पर्वतीय क्षेत्रों के लिए राइसबीन एक उपयुक्त फसल है। मध्य एवं ऊॅचाई (1500-2200 मी. तक) वाले क्षेत्रों में जहाँ पर दूसरी दलहनी फसल जैसे उर्द, मूँग , अरहर आदि उगाना सम्भव नहीं होता है, वहॉ राइसबीन की फसल सुगमतापूर्वक उगाई जा सकती है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसे नौरंगी तथा रगड़मांस आदि नामों से जाना जाता है।
आमतौर पर राइसबीन की फसल मिश्रित खेती के रूप में ली जाती है। परन्तु इसकी शद्धु खेती अधिक लाभदायक होती है। ‘‘राइसबीन-गेहूॅ’’ एक आदर्श फसल चक्र है जिससे गेहुँ की फसल को वांछित नत्रजन की मात्रा का क...
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Pulse Crops (दलहनी फसलें)
मूंग (green gram) की बुवाई का उपयुक्त समय एवं अधिकतम उत्पादन हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।
मूंग- बुवाई का समय
पर्वतीय क्षत्रेा में मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय घाटिया में जून का द्वितीय पखवाडा़ है। विलम्ब से बुवाई करन पर उपज में कमी आ जाती है। तराई-भावर एव मैदानी क्षत्रेा में मूंग की बुवाई का सर्वाेत्तम समय जुलाई क अन्तिम सप्ताह से अगस्त का दसूरा सप्ताह है। जायद में बुवाई का उचित समय मार्च के द्वितीय पखवाड से 10 अप्रैल तक है। तराई क्षत्रे में मूंग की बुवाई मार्च क अतं तक कर लनेी चाहिए।
बुवाई की विधि
बुवाई कॅूड में हल के पीछ कर। पंक्ति से पंक्ति की दरूी 30-45 स.मी. हानेी चाहिए। ...
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मसूर की खेती (Split Red Lentil) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु
उत्तराखण्ड में मसूर रबी की एक प्रमुख फसल है। मसूर की खेती मे अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
मसूर के खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ हैं?
मसूर की खेती में बुवाई की जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ जैसे की पूसा वैभव, आई पी एल८१, नरेन्द्र मसूर १, पन्त मसूर ५, डी पी एल १५ ,के ७५ तथा आई पी एल ४०६ इत्यादि प्रजातियाँ हैंI
मसूर की खेती मे बीज की मात्रा
समय से बुवाई : 30-40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर
देर से बुवाई ...
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चने की खेती (Chickpeas Cultivation) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।
चने की खेती : दलहनी फसलो मे चना का प्रमुख सथान है अधिक पैदावार करने हेतु निम्न बिन्दुओं पर विशेष् ध्यान देना चाहिए।
चने की खेती के लिए प्रमुख प्रजातियाँ
चने की देशी प्रजातियाँ सामान्य प्रजातियाँ जैसे अवरोधी, पूसा 256, राधे, के 850, जे. जी. 16 तथा के.जी.डी-1168 इत्यादि प्रमुख प्रजातियाँ है, इसकी वुवाई करनी चाहिए, दूसरा आता है, देर से वुवाई करने वाली प्रजातियाँ होती है, जैसे की पूसा 372, उदय तथा पन्त जी. 186, इसके बाद आता है, काबुली चना जिसकी किसान भाई बुवाई करते है, इसके लिए प्रमुख प्रजातिय...
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अरहर कीट नियंत्रण – अरहर में होने वाले हानिकारक कीटों का प्रबंधन।
अरहर कीट नियंत्रण : अरहर की फसल मे होने वाले कीटों का विवरण।
अरहर कीट नियंत्रण : अरहर की फसल को कीटो से वचाव के लिए क्या करे
फलीबेधक कीट
इनकी गिडारे फलिय़ों के अदंर घुसकर दाने को खाकर हानि पहुॅचाती है। प्रौढ कीटो का अनुश्रवण करने के लिए 5-6 फरेमेने प्रपचं/है. की दर से फसल मे फूल आते समय लगाय़े यदि 5-6 माथ प्रति प्रपचं दो-तीन दिन लगातार दिखाई देतो निम्नलिखितमे किसी एक दवा का प्रयागे फसल मे फूल आने पर करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो दसूरा छिडक़ाव 15 दिन के बाद करे, इससे अरहर की फसल का कीटो से वचाव ...
