जौ(Barley) की उन्नत प्रजातियाँ , पैदावार कुन्तल/हेक्टेयर एवं विशेषताए|

जौ
जौ एक खाद्यान्न एवं औद्योगिक फसल है। इसका उपयागे मानव, पशुओं के चारे व दाने में एवं बियर आदि बनाने में किया जाता है। असिंचित दशा में जौ की खेती गेहूँ की अपेक्षा अधिक लाभपद्र है। भूमि एवं जलवायु अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि में जौ की फसल अच्छी होती है। रेतीली एवं कमजोर भूमि में भी यह सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। जौ जल भराव के प्रति गेहूँ की अपेक्षा अधिक संवेदनशील है। अम्लीय भूमि जौ के लिए अनुपयुक्त है। जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है। गर्म जलवायुवाले क्षेत्रों में इसकी खेती ठंडे (रबी) मौसम मे...
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Basil (Tulsi-तुलसी)- What is it & how to grow it?

Basil(Tulsi-तुलसी)
Basil(Tulsi-तुलसी.) Ocimum tentiform (synonym Ocimum sanctum), commonly known as holy basil, or tulsi, is an aromatic plant in the family Lamiaceae which is native to the Indian subcontinent and widespread as a cultivated plant throughout the Southeast Asian tropics. Tulsi is cultivated for religious and medicinal purposes, and for its essential oil. It is widely known across the Indian subcontinent as a medicinal plant and a herbal tea, commonly used in Ayurveda, and has an important role w...
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झंगोरा (मादिरा/साॅवा) की उन्नत फ़सल कैसे करे ?

झंगोरा
पर्वतीय क्षेत्रों की उपराऊ भूमि में परम्परागत द्विवर्षीय फसल चक्र ‘‘मडुुवा-परती-चेतकी धान/ झंगोरा-गेहू  के अन्र्तगत झंगोरा या मादिरा की खेती की जाती है। यह दाने के साथ-साथ चारे के लिए भी एक महत्वपूर्ण फसल है। झंगोरा की उन्नत किस्में वी.एल.-29: यह अल्पावधि 1⁄485-90 दिन1⁄2 वाली किस्म है। वी.एल. मादिरा-172ः यह मध्यम अवधि वाली 1⁄495-100 दिन1⁄2 वाली किस्म है। पी.आर.जे.-1ः यह विलम्ब अवधि वाली 1⁄4120-130 दिन1⁄2 किस्म है। उपरोक्त किस्मों से लगभग 20-25 कु./है. 1⁄440-50 कि.ग्रा. प्रति नाली1⁄2 ...
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अक्टूबर माह में मैदानी क्षेत्र एवं पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली फसले, फल, पुष्प, पशुपालन।

अक्टूबर माह
अक्टूबर माह में  मैदानी क्षेत्र में होने वाली फसले धान जो किस्में पक गई हो। उनकी कटाई कर लें। कटाई जड़ सेे सटाकर करें। भण्डारण हेतु दानों में नमी 12-14 प्रतिशत रखनी चाहिए। दरे से बोई गई फसल में फूल बनते समय खते में सिचांई  अवश्य करे। कभी-कभी गधी बगं का प्रकोप हो जाता है । इसकी रोक थाम के लिये इमिडाक्लाेिपड्र 17.8 एस.एल. का 150 मिली. या मोनोक्रोटाफास 36 एस. एल. का 1.4 मिली मात्रा प्रति हैक्टेयर  का फूल आने के बाद बूरकाव प्रात़ः या शाम को करें। मक्का समय से बोई गई फसल की  कटाई करे। सकंर व विजय...
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धान(paddy) की उन्‍नत प्रजातियॉं(जो मुख्यतः भारत में उगाए जाते हैं), पैदावार कुन्‍तल/हैक्‍टेयर एवं वि‍शेषताऐं |

