्राम कार्बोन्डाजिम या 500 मि.ली. ट्राइडोमार्फ 80 ई.सी. दवा को 600-800 लीटर पानी में घोलकर लक्षण के आते ही 10-12 दिन के अतंर पर दो बार छिडक़ाव करें |

2. रतुआ रोगः- 2.0 कि.ग्रा. मैंकोजेब अथवा 500 मि.ली. प्रोपेकोनाजोल 750 मि.ली. थयाेफिनेट मिथाइल 70 डबलू.पी. को 600-800 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडक़ाव करें |

3. उकठा रोगः- दीर्घकालीन फसल चक्र अपनायें तथा चने की भॉति बीज शोधन करके बुवाई करें |

4. तुलासिता रोगः- इसकी राकेथाम रतुआ रोग की भॉति करें |

5. सफेद विगलनः- यह रोग पर्वतीय क्षेत्र में व्यापक रुप से फैल रहा है। पूरा पौधा सफेद रगं का होकर मर जाता है। इसके उपचार के लिए फसल की बुवाई नवम्बर के प्रथम सप्ताह के बाद करें | दीर्घकालीन फसल चक्र अपनायें | जनवरी माह में जब लक्षण दिखाई दे तब कार्बेन्डाजिम का 0.05 प्रतिशत या घुलनशील गन्धक का 0.3 प्रतिशत घोल बनाकर 15 दिन के अतंराल पर आवश्यकतानुसार छिडक़ाव करें |

6. झुलसा रोगः- 2.5 ग्राम थाइरम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से बीज को उपचारित करना चाहिए और बाद में रोग का लक्षण दिखाई देते ही मेन्कोजेब का 0.2 प्रतिशत घोल बनाकर छिडक़ाव करें |

7. बीज विगलनः- बीज बोने से पर्वू थाइरम 2.5 ग्राम अथवा कैप्टान 3.0 ग्राम प्रति किलाग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें |

मटर की फसल की कटाई एवं मड़ाई का सही समय कटाई

फसल पूर्ण पकने पर कटाई करके मड़ाई कर लें तथा दानों को अच्छी तरह सुखाकर भण्डारण करें | उपरोक्त प्रकार से खेती करके मटर से 20-25 कुन्तल प्रति हैक्टर उपज प्राप्त की जा सकती है।

One thought on “मटर की खेती (Pea Farming) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

  1. Ashok Tyagi says:

    Good knowledge for us abt pee Agriculture thnx

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