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अरहर (Split Red gram) की बुवाई का उपयुक्त समय एवं उन्नत खेती हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।
अरहर की खेती अकेले या दूसरी फसलो के साथ सहफसली खेती के रूप में भी कर सकते है, सहफसली खेती के रूप में ज्यादातर ज्वार बाजरा मक्का सोयाबीन की खेती की जा सकती है।
अरहर की उन्नतशील प्रजातियाँ क्या होती है?
तुवर की खेती के लिए दो प्रकार की उन्नतशील प्रजातियाँ उगाई जाती है पहली अगेती प्रजातियाँ होती है, जिसमे उन्नत प्रजातियाँ है पारस, टाइप २१, पूसा ९९२, उपास १२०, दूसरी पछेती या देर से पकने वाली प्रजातियाँ है बहार है, अमर है, पूसा ९ है, नरेन्द्र अरहर १ है आजाद अरहर १ ,मालवीय बहार, मालवीय चमत्...
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गहत (Horse Gram) के अधिकतम उत्पादन हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।
गहत उत्तराखण्ड के पहाडी़ क्षेत्र मे उगाने वाली प्रमुख दलहनी फसल है।
गहत की कौन सी ऐसी प्रजातियाँ है, जिनका इस्तेमाल हम खेती के लिए करे?
प्रजाति
उत्पादकता (कु./हे.)
पकने की अवधि (दिनों में)
वी.एल.गहत-1
10-15
150-155
वी.एल.गहत-8
10-13
125-130
You can also check out : उर्द कीट प्रबंधन
गहत की बुवाई का समय
इसकी बुवाई जनू के प्रथम पखवाडे मे की जाती है।
बुवाई में बीज की मात्रा
40-50 कि.ग्रा./है 800 ग्रा/नाली बुवाई कता...
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राजमा (Red Kidney Beans) की अधिकतम खेती के लिये ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु|
राजमा की खेती रबी ऋतू में की जाती है | यह भारत में उत्तर के मैदानी क्षेत्रो में अधिक उगाया जाता है | मुख्य रूप से हिमालयन रीजन की के पहाड़ी क्षेत्रो तथा महाराष्ट्र के सतारा जिले में इसका उत्पादन अधिक किया जाता है|
राजमा की खेती के लिए किस प्रकार से हमें अपने खेतों की तैयारी करनी चाहिए?
खरीफ की फसल के बाद खेत की पहली जुटाई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए | खेत को समतल करते हुए पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिए इसके पश्चात ही बुवाई करनी चा...
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उर्द कीट प्रबंधन – उर्द में लगने वाले कीट का नियंत्रण।
उर्द में लगने वाले कीट की संभावनाए, और उन पर कैसे नियंत्रण स्थापित करे ।
उर्द में लगने वाले कीट
तना मक्खी
सुडिय़ा द्वारा ने को खोखला अथवा सुरगं बनाकर नुकसान पहुॅचाया जाता है। जिसस पौधा पीला पडक़र बाद में सुख जात है। बुवाई के पर्वू बीज का इमिडाक्लाेप्रड का 3 मि.ली. अथवा डायमथ्ऐट 30 ई.सीका 8 मि.ली./कि.ग्रा. की दर से उपचारित कर के बुवाई करें। मानाक्रेटेफेस/डाईमथ्ऐट/मिथाइल डिमटेन 1.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से फसल जमाव के एक सप्ताह बाद छिडक़ाव करे।
बिहार रोमिल सूड़ी
सिडयॉ पत्तिया का खाक...
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उर्द (Urad Daal) की फसल के अधिकतम उत्पादन हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।
उर्द (उरद) की खेती खरीफ एव जायद में की जाती है। उर्द देश की एक मुख्य दलहनी फसल है, इसकी खेती मुख्य रूप से खरीफ में की जाती है, लेकिन जायद में समय से बुवाई सघन पद्धतियों को अपनाकर करने से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है, उर्द की खेती पूरे उत्तर प्रदेश के सभी जिलो में की जाती है ।
उर्द की कौन सी ऐसी प्रजातियाँ है, जिनका इस्तेमाल हम खेती के लिए करे?
मुख्य रूप से दो प्रकार की प्रजातियाँ पायी जाती है, पहला खरीफ में उत्पादन हेतु जैसे कि - शेखर-3, आजाद उर्द-3, पन्त उर्द-31, डव्लू.वी.-108, पन्...
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