लीची की प्रमुख समस्याएँ और समाधान -लीची की सघन बागवानी

लीची सेपिन्डेसी कुल का एक सदाबहार, उपोष्ण कटिबन्धीय फल है। इसका मूल स्थान दक्षिण चीन माना जाता है। भारतवर्ष में लीची का आगमन सत्रहवीं शताब्दी के अन्त में म्यान्मार होते हुए उत्तर पूर्वी राज्यों में हुआ। भारत में लीची की बागवानी मुख्य रुप से बिहार, उत्तराखण्ड, पश्चिमी बंगाल, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश के तराई वाले क्षेत्रों , त्रिपुरा, असम, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा दक्षिण भारत के नीलगिरी क्षेत्रों में की जा रही है। भारत में लीची की बागवानी 74.4 हजार हैक्टर क्षेत्रफल में की जा रही है, जिससे 483.3 हजार मीट्रिक टन लीची पैदा होती है। लीची फल पोषक तत्वों से भरपरू होते हैं। मई-जून की तपती गर्मी में लीची के आकर्शक लाल एवं सुमधुर रसदार फल, प्रकृति की अनुपम देन है। भारतीय लीची अपने विशिष्ट स्वाद एवं सुगंध के लिए देश में ही नही अपितु पूरे विश्व में विख्यात है। परन्तु भारत में लीची की उत्पादकता काफी कम है। चीन आज भी लीची उत्पादन में अग्रणी है। भारतीय लीची उत्पादन अनेकों समस्याओं से जूझ रहा है, जो लीची की उत्पादकता कम कर देती हैं। इन समस्याओं का वैज्ञानिक समाधान कर गुणवक्तायुक्त लीची उत्पादन किया जा सकता है।

लीची

लीची की प्रमुख समस्याएं एवं उनका समाधान इस प्रकार है

असामायिक फल झड़नाः फल झड़ने की समस्या लीची की एक अत्यन्त गंभीर समस्या है। आरम्भ में लीची में काफी मात्रा में फल लगते हैं, परन्तु फल गिरने के कारण काफी कम फल परिपक्वता तक पेड़ पर रुकते हैं अर्थात ,फलों का गिरना फल बनने के बाद से ,फलों के परिपक्व होने तक जारी रहता है। शुरुआत के 2-3 सप्ताह में सबसे अधिक फल गिरते हैं। फल गिरने के कारणो में वृद्धि नियामको का असतंलुन, खाद एवं उवर्रको की कमी, अपरागित फल, उच्च तापमान, कम आपेक्षित आर्द्रता तथा तेज हवाएँ आदि मुख्य हैं। यदि फल बनने के बाद बाग मेंपर्याप्त आर्द्रता ना हो  तथा गर्म हवाओं का प्रकोप हो तो लीची के फल अधिक मात्रा में झड़ते है। फल झड़ने की समस्या के समाधान के लिए बाग में आर्द्रता बनाए रखने के लिए नियमित सिचाईं  करते रहें। साथ ही एन.ए.ए. 20 पी.पी.एम. का एक पर्णीय छिड़काव फलों के मटर के दाने के आकार का हो जाने पर करें। इस प्रकार उचित सिंचाई प्रबन्धन और वृद्धि नियामकों के पर्णीय छिड़काव से फलों के झड़ने की समस्या को रोका जा सकता है। ध्यान देने वाली बात यह है कि जिन फलों का जन्म, पुष्पों  में बगैर गर्भाधान क्रिया के हो जाता है, उन्हें गिरने से रोका नहीं जा सकता। बाग में मधुमखिया के बक्से रखने से परागण अच्छा होता है। लीची में परागण कीट द्वारा होता है , अतः यह ध्यान रखे  की फूल आने के समय बाग में किसी भी कीटनाशी का छिड़काव न किया जाए। यदि संभव हो तो फूल आते समय बाग में मानै बॉक्सों को रख दे मधुमखियों फूलों से पराग एकत्रित करके अपने भोजन की पूर्ति करती है आरै फलू मधुमखियों की परागण क्रिया से लाभान्वित होकर गुणवत्तायुक्त फलोत्पादन करते है।

फलों का फटना : लीची में फल फटना एक गंभीर समस्या है। यह समस्या उन स्थानों में अधिक होती है, जहाँ मौसम गर्म और सूखा रहता है। दिन और रात्रि के तापक्रम में अधिक उतार-चढा़व होने पर, भारी सिंचाई करने के बाद यह समस्या उत्पन्न हो जाती है। लीची की अगेती किस्मो में यह समस्या अधिक देखी गई है। इसलिए जिन क्षेत्रों में गर्मियां में तापमान 38 डिग्री0 से0गे0्र से अधिक पहुँच जाता है, वहाँ लीची की पछेती किस्में लगानी चाहिए।

