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तराई-भावर में तोरिया की खेती (लाही), पीली सरसों एवं राई की खेती रबी मौसम में मुख्य तिलहनी फसल के रुप से की जाती है। इनकी उत्पादकता बढ़ाने हेतु फसलबार इन बिन्दुओं पर विशेष ध्यान दे। अल्प अवधि में अधिक उपज क्षमता की सामर्थ्य होने के कारण तोरिया को कैच क्राप के रुप में खरीफ एवं रबी मौसम के बीच मैदानी, तराई एवं भावर तथा निचले पर्वतीय क्षेत्रों में उगाकर अतिरिक्त लाभ अर्जित किया जा सकता है।
तोरिया की खेती में बीज दर एवं बुवाई की विधि
4 कि.ग्रा. बीज की मात्रा प्रति हैक्टर प्रयागे करनी चाहिये। बुवाई पंक्तियों में 30 से. मी. की दर पर तथा 3-4 से. मी. की गहराई पर करनी चाहिये।
तोरिया की खेती में बुवाई का समय
पर्वतीय क्षेत्रों में तोरिया की की खेती में बुवाई सितम्बर के प्रथम पक्ष तथा मैदानी क्षेत्रों में सितम्बर के द्वितीय पक्ष में समय मिलते ही कर देने चाहिए। भवानी प्रजाति की बुवाई सितम्बर के दूसरे पखवाड़े में ही करें। घाटी वाले सिंचत एवं मध्य पर्वतीय क्षेत्रों मे प्रचलित एक वर्षीय स्थानीय फसल चक्र धान व आलू की फसल के बीच में परती वाले समय का सदुपयोग करने हेतु तोरिया की एक अतिरिक्त फसल ली जा सकती है। इसके लिए धान की जल्दी पक कर तैयार होने वाली किस्म जैसे गोविन्द, साकेत -4, पंत धान-11 एवं पंत धान-6 की कटाई के पश्चात अक्टबूर के प्रथम पखवाड़े मे तोरिया की बुवाई करनी चाहिए ताकि तोरिया की फसल की कटाई के बाद फरवरी मे आलू की शीध्र पकने वाली किस्म कुफरी ज्योति की बुवाई समय से की जा सके एवं जिसकी खुदाई जून के प्रारम्भ में करके पुनः धान की रोपाई समय से की जा सके।
बीज शोधन
बीज जनित रोगों से पादप सुरक्षा के लिए एप्रोन 35 एस-डी 4 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से शोधन करने पर प्रारम्भिक अवस्था में सफेद गेरुई एवं तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है। अन्य बीज तथा मृदा जनित रोगों से सुरक्षा एवं पौधों की प्रारम्भिक स्वास्थ के लिए कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम एवं थायरम 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से उपचारित करके बोयें।
तोरिया की खेती उर्वरक की मात्रा
यदि मिट्टी परीक्षण सम्भव न हो तोअसिंचत क्षेत्रों में 50 किग्रा नाईट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फास्फोरस , 20 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में 90 कि.ग्रा. नाइट्रोजन , 40 किग्रा .फास्फोरस , 20 किग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिए। फास्फारेस५ देने के लिए सिगंल सुपर फास्फेट अधिक लाभदायक हाते है क्योंकि इसमें 12 प्रतिशत गंधक होता है जिससे गधंक की पूर्ति हो जाती है अन्यथा 30 कि.ग्रा./हैक्टर गधंक का प्रयोग अलग से करें। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नाइट्राजेन की आधी मात्रा बुवाई के समय नाई या चोगें द्वारा बीज स2-3 से. मी. नीचे प्रयोग करनी चाहिए। शेष बची नाइट्रोजन की मात्रा पहली सिचांई पर (बुवाई के 25-30 दिन बाद) टापड्रेसिग के रुप में दी जानी चाहिए। असिंचित क्षेत्र सभी उर्वरक बुवाई के समय ही प्रयोग करना चाहिए।
निराई-गुड़ाई एवं विरलीकरण
बुवाई के 15 दिन के अदंर घने पौधों को निकालकर 30-35 पौधे प्रति वर्गमीटर (पौधों की आपसी दूरी लगभग 10-15 से. मी .) कर देनी चाहिए तथा खरपतवारों को नष्ट करने के लिए एक निराई भी साथ में कर देनी चाहिए। यदि खरपतवार अधिक हो तो पेण्डीमेथेलीन (30 ई.सी) 3.3 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरन्त बाद (जामव के पहले )छिडक़ाव करे।
तोरिया की खेती में सिंचाई कब करनी चाहिए?
