सेब (Apple) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

सेब के डेलिशस वर्ग की किस्मो की खेती 2400 मी. तक या इससे अधिक ऊँचाई तथा उत्तरी ढलान पर 3400 मी. तक करना लाभकारी पाया गया है। इस ऊँचाई तथा इससे कम ऊँचाई 1500 मी. ऊँचाई पर स्पर किस्में उगाई जा सकती हैं।

सेब

सेब की उन्नत किस्में

शीघ्र तैयार होने वाली– अर्ली सनवरी, फैनी, बिनोनी , चाबै टिया प्रिसं जे , चाबै टिया अनुपम, टिडमनै अर्ली बरसेस्टर, वैन्स डेलीशस

मध्य अवधि – रेड डेलीशस, रायल डेलीशस, गोल्डेन डेलीशस, रिच-ए-रेड, कोर्ट लैन्ड, रेड गोल्ड, मैकिनटाँस रेडस्पर, गोल्ड स्पर, स्कारलेटगाला, आरगनस्पर, रेडचीफ, रायलगाला, रीगल गाला

देर से पकने वाली – रायमर, बंकिघम, गैनीस्मिथ, अम्बरी, रेडफूजी

परागकर्ता किस्में – अगेती किस्मों को मिलाकर लगाने से परागकर्ता किस्मों की आवश्यकता नहीं होती । डेलिशस समूह के लिए रेड गोल्ड  तथा गोल्डन  डेलीशस परपरागण के  लिए 20-25 प्रतिशत लगाना चाहिए

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सेब के रोपण की दर एवं विधि

6 मीटर कतार से कतार तथा 6 मीटर पौधे  से पौधे रोपण की कन्टूर विधि अपनानी चाहिए। इस विधि में पौधे की कतारें समान ढाल पर बनाई जाती हैं जो अधिकतर ढाल से समकोण पर होती है। रेखांकन वर्गाकर विधि से करते है। गड्ढ़े का आकार 1 मी.लम्बा, 1 मी. चौड़ा  तथा 1 मी. गहरा रखते है। गड्ढे की खुदाई तथा भराई नवम्बर-दिसम्बर माह में पूरा कर लेना चाहिए। एक गड्ढ़े मे 30-40 किग्रा. अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद तथा क्लोरपाइरीफास चूर्ण (5 प्रतिशत) के 200 ग्राम को अच्छी तरह मिट्टी में मिलाकर गड्ढे को खूब दबा कर भरना चाहिए। गड्ढ़े भरने  के  पश्चात उसकी सचाई  करे अथवा अच्छी तरह थाला बनाकर वर्षा  के जल से गड्ढ़े को दबा दे। जनवरी/फरवरी माह में पौधों का रोपण करे। पौधों की पूरी जड गड्ढ़े के अन्दर होनी चाहिए तथा कलम का भाग भूमि से  15-20 से मी. ऊपर होनी चाहिए। गड्ढ़े में पौधों दबा कर लगाना चाहिए। पौंधे लगान के तरुन्त बाद सिचाई  कर देनी चाहिए। इसके लिए पानी की व्यवस्था अलग से करनी चाहिए। पौंधे को लगाने  के पश्चात थाले को चारो आरे से घास-फसू से 10 से. मी. मोटी तह से ढक़ देना चाहिए जिससे खरपतवार का नियत्रंण तथा नमी का सरंक्षण अधिक समय तक किया जा सके।