फल फटने से रोकने के लिए बाग में आर्द्रता बनाए रखने के लिए नियमित सिंचाई करनी चाहिए। फल बनने से पकने तक यह ध्यान में रखें की भूमि सूखने ना पाए। एन0ए0ए0 के 20 पी0पी0एम के घाले का मई में पर्णीय छिड़काव करें। मई माह में लीची के वृक्षो में आवश्यकतानुसार प्रातःकाल सादे पानी का 2 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करने से फल

बागों में पलवार का उपयोग करके फल फटने की समस्या कम की जा सकती है, साथ ही बाग़ में चारो तरफ वायु अवरोधी पौधे लगाने से भी फल कम फटते हैं।

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फलों का भूरा पड़ जाना : लीची की यह एक अत्यंत गंभीर समस्या है, फल तोड़ने के कुछ समय बाद ही भूरे पड़ जाते हैं। धीरे-धीरे इन फलों में सडऩ उत्पन्न होने लगती है। वातावरण में उपयुक्त  नमी ना होने के कारण यह समस्या उत्पन्न हो सकती है। कुछ इन्जाइम जैसे पालीफीनोल आक्सीडेज एवं परआक्सीडेज आदि। इस समस्या को बढ़ाने के लिए जाने जाते है।

इस समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिक द्वारा निरंतर प्रयत्न किए जा रहे हैं। पिछले कुछ समय तक गंधक द्वारा फलों को भूरा होने से बचाया जाता था, परंतु अब इस प्रक्रिया का उपयागे स्वास्थ्य कारणों से नही किया जाता है।

फलो को भूरा होने से बचाने के लिए निम्न बाते ध्यान में रखनी चाहिए।

1. फलो की तुराई प्रातः और सायःकाल ठण्डे समय में ही करनी चाहिए।
2. फलो की तुराई 40 से 50 सेमी. लकड़ी एवं कुछ पत्तियों सहित गुच्छे में सिकेटियर द्वारा करनी चाहिए, तथा उन्हें  तुरंत छायादार स्थान पर रखकर लीची की पत्तियों अथवा कपड़े द्वारा ढ़क देना चाहिए, जिससे फलों से वाष्पीकरण द्वारा होने वाले जल हृस को रोका जा सके।तोड़े गए फलों को 3-4 घंटे छायादार स्थान पर रखना चाहिए ताकि उनकी फील्ड हीट समाप्त हो जाए।
3.फलो को सावधानीपूर्वक तोड़े और रखें जिसमें फल दबें नही और न ही उन पर कोई खरोच या चोट आए।

प्रमुख कीटः व्यावसायिक रुप से लीची में कीटां का अत्यन्त दुष्प्रभाव देखा गया है। यह कीट लीची के वृक्ष एंव फलों को क्षति पहुंचाकर गुणवत्तायुक्त उत्पादन को बाधित करते हैं। लीची के कुछ प्रमुख हानिकारक कीट निम्नवत हैंः-

1. लीची माईट : लीची माईट पत्तियों की निचली सतह पर चिपक कर रस चूसता है। यह एक छोटे आकार का कीट है तथा पेड़ की वृद्धि एवं उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। कीट का अधिक प्रकोप होने पर पत्तियाँ गहरे कत्थइ्र्र रंग की मखमल जैसी होकर सिकुड़ जाती है। इसकी राके थाम के लिए सक्रंमित पत्तियों को शाखा सहित काट कर जला देना चाहिए तथा कैल्थेन (0.2 प्रतिशत) के दो छिड़काव जनवरी-फरवरी माह में 15 दिन के  अतं राल पर करें।

2. फल छेदक : यह गिडार फल के डंठल के पास छेद बनाकर रहती है। धीरे-धीरे फल अंदर ही अदंर खराब हो जाता है। फल छेदक से सक्रिं मत फल को छीलने पर डंठल के नीचे गूदे के ही रंग की गिडार दिखाई देती है। रोकथाम के
लिए कारबेरिल 50 डब्ल्यू.पी.के. 2.0 ग्राम/लीपानी का छिड़काव तुड़ाई से 15 दिन पूर्व तक अवश्य कर लेना चाहिए।

3. लीची बग :  यह कीट लीची के फलों  को बहुत नुकसान पहुँचाता है। यह फलों  का रस चसू लेता है। फल के  जिस भाग पर यह कीट बठै ता है, वहाँ भूरे कत्थई रंग का धब्बा पड़ जाता है। अधिक सक्रंमण की स्थिति में फल सूखकर  गिर जाते है। इसकी रोकथाम के लिए जैसे ही बाग में बग दिखे, अप्रैल माह में 0.1 प्रतिशत मोनोचोटोफॉस का छिड़काव करना चाहिए। यदि इसके बाद भी बग दिखाई दें, तो 15 दिन बाद क्यूनालाफॉस 25 ई.सी. के 2.0 मिली./ली. पानी का एक छिड़काव और कर देना चाहिए।

