गहत उत्तराखण्ड के पहाडी़ क्षेत्र मे उगाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है।
गहत की कौन सी ऐसी प्रजातियाँ है, जिनका इस्तेमाल हम खेती के लिए करे?
प्रजाति | उत्पादकता (कु./हे.) | पकने की अवधि (दिनों में) |
---|---|---|
वी.एल.गहत-1 | 10-15 | 150-155 |
वी.एल.गहत-8 | 10-13 | 125-130 |
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गहत की बुवाई का समय
इसकी बुवाई जनू के प्रथम पखवाडे मे की जाती है।
बुवाई में बीज की मात्रा
40-50 कि.ग्रा./है 800 ग्रा/नाली बुवाई कतारो मे की जाती है।
दूरी
पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-35 से.मी. तथा पौध से पौध की दूरी 10 से.मी. हाने चाहिए।
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गहत की फसल में प्रयोग कीये जाने वाले उर्वरक
नत्रजन, फास्फोरस तथा पाटेश की क्रमशः 204020 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (400 800 400 ग्रा./नाली) मात्रा प्रयोग करने पर उपज अच्छी प्राप्त होती है।
निराई-गुड़ाई
पहली निराई फसल की बुवाई के 20-25 दिन तथा दसूरी 40-50 दिन बाद करनी चाहिए। निराई-गुडा़ई की सख्ंया खरतपवार पर निर्भर करती है।
फसल सुरक्षा
सफेद सड़न रोग
इस रोग के निदान हेतु कार्बन्डाजिम का 1.0 ग्रा. प्रति लीटर घोल का छिडक़ाव फसल पर लक्षण दिखाई देने के पश्चात तुरन्त किया जाना चाहिए।
कटाई
फसल अक्टबूर के दसूर पखवाड मे कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
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भण्डारण
फसल की अच्छी तरह से सफाई करके भण्डारण किया जाना चाहिए।
उपज
सामान्य वर्षा तथा उचित देख्-रेख् मिलने पर इस गहत की पदैवार 15-20 कन्तल प्रित हक्टर (30 स 40 कि.गा्र./नाली) तक पा्रप्त की जा सकती है।
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