उर्वरक एवं खाद

उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। इसके अभाव  में  10 कि.ग्रा. गोबर की सडी़ खाद, 70 गा्र. नाइट्रोजन, 35 ग्रा. फास्फोरस तथा 70 ग्रा. पोटाश प्रति वृक्ष प्रति वर्ष आयु के अनुसार देना चाहिए। दस वर्ष पश्चात् यह मात्रा स्थिर कर देनी चाहिए। तदोपरांत  700 ग्रा. नाइटा्रजे , 350 ग्रा. फास्फोरस तथा 700 ग्रा. पोटाश प्रति वृक्ष प्रति वर्ष देनी चाहिए। गोबर की खाद की मात्रा 10 वर्ष पश्चात् 50 कि.ग्रा.. प्रति वृक्ष देनी चाहिए। गोबर की खाद, फास्फारे तथा पोटाश उर्वरक की सम्पूर्ण मात्रा दिसम्बर-जनवरी माह में दी जानी चाहिए। नाइट्राजेन की आधी मात्रा का प्रयोग  फूल आने से एक माह पूर्व (फरवरी के दूसरे पखवाड़े) तथा शेष आधी मात्रा को दो बराबर भाग में बाँट कर आधी मात्रा फल लग जाने के पश्चात् मई माह में तथा शेष मात्रा फलों की तुड़ाइ के पश्चात अगस्त/सितम्बर में देनी चाहिए।

उर्वरक एवं गोबर की खाद का प्रयोग पेड़ के फैलाव  के अन्दर होना चाहिए। उर्वरक को मुख्य तने के पास नही डाले क्यूंकि इससे मुख्य तने को हाँनि पहुँच सकती है। फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरक कम घुलनशील होने के कारण इनकों पेड़ की परिधि से ठीक नीचे गोलाई  में ं15-20 से.मी. गहरी नाली बनाकर उसमे  समान रुप से बिखेर कर मिटटी में अच्छी तरह से मिला कर ढक देते हैं। नाइटा्र जे न तथा गाबेर की खाद को सम्पूर्ण थाले में समान रुप से बिखेर कर मिटटी में भलीभाती मिला देना चाहिए।

अम्लीय भूमि में 300-450 ग्रा. चूना प्रति वृक्ष तीन वर्ष में एक बार देना उपयुक्त रहता है। बोरान की कमी से सबे के फल अन्दर से काले हो जाते है। इनके निदान हेतु 0.5 प्रतिशत सुहागा का छिड़काव फल लग जाने के बाद दो छिड़काव 15 दिन केअन्तर पर करना चाहिए अथवा 100-120 गा्. सुहागा प्रति वयस्क वृक्ष जनवरी में थाले मे मिला देना चाहिए। जस्ता की कमी की स्थिति में 100-150ग्रा. जिकं सल्फेट जनवरी माह मे प्रति वयस्क वृक्ष थाले मे मिलायें या फल लग जाने के तुरन्त बाद 15 दिन के अन्तराल पर 0.2 प्रतिशत जिंक सल्फेट घोल के दो छिड़काव करे।

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सिंचाई, निराई-गुड़ाई तथा नमी संरक्षण

पर्वतीय क्षेत्र में सेब की खेती असिंचित दशा में की जाती है। अतः नमी के सरं क्षण के उपाय करने चाहिए। इसके लिए पौधों के थाले में खरपतवार नहीं उगने देने चाहिए। इसके साथ-साथ मार्च माह में 10 से.मी. मोटी  सुखी  घास या पेड़ो की पत्तियों  की तह प्रत्येक वृक्ष के थाले में बिछा देनी चाहिए। यह तह पलवार का काम करती है। नमी सरं क्षण हेतु पर्याप्त मात्रा में गोबर की सड़ी हुई खाद का प्रयोग प्रति थाला करना चाहिए। जहाँ सिंचाई की सुविधा हो  वहा मार्च से जून माह तक फलों की वृद्धि के समय आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए।

काट-छाँट

सेब में फूल छोटी टहनियों में  आते है  जिन्हें स्पर (दलपुट) कहते हैं। स्पर आठ से दस वर्ष तक फलत देते  हैं। अतः सबे की काट-छाटं हल्की करनी चाहिए। अधिक पुराने स्परों को काट देना चाहिए। काट-छाटॅ दिसम्बर के प्रथम सप्ताह से लेकर जनवरी के अन्तिम सप्ताह तक करना चाहिए। इसके साथ-साथ रोगी , सुखी, आपस में टकराती शाखाआें को पेड़ से निकाल देना चाहिए। कटे भाग पर चौबटिया पेस्ट लगाना चाहिए।

