अक्टूबर माह में मैदानी क्षेत्र एवं पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली फसले, फल, पुष्प, पशुपालन।

अक्टूबर माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली फसले

धान जो किस्में पक गई हो। उनकी कटाई कर लें। कटाई जड़ सेे सटाकर करें। भण्डारण हेतु दानों में नमी 12-14 प्रतिशत रखनी चाहिए। दरे से बोई गई फसल में फूल बनते समय खते में सिचांई  अवश्य करे। कभी-कभी गधी बगं का प्रकोप हो जाता है । इसकी रोक थाम के लिये इमिडाक्लाेिपड्र 17.8 एस.एल. का 150 मिली. या मोनोक्रोटाफास 36 एस. एल. का 1.4 मिली मात्रा प्रति हैक्टेयर  का फूल आने के बाद बूरकाव प्रात़ः या शाम को करें।

मक्का समय से बोई गई फसल की  कटाई करे। सकंर व विजय मक्का के पौधो पकने पर कभी-कभी हरे नजर आते हैं अतः जब भुट्टो के ऊपर वाला छिलका पीला व भूरा हो जाए तो समझें कि फसल पक गई है।

बाजरा बाजरा के तुरंत बाद रबी की फसल कोई फसल के बोनी हो तो प के पौधो को नीचे से काटकर खेत से बाहर एकत्र कर लें। यदि रबी में कोई फसल नहीं लेनी हो तो पकी फसल से बाजरा की बाले  काट लें और पौधो को  खेत में खडा़ रहने दें।

उर्द  व मूंग फसलों के पकने पर तुरंत कटाई करें अन्यथा दानों के झडऩे से उपज में हानि हो सकती है।

मूगंफली टिक्का रोग नियत्रंण के लिये खडी़ फसल पर मेकोजेब 75 डब्ल्यू. पी. 2.5 किग्रा. दवा प्रति है. की दर से आवश्यक पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।

सोयाबीन फसल को फलिया तथा पत्तियां खाने वाली सूड़ियो की हानि से रोकथाम के लिये क्वीनालफास 25 इ.सी. की 1.0 लीटर मात्रा को 600-800 लीटर पानी में घाले कर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़े ।

अरहर पत्तीलपेटक व फलीबेधक कीट नियत्रंण के लिये मोनोक्रोटोेफास 36 एस.एल.का 1.25 लीटर दवा  प्रति है. या डाइमेथोएट 30 इ.सी. की 660 मिली दवा प्रति है. की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में  घोल कर प्रति है. क्षेत्रफल में छिड़काव करे।

ताेरिया (लाही) सितम्बर माह में  बोई गई ताेरिया की फसल में बुआई  के 15 दिन के बाद घने पौधों को निकाल कर पौधों की आपसी दूरी 10-15 सेमी. रखनी चाहिए तथा खरपतवारों को नष्ट करने के लिये इसी समय एक निराई- गुडाई  भी कर देनी चाहिए। यदि सिचांई  उपलब्ध हो तोे ताेरिया में फूल निकलने पर अथार्त बुआई के 25-30 दिन बाद एक सिचांई अवश्य कर दें।

राई- सरसों:- राई सरसों की बुआई  अक्टूबर  के प्रथम पखवाड़े तक अवश्य पूरा कर ले। उन्नतशील  प्रजातियों वरूणा, राेहिणी, पूसाबहार, पूसा जय किसान, क्रान्ति, कृष्णा, वरदान, वैभव, नरेन्द्र राई, शेखर, किरन आदि का चुनाव कर सकते हैं।