4. तना छेदक : यह कीट मुख्य तने तथा मोटी शाखाओं के जोड़ के पास छदे बनाकर रहती है और छाल खाती है। नियत्रंण के लिए तार द्वारा छिद्र को साफ करके इसमें मिट्टी के तेल में भीगी रुई रखकर, छिद्र को ऊपर से गीली मिट्टी से ढ़क देते है। जिसके कारणवश कीट अंदर ही अंदर मर जाता है।

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पुराने जराग्रस्त बागों से उपज ना होना : लीची के जो बाग पुराने हो गए हैं तथा व्यावसायिक रुप से अनुत्पादक हो गई है। उपज कम होने के साथ ही फलों की गुणवत्ता भी कम हे गई है। ऐसे बागों का जीर्णाद्धे र द्वारा सुधारा जा सकता है। जीर्णोद्धार की प्रक्रिया दिसम्बर-जनवरी माह में की जाती है। बाग को 4-6 फीट की ऊँचाई पर मुख्य तने को काट दिया जाता है। मुख्य तने को काटने के तुरन्त बाद काटे हुए भाग पर गाय के गोबर का लेप किया जाता है अथवा कापर आक्सी क्लोराइड का गाढ़ा घोल बनाकर पुताई कर दी जाती है। कुछ समय बाद कटे तने से नई शाखाएं निकल जाती है। इन शाखाओं  में से तने के चारों तरफ 4-5 स्वस्थ शाखाओं को  छोड़कर शेष शाखाओं को  काट कर निकाल देते हैं। शाखाओं को निकालने का कार्य वर्ष में 2-3 बाद किया जाता है। लगभग 3 वर्षों  में  बाग पुनः स्थापित हो जाता ह आरै फलत प्रारंभ हो जाती है। लगभग पाँच वर्ष में बाग में व्यवसायिक रुप से अच्छी फलत प्राप्त होनी शुरु हो जाती है। इस प्रकार बाग से पुनः 50 वर्षों तक उत्पादन किया जा सकता है। ध्यान रहें कि जीणाद्धार का कार्य  विषेशज्ञां की देखरेख में ही करे।

समुचित पोषण प्रबंध : लीची के बागों  में पोषण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पोषक तत्वों की कमी अथवा अधिकता, बाग की उत्पादकता एवं फलों की गुणवत्ता कम कर सकती है। पोषण प्रबंध करने से पहले मृदा परीक्षण अवश्य करा लेना चाहिए। ज्यादातर बागवान नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश का ही प्रयोग करते है, तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों की आरे ध्यान नही देते। निरंतर सूक्ष्म पोषक तत्वों  का प्रयागे ना करने पर भूमि में इनकी कमी हो जाती है जिसका विपरीत प्रभाव पौधो की वृद्धि, फल उत्पादन एवं फलों की गुणवत्ता पर पड़ता है। प्रमुख रुप से लीची में लोहा , बोरोन , ताँबा एवं जिंक आदि सूक्ष्म तत्वां की कमी देखी गई है। सूक्ष्म पोषक तत्वों के प्रयागे की सर्वोत्तम विधि पर्णीय छिड़काव विधि है। इसमें सूक्ष्म तत्व के घोल को पेड़ पर स्प्रे मशीन से वर्ष में 3-4 बार क्रमशः सितम्बर-अक्टूबर, फरवरी-मार्च एवं फल बनने के बाद अप्रैल-मई में छिड़कना चाहिए। जिंक सल्फटे का 0.5 प्रतिशत घाले का पणीर्य छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर दो बार पुरू फूल खिलने पर कर दे। इस घाले के साथ 1 प्रतिशत यूरिआ का घाले भी मिलाना आवश्यक होता है। जिससे जिकं सल्फटे का घोल न्यूट्रल हो जाए। 1 प्रतिशत बोरेक्स के घोल के तीन छिड़काव 15 दिन के अन्तराल पर 15 अप्रैल से शरु करके फलां का गिरना व फटना भी कम किया जाता है। कॉपर की कमी को दरू करने के लिए प्रि तवष र् 2-3 छिड़काव 0.05 प्रतिशत कॉपर सल्फटे कर दे। सूक्ष्म तत्वों की सान्द्रता निर्धारित सान्द्रता से अधिक नही होनी चाहिए। बाजार में कुछ शुक्षम तत्वों के तैयार फार्मूलेशन मिलते हैं। इन का प्रयोग वर्ष भर में दो से तीन बार करना चाहिए।

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2 thoughts on “लीची की प्रमुख समस्याएँ और समाधान -लीची की सघन बागवानी

  1. Dhananjay Singh says:

    Achhai podha kaha mileage,naya bag ke liye.

    1. agriavenue says:

      लीची के पौधे पंतनगर विशवविद्यालय से प्राप्त कर सकते है

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