सेब की फसल सुरक्षा

प्रमुख कीट

सनजोस स्केल-इस कीट का शरीर काले भूरे रंग के स्केल से ढका रहता है। यह कीट तनों पत्तियां तथा फलों से रस चसू कर हाँनि पहुँचाता है। इसके नियत्रंण हेतु दिसम्बर/जनवरी में कटाई-छटाई के उपरान्त मिथाइल आडेमेटान या डाइमेथोएट के 0.1 प्रतिशत घोल के दो छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए अथवा 3 प्रतिशत ट्री आयल या 4 प्रतिशत डीजल आयल के घाले का छिड़काव करे।

ऊली एफिस-

यह कीट सफेद रुई जैसे पदार्थ के नीचे गुलाबी रंग के माहू के रुप में पौधों की जड़ो, तने की छाल, कोमल टहनियां  तथा पत्तियों का रस चसूता है। जड़ों में प्रकोप होने पर गाँठे बन जाती है। इसकी राके थाम हेतु मिथाइल आडेमेटान या डाइमेथोएट के 0.1 प्रतिशत घाले का छिड़काव अप्रलै -मई तथा सितम्बर माह में करना चाहिए तथा सितम्बर-अक्टबूर माह में जड़ों के आस-पास उपरोक्त कीटनाशी के 5-10 लीटर घाले से भिगो देते है।

टेन्ट कैटर पिलर

सूड़ी पत्तियों तथा कोमल शाखाओ को खा जाती है। यह काले रंग की होती है। पेड़ पर बने  जालों को कटाई-छंटाइ के समय नष्ट कर दने चाहिए तथा क्लारे पाइरीफास के 0.05 प्रतिशत घाले के दो छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर मार्च माह में करने चाहिए।

जड़ बेधक कीट-

यह कीट भूमि के अन्दर जड़ों को खाता है जिससे पौधा सूख जाता है। इसके निदान हेतु जुलाई से अगस्त माह में 5 प्रि तशत मैलाथियान धलू की 100 से 150 गा्. मात्रा 25 से.मी. की गहराइ में पेड़  के चारो आरे मुख्या तने के पास थाले में मिला दे।

तनाबेधक कीट

कीट तनों में छदे कर अन्दर घसु कर तने को खाता है तथा बाहर निकले बुरादे से इसकी पहचान होती है। इसके नियंत्रण के लिए डाई मेथोएट के 0.03 प्रतिशत घोल में रुई डुबोकर तार की सहायता से छेदो में ठूँस देना चाहिए तथा ऊपर से गीली मिट्टी का लेप कर देते हैं जिससे कीट अन्दर ही मर जाये।

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सेब में होने वाले रोगो का नियंत्रण

1. कलियाँ जब हरापन लिये हों, से पंखुड़ी झड़ने  की अवस्था तक (बसन्त ऋतु)

  • उपरोक्त  अवताओ  स्कैब रोगके नियत्रण हेतु कैप्टान (300 ग्रा.) या डोडीन (100 ग्रा.) या कन्टाफ (50 मि.ली.) या जीरम (300 ग्रा.) या मैन्कोजेब (300 ग्रा.) या ऐरेगॉन (75 मि.ली.) या प्राे पआने बे (300 ग्रा.) या मैंकोजेब  + काबर्न्डाजिम
    (250 गा्र .) को  100 ली. पानी में  घाले कर प्रयागे करे।
  • चूणिर्ल आसित रोग के नियत्रंण हेतु कैप्टानॅ (200 ग्रा.) या मैन्कोजेब (300 ग्रा) या ताकत (100 ग्रा) या थायोफिनेट मिथाइल (50 ग्रा.) को 100 लीपानी मं े घोलकर प्रयोग करे।
  • जड सडऩ हेतु  बोर्डों  मिश्रण (250-500 गा्र ./ पौधा) या नीला थोथा  (250-500 गा्र ./पौधा) थाले  के मिटटी  में मिलाये ।

उपरोक्त अवताओ  में रोगो  के जैविक नियंत्रण हेतु कॉपर/लाइम सल्फर/माइक्रोफाइन बेटेबुल सल्फर/फ्लोबुल सल्फर/कॉपर + ऑयल का प्रयोग किया जा सकता है।

