काकुन( कौणी ) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

पर्वतीय क्षेत्रों में उगाये जाने वाले मोटे अनाजों में काकुन का तीसरा स्थान है। यहाँ इसे कौणी के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती मैदानी तथा समुद्र तल से 2200 मीटर की ऊँचाई तक की जाती है। अधिकांशत: काकुन को झंगोरा के साथ मिश्रित खेती के रूप में बोया जाता है।

काकुन की उन्नत किस्में

पी.आर.के.-1 पतं नगर विश्वविद्यालय के पर्वतीय परिसर, रानीचौरी (टिहरी) द्वारा हाल में विकसित की गई जो कि एक अगेती किस्म है। यह किस्म पर्वतीय क्षेत्रों में 1500-2200 मी. की ऊंचाई तक उपयुक्त पाई गई है। एक हेक्टेयर भूमि में 15-20 कुंतल उपज मिलती है। इसके पौधों  की ऊंचाई 95-105 से. मी. होती है आरै दाने पीलापन लिये हुए भूरे रगं के होते हैं। इसकी फसल उची पहाड़ियों पर भी लगभग 90-105 दिन में पक जाती हैं। इस किस्म में झाको  (ब्लास्ट) तथा हेल्मिथोस्पोरियम   बीमारियां का प्रकोप कम होता है। पी.एस.- 4 यह प्रजाति तराई क्षत्रे में 83-85 दिन में पक जाती है तथा इसकी उपज क्षमता 17-18 कु./है. पायी गयी है।

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बोने का समय

मई के द्वितीय पखवाड़े से जून के प्रथम पखवाडे तक इसकी बुवाई की जा सकती है।

बीज शोधन/बीज की मात्रा

बुवाई से पूर्व 2.5 ग्रा./कि.ग्रा. थीरम से बीज शोधन करना लाभदायक होता है। लाइन में बुवाई के लिए 8-10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (160 से 200 ग्रा. प्रति नाली) तथा छिटकवां बुवाई के लिए 10-12 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर (200 से 240 ग्रा. प्रति नाली) बीज की आवश्यकता होती है।

बुवाई का तरीका

बीज की बोवाई देशी हल के पीछे कूड़ो में  लगभग 5 से.मी. की गहराई पर करे। कतारों की दुरी 25 से.मी. तथा पौधों से पौधों की दुरी  10 से.मी. रखें।

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खाद की मात्रा

खेत की जुताई से पहले 5-6 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद बिखेर देनी चाहिए और जुताई करके भूमि में खाद अच्छी तरह मिला देनी चाहिए। 40 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 20 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति हैक्टर (800 ग्रा. नत्रजन एवं 400 ग्रा. फास्फोरस प्रति नाली) प्रयोग करना चाहिए। पूरा फास्फोरस एवं नत्रजन की मात्रा का आधा भाग बुवाई के समय तथा आधा भाग फूल खिलते समय प्रयोग करना लाभदायक होता है।

पौधों की छंटाई

यह एक अति आवश्यक कृषि कार्य है। बुवाई के लगभग 15-20 दिन बाद कतारों में पौधां की छंटनी करके पौधे से पौधे के बीच की दूरी 10  स.मी. कर दे। अन्यथा बाली की लम्बाई बहुत कम हो जाती है जिससे उपज घट जाती है। इसी समय कुटले की सहायता से खरपतवार को भी निकाल देना चाहिए।

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उपज

फसल 90-105 दिन में पककर तैयार होती है। जून प्रथम पखवाड़े में बोयी  गई फसल की कटाई सितम्बर में हो जाती है जिससे रबी की फसल आसानी से ली जा सकती है। इसकी 15-20 कुन्तल/हैक्टर (30 से 40 कि.ग्रा./नाली) उपज प्राप्त की जा सकती है।

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