आड़ू (Peaches) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

आड़ू की खेती मध्य पर्वतीय क्षत्रे, घाटी तथा तराई एवं भावर क्षेत्रों में की जाती है। यह शीघ्र फल देता है। अतः इसकी बागबानी को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

आड़ू

आड़ू की प्रमुख किस्में

पर्वतीय क्षेत्र (मध्य व ऊँचे क्षेत्र के लिए)

शीघ्र पकने वाली-जून अर्ली, अलेक्जेन्डर, अर्लीव्हाइटजाईट

मध्यम समय– एलवर्टा, हेल्स अर्ली, क्राफोर्ड अर्ली (तोतापरी), अर्ली रिवर्स, जे.एच. हेल्स, पैराडीलक्स

देर से पकने वाली-जुलाई अलवर्टा, रेड नेक्ट्रीन, गोल्डेन बुश, पैरीग्रीन, स्टारकिंग डेलीशस

परागण-अधिकांश किस्मों में स्वंय परागण से फल बनाते है, कछु किस्में जैसे जे.एच.हेल्स एवं अलेक्ज़ेंडर के लिए परागण की जरुरत होती है| इन किस्मों के साथ एक ही समय पर फूल आने वाली दो-तीन किस्मों को मिलाकर लगाना चाहिए।

घाटी, तराई एवं भावर – फ्लोरडासन, फ्लोरडा रडे , सहारनपुर प्रभात, फ़्लोरडा प्रिंस , शान-ए-पंजाब, (लोचिल) प्रताप, शर्वती एवं शर्वती सुर्खा

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रापेण की दूरी एवं विधि

आड़ू की रोपाई 5-6 मी. कतार से कतार तथा 5-6 मी. पौधे से पौधे की दूरी पर करनी चाहिए। बाग का रेखांकन, गडढो की खुदाई, भराई तथा पौधों का रापेण सबे के अनुसार करना चाहिए।

आड़ू के उत्पादन खाद में एवं उर्वरक का प्रयोग 

आड़ू के पौधे को 10 कि.ग्रा. सड़ी गोबर की खाद, 80 ग्रा. नाइट्रोजन, 40 ग्रा . फोस्फरस  तथा 100 ग्रा. पोटाश प्रति वृक्ष प्रति वर्ष की आयु के अनुसार देना चाहिए। 6 वर्ष पश्चात मात्रा स्थिर कर देनी चाहिए (500 ग्रा. नाइटा्र जे न, 250 ग्रा. फोस्फरस  एवं 600 ग्रा. पोटाश)। गोबर की खाद, फास्फोरस तथा पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा दिसम्बर माह में बर्फ पड़ने के पहले दे देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा फरवरी-मार्च एवं आधी मात्रा मार्च-अप्रैल में फल लगते समय देना चाहिए। फास्फेट उपयुक्त उवर्रक शाखाओं के फैलाव क्षत्रे में भूमि में 25-30 से.मी. चौड़ीं एवं 10-15 से.मी. गहरी नालियॉ बनाकर देना चाहिए। नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा गोबर की खाद को पौधों के फैलाव के अनुसार छिडक़ कर भूमि में भली भाँति मिला दे।

काट-छांट

आड़ू में एक वर्ष पुरानी शाखाओं पर फल आते हैं एवं पेड़ के ऊपरी तिहाई भाग में सबसे ज्याद फलत होती है। अतः प्रत्येक वर्ष पिछली वृद्धि की हुई शाखाओं की काट-छाटं करना आवश्यक है जिससे नई फल बनने वाली शाखाये निकले। ऐसी शाखाओं के ऊपर लगभग एक तिहाई भाग काट देना चाहिए। पेड़ के अन्दर की ओर जाने वाली टहनियों, रागे ग्रसित कमजारे शाखाओं तथा अवांछत शाखाओं को काट कर अलग कर देना चाहिए। कटी हुई शाखा के पास वाली कली बाहर की ओर हो जिससे पौधों की बढ़वार बाहर की ओर हो सके। कटान साफ होनी चाहिए जिससे कटे हुए भाग पर ठूँठ न रहने पाये। कटे हुए भाग पर चौबटिया पेस्ट या तूतिया का लेप अवश्य लगाना चाहिए।