चना, मटर, मसूर असिंचित क्षेत्रों में चना, मटर, मसूर की के बुआई अक्टूबर  माह के द्वितीय अथवा तृतीय सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए। चना व मटर को 30-45 सेमीक्वीक्वाड्रेट तथा मसूर को 20-25 सेमी. की दूरी  पर बनी लाइनों में बोने चाहिए। प्रति हैक्टर देशी या छोटे बीज वाले चने के लिये 60-75 किग्रा. बड़े  बीज चना एवं मटर के लिये 75-100 किग्रा. तथा मसूर के लिये 40-45 किग्राबीज की आवश्यकता पड़ती है।
गेहूं व जौ असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की बुआई खेत में सिंचित नमी से अक्टूबर के द्वितीय पखवाड़े में तथा जौ की बुवाई अक्टूबर  के बीच प्रथम सप्ताह नवम्बर तक कर सकते हैं । अपने क्षेत्र के लिये सस्ं ततु किस्मो का चयन बुआई  के लिये करे। बुवाई लाइनों में 20-22 सेमी की दूरी  पर तथा बीजदर 100 किग्रा प्रति हैक्टेयर टर रखे।
गन्ना शरदकालीन गन्ना ही बुवाई 15 अक्टूबर तक अवश्य कर लें। बुवाई में देरी करनेे से तापमान गिर जाने के कारण गन्ने के जमाव में कमी होती है। गन्ने की शीघ्र पकने वाली, किस्मों को.जे.65, को.जे. 85, को.शा. 8436, को.शा. 88230, काो.शा. 95255, काे.शा. 96268, काे.शा  98247 तथा कोे. शा. 87216 तथा मध्य व विलम्ब से पकने वाली किस्मों में को. पन्त 84212, को.शा. 92423, को. पन्त 96219, कोे. पन्त 97277, को. पन्त 99214, कोे शा. 96275, यू. पी . 0097 आदि का चुनाव कर सकते हैं।

अक्टूबर माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली फसले

धान, मक्का, सोयाबीन उपराऊ (असिंचित) में धान की फसल सितम्बर माह के अन्त तक कट जानी चाहिए। सिंचित क्षेत्रों में धान की कटाई इस माह कर लें। मक्का की फसल लगभग समाप्त हो चुकी होगी। फसलें पकने पर कटाई कर लें।
मडुंवा, झगोरा, रामदाना, गेहूॅं असिंचित क्षेत्रों में गेहूॅं की बुवाई हेतु अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा ऊचें पहाड़ी क्षेत्र हेतु तथा द्वितीय पखवाड़ा निचले पहाड़ी क्षेत्रों के लिये उपयुक्त समय है। गेहूॅं की एच.पी.डब्ल्यू 42, एच.एस.277, एच.एस.365 ऊचें पहाड़ी क्षेत्रों के लिये तथा एच.एस.365, एच.एस.240, वी.एल.804, वी.एल.827, वी.एल.616, एच. 277, एच.डी.2380, यू.पी. 1109 किस्में निचले पहाड़ी क्षेत्रों हेतु उपयुक्त किस्में हैं। बुवाई 18-22
से.मी. की दूरी पर बनी लाइनों में करें। प्रति नाली लगभग 2.0 किग्रा बीज पर्याप्त है।
मसूर असिंचित क्षेत्रों में अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के प्रथम सप्ताह मसूर की बुवाई का उपयुक्त समय है। वी.एलमसूर -1, वी.एल.मसूर -5, वी.एल.मसूर 103, वी.एल.मसूर 104, वी.एल.मसूर -125, वी.एल.मसूर -126, वी.एलमसूर -507, उपयुक्त किस्में हैं। 0.8-1.0 किग्रा. बीज प्रति नाली बुवाई हेतु पयार्प्त है। बुवाई लाइनों में 20-25 से.मी. की दूरी पर करें। 650-800 ग्राम यूरिया, 5.0-7.0 किग्रा. सिंगल सुपर फास्फेट एवं 0.50-0.70 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति नाली की दर से उर्वरक प्रयोग करें।

