खस या वेटीवर की खेती कैसे करें?
साधारण नाम- खस, वेटीवर
वानस्पतिक नाम- kraisopogan जिजैनियोइडिस
उन्नत किस्में- के एस- 1, के एस- 2, धारिणी, केशरी, गुलाबी, सिम-व्रद्धि, सीमैप खस- 15, सीमैप खस- 22, सीमैप खुशनलिका।
उपयोग- जड़ो से प्राप्त सुगन्धित तेल, कास्मेटिक, साबुन एवं इत्र आदि में प्रयोग किया जाता है। इसका तेल उच्च श्रेणी का स्थिरक होने के कारण चन्दन, लेवेंडर एवं गुलाब के तेल पर ब्लेंडिंग में प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त तम्बाकू, पानमसाला एवं शीतल पेय पदार्थों में प्रयोग किया जाता है।
जलवायु- मुख्य रूप से समशीतोष्ण जलवायु।
भूमि- बलुई दोमट भूमि उपयुक्त, भारी एवं बलुई भूमि में भी खस की खेती की जा सकती है। जलभराव एवं असिंचित क्षेत्रों के अतिरिक्त 9.5 पी एच मान वाली भूमि में भी खस की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
प्रवर्धन- खस मुख्यतः स्लिप्स (कल्लों) द्वारा ही लगाई जाती है। पौध सामग्री प्राप्त करने के लिए 7-8 माह पुराने खस के कल्ले को 25-30 सेमी ऊपर से काट देते है। उसके बाद क्लम्प को खोदकर स्लिप को अलग कर देते हैं।
पौधरोपण एवं भूमि की तैयारी- सामान्यतः रोपाई मानसून ( जुलाई-अगस्त) में करते है किंतु खस की एकवर्षीय फसल के लिए स्लिप रोपण का उपयुक्त समय उत्तर भारत में , अक्टूबर- नवम्बर एवं जनवरी फरवरी है। रोपाई 45×30 सेमी की दुरी पर करना चाहिए। अंत: फसल के लिए रोपाई 60×30 सेमी की दुरी पर करें।
अंत: फसल- अक्टूबर- नवम्बर में रोपी खस के साथ गेहूं तथा जनवरी फरवरी में रोपी खस के साथ मेंथा आरवेंसिस, मेंथा piprenta एवं तुलसी की अंत: फसल ले सकते हैं। इस प्रकार अधिक लाभ अर्जित किया जा सकता है।
खाद एवं उर्वरक- खस की फसल में 10-15 ट्राली सड़ी गोबर की खाद तथा 80-100 किग्रा नत्रजन,50-60 किग्रा फास्फोरस एवं 40-59 किग्रा पोटास प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन की मात्रा चार बराबर भाग में रोपाई के क्रमशः 30, 60, 90 एवं 120 दिन बाद दी जाती है।
सिंचाई- पौध रोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई करनी चाहिए। और फिर आवश्यकतानुसार 7-8 सिंचाई करनी चाहिए।
कटाई- जड़ो की खुदाई 11- 13 माह में करना ठीक रहता है। जड़ो की खुदाई करने का समय दिसम्बर एवं जनवरी माह है।
उपज- जड़ की उपज 15 से 25 कुंतल/हे. होती है जिसमें 18 से 25 किग्रा/हे. तेल प्राप्त होता है।
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