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सिंचाई, गुड़ाई तथा नमी संरक्षण

जहाँ पानी की सुविधा हो फल लग जाने के पश्चात् आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। थाली की निराई-गुड़ाई से खरपतवार निकालते रहना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्र में नमी संरक्षण हेतु पलवार का प्रयोग मार्च-अप्रैल से जून तक करना चाहिए। उर्वरक को मिलाते समय थालों की अच्छी तरह गुड़ाई करनी चाहिए। नये लगे बाग में यदि पानी की सुविधा उपलब्ध है तो गर्मी में आवश्यकतानुसार पानी देना चाहिए जिससे पौध सूखने नहीं पाये।

कीट एवं व्याधि नियंत्रण

पर्णकुचं न कीट– यह कीट फरवरी से अप्रैल तक सक्रिय रहता है जो नई पत्तियों का रस चूसता है जिसके कारण पत्तियाँ मुड़ जाती है तथा छोटे फल गिर जाते है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास 2 मि.ली. एक लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। दोसरा छिड़काव फल लग जाने के तुरन्त बाद करना चाहिए।

फल की मक्खी– घाटी, तराई एवं भावर क्षेत्र में आड़ू के पेड़ पर इसका आक्रमण होता है। इसकी रोकथाम के लिए अप्रैल/मई माह में ममेलाथियान वेट का उपयागे करे।

व्याधि नियंत्रण

पर्ण कुचंन – यह रोग टफैरिना डिफार्मेन्स फफूँदी से होता है। रोगी पत्तियॉ फूलकर मोटी तथा लाल हो जाती हैं तथा विकृत होकर मुड जाती है इसके निदान हेतु कली फूटने से पहले ताम्रयुक्त फफूंदीनाशी के 0.25 प्रतिशत घोल अथवा डाईथेन एम-45 के 0.25 का छिड़काव करना चाहिए।

गांदे निकलना – प्रभावित तनों से गोदं को खरोचं कर निकाल दें तथा ताम्रयुक्त फफूंदीनाशी के 0.25 प्रितशत घाले का छिड़काव करें इसके लिए कापर ऑक्सी क्लोराइड 2.5 ग्रा/ली. की दर से छिड़काव करें आरै साथ ही साथ करीब 50 ग्रा . प्रि त पेड़ के हिसाब से मिटटी में मिला दे

प्रभावी बिंदु

  • आड़ू की कटाई-छटाई प्रत्येक वर्ष की जानी चाहिए तथा कटे भाग पर चौबटिया पेस्ट या तूतिया का लेप लगाना चाहिए।
  • बोरेक्स के 0.3 प्रतिशत तथा तांबा 0.5 प्रतिशत के घोल का छिड़काव करना चाहिए।
  • जातियों का चुनाव स्थान की ऊचाँई के अनुसार करना चाहिए।
  • पर्णकुंचन कीट का नियंत्रण करे।
  • पलवार का प्रयोग करे।
  • आड़ू का बाग सड़क के पास लगाये।

3 thoughts on “आड़ू (Peaches) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

  1. sandeep says:

    brther 1 saal pehle mene aadu ke 60-70 podhe lagaye hai,julai albeta es bar cutting kr di hai koi jankari mere liye jo jaruri ho plz

    1. agriavenue says:

      अगर पौधे स्वस्थ्य है तो कृपया उन्हें इसी प्रकार बढने दे|

  2. Rishi Nagar says:

    ग्रेटर नोएडा (एनसीआर) में आडू की कौन सी नस्ल के पौधे लगाने चाहिए

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