अक्टूबर माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली सब्जियाँ

टमाटर आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करें- झुलसा नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डाेफिल-45 नामक दवा का छिड़काव करें। नई फसल की रोपाई का उचित समय है। 60×45 से.मी. की दूरी पर रोपाई करें। यदि रोपाई सितम्बर में की है तो 50 किलाग्राम
यूरिया खड़ी फसल में डालें।
 आलू आलू की बोआई का उचित समय हैं। नई किस्मों कुफरी ख्याती, कुफरी चिपसोना 3, का चुनाव करें। खेत की आखिरी जुताई  पर 75:100:100 किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस , पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से डालें व 60*15 से. मी. की दूरी पर बुवाई करे़।
 बैंगन तैयार फलों को तोेडक़र बाजार भेजें। फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई  व सिचांई  करें। फल तथा तना छेदक नामक कीट के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत सेविन नामक दवा का एक छिडक़ाव करें।
 मिर्च  तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजे । फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई  करें।
मूली, गाजर, शलजम इस माह में सभी की बुवाई करे, उचित समय है। खेती की आखिरी तारीख को पेइचिंग में जुताई पर 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर सेे नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालकर 30 सेमी. की दूरी पर मेडे बनायें उन मेड़ो पर 10 सेमी. की दूरी पर बीज बोये।
फूलगोभी तैयार गाेभियों की संख्या में कटाई कर बाजार भेजें। इन सबकी रोपाई का भी उचित समय है। खेती की आखिरी जुताई  पर 75:100:100 किलोग्राम नत्रजन, फास्फोरस स व पाटाश प्रति हैक्टेयर टर की दर से डालकर 60*50 सेमी. की दूरी पर रोपाई करे। रोपाई  के तुरंत बाद हल्की सी सिंचाई करें।
पालक/मैथी, धनियां पूर्व में बोई गई फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई  करे। यदि अभी तक की बुआई नहीं हो पाई  है तो  शीघ्र ही बुआई करें। खेत की आखिरी जुताई  पर 50:60:60 प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालकर 30 सेमी. की दूरी पर कतारे बनाये उनमें बुआई करें।
लहसुन लहसुन की बुआई का उचित समय है। खेत की आखिरी जुताई पर 50:60:60 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालें।क्यारियां बनायें उन क्यारियों से 20 सेमी. की दूरी पर कतारों  में 10 सेमी. की दूरी पर लहसुन की पुत्तियां बोयें। जमीन में इस समय पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
खीरावगीर्य तैयार फलों की तोड़ाई  कर बाजार भेजे। बीज वाली फसल से तैयार फलों (पके)को तोड़कर बीज निकाले साफ करें व सुखाये।
शकरकंद फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुड़ाई व सिंचाई करे। बेलों की पलटाई  करे।
अदरक/हल्दी अरबी तैयार अदरक की खुदाई करें। देर से बोई गई  फसल में 50 यूरिया, खड़ी फसल में डाले।बीमारी के बचाव के लिये  0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव  करें। हल्दी की फसल में एक बार मिट्टी चढ़ाये।
तैयार अरबी की खुदाई करें व बाजार भेजें। बाजार भेजने से पूर्व अरबी की छटाई करें व सर्फाइ करें।