2. फल लगने से फल तुड़ाई की अवस्था (मई-सितम्बर) तक ग्रीष्म ऋतुः

  • फल लगने से फल बढ़ोत्तरी  तक (मई-जनू ) असामयिक पतझड एव स्कबै रागे की राके थाम के लिए जिनबे (300 ग्रा.) या डोडीन  (75 गा्र .) या मैंकोजेब (300 ग्रा.) या कार्बन्डाजिम (50 ग्रा.) को 100 ली. पानी में घाले कर प्रयागे करे।
  • फल बढ़ोत्तरी से फल तुड़ाई  र्तक (जनू -सितम्बर)असमयायिक पतझड़ एवं स्कैब रोग की रोकथाम के लिए काबेर्न्डाजिम (50 ग्रा.) या मैंकोजेब (250 ग्रा) या ऐरेगॉन  (75 मि.ली.) या ताकत (100 ग्रा) को 100 ली. पानी में घोलकर नियमित अंतराल (15-20 दिन) पर 5-6 छिड़काव करे।
    फल बढ़ोत्तरी के समय यदि स्कैब, असामयिक पतझड़ या चूर्णिल आसिता का प्रकोप दिखाई दे तो सल्फर का प्रयोग करना चाहिए।
  • फल बढ़ोत्तरी के समय फ्लाइ स्पैक तथा कज्जली धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए जिनेव (200 ग्रा) या कैप्टान (200 ग्रा.) या कन्टाफ (50 मि.ली) को 100 ली. पानी में  घाले कर 15-20 दिन के अतं राल पर 2 छिड़काव करे।
  • फल बढ़ोत्तरी के समय पर ही जड़ सड़न तथा कॉलर रॉट के निदान हेतु कार्बेन्डाजिम (100 से 150 ग्रा.) या रीडोमिल (250 ग्रा.) को 100 लीपानी में घाले कर छिड़काव करे।
  • फल बढोत्तरी व फल तोड़ने के 20 दिन पूर्व ककैं र रागे की राके थाम हते ु कैप्टानॅ (300 ग्रा) या जिनबे (300 ग्रा.) या कापॅर ऑक्सीक्लोराइड  (300 ग्रा) को 100 ली. पानी में घाले कर छिड़काव करे।

3. सुसुप्तावस्था (सितम्बर तीसरे सप्ताह से फरवरी के तीसरे सप्ताह तक)

  • फल तुड़ाई के पश्चात् बगीचों  में पेड़ों  एवं नीचे गिरी हुई पत्तियों पर रोगां के बीजाणु जो सुसुप्तावस्था में पड़े रहते हैं, के नियंत्रण हेतु सितम्बर तीसरे सप्ताह से नवम्बर तीसरे सप्ताह तक 5 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करने से स्कबै , असामयिक पतझड  आदि रोगों के प्रकोप को कम किया जा सकता है।
  • 20 नवम्बर से  10 मार्च तक पेड़ों की कटाइ-छटाई के पश्चात् कैंकर के सुसुप्त बीजाणअु  को नष्ट करने हेतु क्रमशः चौबटिया पेस्ट (कॉपर कार्बोनेट(400 ग्रा.) $ अलसी का तेल (1 लीटर) + लेड ऑक्साइड (400 ग्रा.) का लेप केवल तनों एवं मोटी शाखाओं पर करे तथा जड़ विगलन के उपचार हेतु चूना (500 से 1000 ग्रा./पेड़) का बुरकाव करे।

4.कृषि विस्तार माध्यमो  द्वारा रागे के पूर्वानुमान एवं पब्र न्धन सम्बन्धी जानकारी समय-समय पर कृषकां को विभिन्न माध्यम से प्राप्त करते रहना चाहिए।
सेब में रोगो की रोकथाम हेतु निम्न उपाय करने चाहिए :

