स्प्रिलुना-(सुपर फ़ूड): एक रामबाण औषधि सभी बीमारियों के लिए

स्प्रिलुना: सुपर फ़ूड 

स्प्रिलुना यानि कि Arthro spira platensis , एक नील हरित शैवाल है जो पानी के अंदर गहरा हरा नीला देखा जा सकता है. इसकी उत्पत्ति झीलों, झरनों और खारे पानी में होती है.ये एक ऐसी वनस्पति है जिसमे खाद्य पदार्थो से भी ज्यादा पोषक तत्व पाए जाते हैं. इसके अलावा इस शैवाल में कई प्रकार के विटामिन्स, खनिज, प्रोटीन, मैग्नीशियम,कैल्शियम, सेलेनियम और जिंक भी भरपूर होता है. हम मनुष्यों की जीवन शैली में इससे एक सुपर फ़ूड क रूप में भी जाना सकता है. मेडिकल साइंस में दवाओं में इसका प्रयोग होता है. ये हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी अच्छा करता है. इसके अलावा सौंदर्य प्रशाधनो में भी इसका प्रयोग किया जाता है .

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स्प्रिलुना: एक रामबाण औषधि : उपयोग बीमारियों में:
१- मधुमेह
२-कोलेस्ट्रॉल
३-कैंसर
४-त्वचा रोग
५-डिप्रेशन
६-बालों की समस्या

स्प्रिलुना: किसानों के आय के लिए लाभकारी :

किसान की हालत से हम अनभिज्ञ नहीं है .खेती में लागत बहुत ज्यादा और मुनाफा कम होने के कारण एक किसान अपनी मेहनत के मुकाबले उतना नहीं कमा पाता. बाजार में एक किलो सूखे स्प्रिलुना पाउडर की कीमत लगभग 1000 रुपये है. ऐसी स्थिति में किसान की आय को बढ़ाने के लिए स्प्रिन्लुना की खेती में बहुत सारी संभावनाएं देखी जा सकती हैं.

स्प्रिलुना का उत्पादन :

स्प्रिलुना का उत्पादन करने के लिए हमें प्लास्टिक या सीमेंट का टैंक चाहिए. १० ५ 1.५ फ़ीट का टैंक सबसे उपयुक्त है.
इसे उगने के लिए हमें तक में कम से कम २ फ़ीट की ऊंचाई तक १००० लीटर पानी भरना होगा. स्प्रिलुना के उत्पादन के लिए लगभग २५-४० डिग्री तापमान का गरम मौसम अनुकूल होता है. जाड़ो के मौसम में भी हीटर द्वारा टैंक का पानी गरम करके तापमान बढ़ाया जा सकता है.

बीज:
स्प्रिलुना उगने के लिए हमें बीज या फिर स्पिरुलिना कल्चर की आवश्यकता होती है. इस बीज की १ किलोग्राम की मात्रा हमें १००० लीटर के पानी के टैंक में डालनी होती है.

खाद :
५ ग्राम सोडियम क्लोराइड
८ ग्राम सोडियम बाईकारबोनिट
0.२ ग्राम यूरिया
0.५ ग्राम पोटैशियम सलफेट
0.२ ग्राम मैग्नीशियम सलफेट
0.05 ml फास्फोरिक और आयरन सलफेट का घोल
( १ लीटर पानी की मात्रा के अनुसार )

प्रकाश संश्लेषण :
जिस तरह से एक पौधे को धुप और हवा की जरूरत होती है उसी तरह इसको भी धूप और हवा की जरूरत होती है. पानी के अंदर होने के कारण इसकी ये जरूरत को पूरा करने के लिए हर सप्ताह में एक बार आधे घंटे ताकि छड़ी से पानी को हिलाना पड़ता है.

शैवाल से पाउडर :

लगभग १० दिन के अंदर यह तैयार हो जाता है जिससे छोटी बाल्टी से बाहर निकाल कर छाना जाता है ताकि अतिरिक्त पानी निकल जाये और बार बार धोया जाता है. किसी भार के नीचे किसी कपड़े में बांध कर दबा दिया जाता है ताकि बिलकुल पानी इसमें न रहे सारी नमी निकल जाये. अंत में इसे धूप में सुखा के पाउडर बना लेते हैं.  इसका परीक्षण प्रयोगशाला में कराने के बाद अब ये बेचने के लिए तैयार है.

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