फूल निकलने से पूर्व की अवस्था पर जल की कमी के प्रति तोरिया विशेष सवंदेनशील है। अतः अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इस अवस्था (25-30 दिन) पर सिचांई करना अत्यन्त उपयोगी होता है।
तोरिया की फसल में कौन कौन से प्रमुख रोग लगाने की सम्भावना होती है
1. झुलसा रोगः- इस रोग में पत्तियों शाखाओं तथा फलियो पर गहरे कत्थई रगं के धब्बे बनते हैं जिनमे गोल-गोल छल्ले पत्तियों पर स्पष्ट दिखाई देते हैं ।
रोकथामः- मैनकोजेब 75 प्रतिशत की 2 कि.ग्रा. 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से 2 छिडक़ाव करें।
2. सफेद गेरुई रोगः- इस रोग में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद फफोले बनते है और बाद में पुष्प विन्यास विकृत हो जाता है।
रोकथामः- इसकी रोकथाम झुलसा रोग की भांति करे। इसके अतिरिक्त रिडोमिल एम.जेड. 72 की 2.5 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से छिडक़ाव करें। बुवाई से पूर्व एप्रान 35 एस.डी. फफूंद नाशक 4 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
3. तुलासिता रोगः- इस रागे में पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रोयेदार फफूंदी तथा ऊपरी सतह पर पीलापन होता है।
रोकथामः- इसकी रोकथाम सफेद गरुई की भांत करें।
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4. तना सड़न रोगः- इस रोग के लक्षण त. तने पर प्रकट होते है। तने पर पीले धब्बे के उपर फफूंदी की सफेद वृद्धि दिखाई देती है। अन्त में तना उस स्थान से सडऩा शुरु करता है और पूरा पौधा सूख जाता है।
रोकथामः- कार्बेन्डाजिम 1.0 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर 2 छिडक़ाव करे। बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करे।
5. आरा मक्खीः- इसकी गिडारें सरसों कुल की सभी फसलो को हानि पहुंचाती है।गिडारें काले रंग की होती है जो पत्तियों के किनारों को अथवा विभिन्न आकार के छेद बनाती हुई बहुत तेजी से खाती है जिससे पत्तियॉ बिल्कुल छलनी हो जाती है।
रोकथामः- निम्नलिखित किसी एक कीटनाशक रसायन का प्रति हैक्टर की दर से छिडक़ाव या बुरकाव करें।
1. डाइक्लोरवास (76 एस.सी) का 500 मिलीलीटर
2. मिथाइलपेराथियोन 2 डी.पी. का 20-25 कि.ग्रा
3. क्लोरेयपायरॉफास 50 ई.सी 500 मिलीलीटर
4. क्वीनालफास 25 ईसी का 1200 मिलीलीटर
5. मेलाथियान 1500 मिलीलीटर
6. मॉहूः- यह छोटे कोमल शरीर वाले हरे रंग के कीट होते है। जिनके झुण्ड पत्तियों, फूलों तथा पौधो के अन्य कामेल भागो पर चिपके रहते है तथा रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते है।
रोकथामः- निम्नलिखित किसी एक कीटनाशक रसायन का प्रयोग कर माहू का प्रकोप यदि अधिक हो तभी कीटनाशी का प्रयागे करें। अन्यथा माहू का मित्र कीटों द्वारा स्वयं जैविक नियत्रंण हो जाता है।
1. थियामेथोक्जाम25 डबलू एस जी का 100 ग्राम/है
2. मिथाई-ओ डिमाटेन 25 ई.सी. का 1.0 लीटर/है
3. इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल का 100 मि.लि./है
7. बालदार (गिडार) कीटः- इस सूँडी के शरीर का रगं पीला अथवा नारगीं होता है, परन्तु सिर व पीछे का भाग काला होता है तथा शरीर पर घने काले बाल होते है।
रोकथामः-
1. पत्तियों की निचली व ऊपरी सतह पर अण्डे गुच्छे मट में हरे रगं के होते है। अतः इन अडांयुक्त पत्तियों को तोड़कर नष्ट करें।
2. प्रथम अवस्था में गिडार झुण्ड में पाई जाती है। उस समय उन पत्तियों को तोडक़र एक बाल्टी मिट्टी को तलेयुक्त पानी में डाल दिया जाए जिससे गिडार नष्ट हो जायें।
3. प्रथम व द्वितीय अवस्था में गिडारों की रोकथाम हेतु क्यूनालफास (1.5 प्रतिशत) धूल का 20 कि.ग्रा./हैक्टर की दर से बुरकाव किया जाये।
4. पूर्ण विकसित गिडारों की रोकथाम हेतु निम्नलिखित में से किसी एक कीटनाशक रसायन का तथा 100 मिली. टीपाले या 100 ग्राम डिटर्जेंट पाउडर को 600 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से बुरकाव/छिडक़ाव किया जाये।
अ. लेमडा साइहलोथ्रिन 5 ई.सी./250 मिली
ब. मानेक्रोटोफास 36 एस एल/1400 मिली
स. इमामेकटिन बनजोएट 5 एस जी/250ग्राम
8. चित्रित बग (पेन्टेडबग) कीटः- यह नारगीं रगं का धब्बेदार कीट हैं जिसके शिशु तथा वयस्क पत्तियों मुलायम टहनियों तथा कालियों से रस चूसते है जिसके फलस्वरुप पौधों की वृद्धि रुक जाती है। कीट कटाई के बाद मड़ाई के लिए रख गये ढेर में भी हो सकते है जो दाने पर आक्रमण करते है।
रोकथामः- इस कीट के उपचार हेतु मॉह के उपचार में वर्णित किसी एक कीटनाशी को प्रयोग में लाना चाहिए।
नोटः- सरसों जाति की सभी फसलों पर फूल की अवस्था में ऐसे समय छिडक़ाव करे जब परागण कीटों एवं मधुमक्खियों को हानि न हो अर्थात सायकांल के समय छिडक़ाव करें।
कटाई-मड़ाई
जब 75 प्रतिशत फलियॉ सुनहरे रंग की हो जाये, फसल को काटकर सुखाकर मड़ाई करके बीज को अलग कर लेने चाहिए। देर करने से बीजों के झडऩे की आशकां होती है। बीज को खूब सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए।
तोरिया की खेती से प्रति हेक्टेयर कितनी उपज प्राप्त होने की सम्भावना होती है?
तकनीकी तरीके से उगाई गयी तोरिया की फसल से उपज 10 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है।
Pili sarso me ban palak hone par Kya kare
निराई ही करे या उखाड़ दे दवा का उपयोग उचित नहीं होगा|