  1. उद्यान लगाने हेतु सदा रागे रहित पौधों  का ही चुनाव करें। ऐसे  पौधे किसी प्रमाणित पौधशाला अथवा सरकारी संस्था से ही खरीदें।
  2. सबे के पैकिंग  लिए ऐसे क्षत्रे जहाँ स्कबै फलै चुका हो, से लाई गई पेटियों  का प्रयागे न करें।
  3. नवम्बर के अन्तिम सप्ताह  में सबे के पेड़ों से गिरी हुई पत्तियों  पर 45ः यूरिया का छिड़काव करें  या फिर गिरते  ही एकत्रित करके जला दें
  4. सुसुप्तावस्था में पेड़ों  की कटाइ-र् छंटाई करते समय रोगग्रस्त शाखाओं को काटकर जला दें।
  5. नियमित रुप से उद्यान का निरीक्षण करते रहें ताकि रोग के लक्षण दिखाई देते ही उपयुक्त उपाय किये  जा सकें।
  6. समय व अवस्थानुसार निम्नलिखित छिड़काव कार्यक्रम अपनाये।

प्रभावी बिन्दु

  • सबे के अच्छे एवं रंगीन फल पा्रप्त करने हेतु काबाडेंजिम  के 0.2 प्रि तशल घाले का छिड़काव करें।
  • जनवरी-फरवरी माह में आवश्कतानुसार कटाई छटाई करें। कटे भाग पर चौबटिया पेस्ट  (एक भाग रडे लडे , एक भाग कापर कार्बोनेट तथा सवा भाग कच्ची अलसी का तले किसी मिटटी  या शीशे के बतर्न में फेंट कर बनायें ) लगायें।
  • परागकारक किस्मो का रोपण करें ।
  • कीट एवं व्याधि का समय पर नियंत्रण करें।
  • उत्तक क्षय (फल अन्दर से काले) रोग का समय से निदान करें।
  • सबे के बाग 2400 मी. की ऊंचाई से ऊपर तथा उत्तरी ढलान पर लगाना चाहिए।
  • नमी सरं क्षण हेतु पलवार का प्रयोग करना चाहिए।
  • किस्मो के चुनाव में सावधानी रखनी चाहिए।
  • सन्तुलित पोषण तथा गाबे र की खाद का प्रयागे करना चाहिए।

5 thoughts on “सेब (Apple) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

  1. SLNegi says:

    Very useful for appke growers. However, with do many fungicides and pesticides brands available in the market and above medicines not in tbe shops pl suggest right kind of meficine for the present.also appropriate organic fertilizer. Thnx

    1. agriavenue says:

      नेगी जी नमस्कार!धन्यवाद
      सभी दवा जो लेख मे लिखी है बाजारों मे मिलती है | किसान दवा का नाम लिखकर दुकान दार के पास ले जाय मिल जाएगी | लेख मे जैबिक विधि द्वारा भी नियंत्रित करना वताया गया है यदि कोई दबा बिशेष न मिल रही हो तो उसका नाम लिखकर भेज दे उस तरह की दूसरी दवा का नाम वता देगे

  2. दाता राम says:

    जड गलन की समसय से परॆ हू

    1. agriavenue says:

      जड़ सड़न रोग अधिकतर नमी तथा छायादार बगीचों में पनपता है। इस रोग की रोकथाम बहुत आवश्यक है। अगर समय पर रोग की रोकथाम न की जाए तो पौधा शीघ्र खत्म जाता है। बागवान सर्दियों में रोगग्रस्त पौधों की जड़ों से मिट्टी हटाकर धूप लगने के लिए खोल दें। रोगग्रस्त पौधों की जड़ों से जख्म को साफ करके उसमें फफूंदीनाशक पेस्ट लगाएं। जड़ों में पानी को न रुकने दें। पानी की निकासी के लिए नालियां बनाएं। बगीचे में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें। खरपतवार सेब की जड़ों में न उगने दें।

  3. Jaichand singh chauhan says:

    जानकारी बहुत ही लाभदायक और महत्वपूण हैं|आपका अति अभार तथा धन्यवाद | मैं भविष्य में और अधिक जानकारी प्राप्त करने तथा सरकार से मिलने वाली कृषि से संम्बधित सूचनाएं , सुविधा, एवं लाभ कैसे ले सकते है |

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