अक्टूबर माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली सब्जियाँ 

आलू घाटियों व तराई में आलू की बुआई का उचित समय है । खेती की आखिरी तारीख को जुताई पर 75:100:100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालें। 60*45 सेमी. की दूरी पर बोआई करें।
टमाटर तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। फलों की तड़ाई पकने से पर्वू  पीला पडऩे पर तोड़े जिससे बाजार पहुंचने तक फल पककर तैयार हो जायगें।
पालक/मेथाी धनिया पत्तियों की कटाई कर बाजार भेजें । बाजार भेजने  से पूर्व सड़ी गली पत्तियों को निकाल दें और छोटी-छोटी गड्डीया बनाकर ही बाजार भेजें। कटाई का काम सुबह करने से उत्तम रहता है । फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई   करें।
 बैंगन फलों की तुड़ाई  कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। फल तथा तना छेदक नामक कीट की बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत सेविन नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
फूलगोभी, पातगोभी, गाठं गोभी तैयार गाेभियों की कटाई कर छटाई करें व बाजार भेजने की व्यवस्था करें। पिछेती फसलों में रोपाई भी की जाती है। 50:80:80 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश डालकर 60*50 सेमी. की दूरी पर रोपाई करें।
खीरावगीर्य फसलें तैयार फलों की तोड़ाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करे। बाजार भेजने से पूर्व फलों की छटांई करें। कीट तथा रोग ग्रस्त फलोम को निकाल दे।
मिर्च  तैयार फलों को तोड़कर बाजार भेजें। बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत  इन्डाेफिल-45 नामक दवा का एक छिड़काव  करें।
अदरक:- अदरक यदि तैयार हो गया हो तो खुदाई कर बाजार भेजें देर से बोई गई फसल में 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें- बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डोफिल -45 नामक दवा का एक छिड़काव करें।
लहसुन लहसनु की बुआई  का समय है। घाटियों में बुआई करें।
हल्दी फसल में मिट्टी चढा़यें, 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें। बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डाेफिल-45 नामक दवा का एक छिड़काव करें।
शकरकंद तराई वाले क्षेत्र में लताये पलटते रहें। मिट्टी चढ़ाये।आवश्यकतानुसार निराई करें ।
मूली, शलजम, गाजर तैयार जडो़  की खुदाई कर बाजार भेजें । बाजार भेजने से पूर्व जड़ों की सफाई  करें। देर से बोने  वाली किस्मों का समय है, बुआई करें।

अक्टूबर माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली फल 

आम बाग में एक बार जुताई करके थालों की तरह सफाई करें। पुष्प गुच्छा रोग की रोकथाम  हेते नेफ्थलीन एसिटिक अम्ल (200 पीपीएम) का छिड़काव करें। बाग में सिचाई  हेतु नालियां बना दें
नीबूंवर्गीय फल बाग की जुताई न करें। पेड़ों पर ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत ) का घोल का छिड़काव  करें।
लीची छाल खाने वाली इल्ली को  रोकथाम हेतु क्वीनालफास 2. 5 इ.सी. (0.1 प्रतिशत ) का छिड़काव करें।
बेर थालों को साफ करें।चूर्णिल आसिता की रोकथाम हेतु कैराथेम (0.06 प्रतिशत) का छिड़काव  करें। बाग में सिंचाई की नालियां बना ले।
आवंला बाग में सिचांई की नालियां बना ले। तना बेधक कीट की रोकथाम हेतु क्वीनालफास 2.5 इ.सी. (0.1 प्रतिशत ) का छिड़काव करें। रस्ट की रोकथाम हेतु ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव करें। नए बाग रोपण का कार्य समाप्त करें।
बेल फूल गिरने से रोकने के लिये क्वीनालफास 2. 5 इ.सी. (0.1 प्रतिशत) और ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत ) घोल का छिड़काव करें।
करौंदा पूराने बाग में ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत ) के घोल का छिड़काव करें। नए बाग लगाने का कार्य  समाप्त करें।
कटहल पूराने बाग में ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत ) के घाले का छिड़काव करें।नए बाग रोपण का कार्य  समाप्त करें। बाग की जुताई करें। थालों को साफ रखें।
अमरूद बरसाती फसल को तोड़ क़र बाजार भेजें । जाडे़ वाली फसल के फलों पर ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत ) या इन्डाेफिल-45 (0.2 प्रतिशत ) का छिड़काव करें।

अक्टूबर माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली फल 

सेब पछेती किस्मों के फलों को तोड़कर बाजार भेजें । मूल व्रत तैयार करने के लिए पौधशाला में बीजों की बुआई का कार्य करें। तने के रोगों की रोकथाम के लिए ब्लाइटाक्स-50 का छिड़काव करें।
नाशपाती पछेतीे किस्मों के फलों को तोड़कर बाजार भेजें। पौधशाला में बीजों की बुआई करें। बाग में ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत ) के घोल का छिड़काव करें।
आडू बाग को स्वच्छ रखें। जडब़े ध्क कीट की रोकथाम हेतु क्लोरापाइरोफास (4 मि.ली./10 लीटर जल में ) घोल बनाकर थालों की सिंचाई करें।
आलूबुखारा बाग को स्वच्छ रखें। जड़बेधक कीट की रोकथाम आडू की भांति करें।
खुबानी बाग को स्वच्छ रखें। जडब़ेधक कीट की रोकथाम आडू की भांति करें।
आम घाटी के आम की तुड़ाई  करके बाजार भेजें ।

अक्टूबर माह में होने वाली पुष्प

यह माह गुलाब के लिए बहुत महत्वपूर्ण है गुलाब की क्यारियों की खुदाई एवं निराई करें। बेकार कल्ले तोड़ना। माह के तीसरे सप्ताह में पौधों की कटाई, छटाई तथा जड़ो को खोदना। 7-10 दिन बाद गोबर की सड़ी खाद और मिट्टी मिलाकर दोबारा जड़ो की भराई।
ग्लैडियोलस के घनकन्दों को 0.05 प्रतिशत कार्बेनडाजिम के घोल में 10-15 मिनट डुबोकर 30*20 सेमी . की दूरी पर रोपण करें। रोपण से पूर्व क्यारियों  में काबाफयूरोन 5 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से मिलाना। रजनीगन्धा के स्पाइक की कटाऊ, छटाई, पैकिगं एवं विपणन।
फल-सब्जी सरंक्षण
सेब से मुरब्बा तथा जैम, क्विंस जैम तथा जैली, पेठा से मुरब्बा तथा कैण्डी बना सकते है । अदरक का कैण्डी तथा अचार बना सकते हैं।अगूंर तथा अनार के स्क्वैश्, शरबत तथा इसके रस का परिरक्षण किया जा सकता है। आवले के विभिन्न उत्पाद बना सकते है । केले  के विभिन्न उत्पाद तथा खीरे का अचार बनाया जा सकता है ।

पशुपालन

गाय-भैंस:- इस माह में भैंस गर्मी पर आती हैं। उन्हें पहचान कर निकट के कृत्रिम गर्भाधान केन्द्र पर ले जायें अथवा अच्छी किस्म के मूर्रा नस्ल के भैंसा से मिलाये। ब्याने वाले पशु की समुचित देखभाल करें। यदि अतं: कृमि नाशन की आवश्यकता हो तो पशु चिकित्सक से अतं: कृमि नाशन करवायें।

भेड़ व बकरी:- पशुओं के आवास को हवादार बनाये रखे। पशुओं के पेट को कृमि रहित करने हेतु पिपराजीन या अन्य दवा चिकित्सक की परामर्श अनुसार दें। बकरी को ठण्ड से बचाने की व्यवस्था करे।

कुक्कुट :- मुर्गी घरों के बिछावन को दिन में दो तीन बार पलटते रहे। ताकि वह सूखता रहें। मुर्गी को कृमि नाशक दवा पिलाये।

मत्स्यः– मछलियों की वृद्धि की नाप जोखा करें। कृत्रिम भोजन का प्रयोग करें। मछलियों के स्वास्थ्य की जाचँ करते रहें एवं जलीय कीटों का नियंत्रण करेम। चूजों एवं बा्रयलरों में ठण्ड से बचाव के उपाय करें।

मौन:- पूरानी रानी मधुमक्खी को मार दे एवं नयी रानी का सजृन होने दें। जिन वशों में नयी रानी बनवानी हो उसमें पूरानी रानी को मारने के बाद अण्डो या तीन दिन से कम उम्र के गव्र का होना सुनिश्चित करेम। नये छत्ताधार आवश्यकतानुसार मौन ग्रहो में दे।

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