धान-paddy- की उन्‍नत प्रजातियॉं
धान (Paddy)एक प्रमुख फसल है जिससे चावल निकाला जाता है। यह भारत सहित एशिया एवं विश्व के बहुत से देशों का मुख्य भोजन है। विश्व में धान (चावल) के कुल उत्पादन का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा कम आय वाले देशों में छोटे स्तर के किसानों द्वारा उगाया जाता है   धान के अधिकतम उत्पादन हेतु ध्यान देने हेतु विशेष बिन्दु।   धान की उन्‍नत प्रजातियॉं -जो मुख्यतः भारत में उगाए जाते हैं Varieties (कि‍स्‍में) Production पैदावार कुन्‍तल/हैक्‍टेयर Characteristics (वि‍शेषताऐं) ...
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गन्ने (sugarcane) की बिजाई करने के लिए अद्भुत तकनीक- जिस से गन्ना 3 गुणा ज्यादा निकलता है

गन्ना 3 गुणा ज्यादा
गन्ने की बिजाई का नया तरीका गन्ने (sugarcane) की बिजाई करने के लिए अद्भुत तकनीक-गन्ना लगाने की गडढा बुवाई विधि भरतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, द्वारा विकसित की गई हैं। दरअसल गन्ना बुवाई के  पश्चात प्राप्त गन्ने की फसल में मातृ गन्ने एवं कल्ले दोनों  बनते है । मातृ गन्ने बुवाई के  30-35 दिनों के  बाद निकलते हैं, जबकि कल्ले मातृ गन्ने निकलने के  45-60 दिनों  बाद निकलते है। इस कारण मातृ गन्नों  की अपेक्षा कल्ले कमजोर होते है तथा इनकी लंबाई, मोटाई और  वजन भी कम होता है । उत्तर भारत में गन्ने में  लगभ...
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राई की खेती (Rye) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

राई की खेती
तिलहनी फसलों में राई का प्रमुख स्थान है। राई की खेती सीमित सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक हैं। राई की उन्नत किस्में मैदानी, तराई, भावर व घाटी के सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त प्रजातियाँ प्रजाति उत्पादन क्षमता पकने कीअवधि उपयुक्त नरेन्द्र अगेती राई-4 14-16 100-110 अगेती बुआई हेतु पंत राई-19 20-25 115-119 अगेती बुआई हेतु पंत राई-19 20-28 125-130 समय से बुआई, सिंचित कृष्णा 20-28 128-132 समय से बुआई, सिंचित पंत राई-20 25-30 125-127 समय से ब...
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दालचीनी की खेती (Cinnamon) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

दालचीनी की खेती
दालचीनी की खेती : दालचीनी (सिन्नामोमम वेरम; परिवार-लोरेसी) प्राचीन काल से ही प्रयोग किए जाने वाले मसालों में से एक ही और मुख्यतः तने की आंतरिक छाल के लिए इसकी खेती की जाती है । दालीचीनी का मूल- स्थान श्रीलंका है और इसकी खेती केरल और तमिलनाडु के पश्चिम घाट के निचले क्षेत्रों में की जाती है । दालचीनी की खेती के लिए मृदा और जलवायु दालचीनी एक सशक्त पौधा है और विभिन्न प्रकार की मिट्टी एवं जलवायु में पैदा होता है । भारत के पश्चिमी तट में कम पोषक तत्ववाली लैटेराइट एवं रेतीली मिट्टी में यह पैदा हो...
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अदरक की खेती (Ginger) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

अदरक की खेती
अदरक की खेती : अदरक (ज़िन्जिबर ओफिसिनल) (समूह-जिन्जिबेरेसी) एक झाड़ीनुमा बहुवर्षीय पौधा है, जिसक प्रकन्द मसाले के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं । अदरक उत्पादन में भारत विश्व में सबसे आगे है । भारत के कई राज्यों में अदरक की खेती की जाती है । देश के प्रमुख अदरक उत्पादक राज्य केरल और मेघालय हैं । भारत में 8 लाख हेक्टर टन से इसका उत्पादन 13 लाख टन है । अदरक की खेती के लिए भूमि और जलवायु गर्म एवं आर्द्र में अदरक की पैदावार अच्छी होती है और समुद्र तट से 1500 मी. की ऊँचाई तक इसकी खेती की जाती है ...
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काली मिर्च की खेती (Black Pepper) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

काली मिर्च की खेती Black Pepper
काली मिर्च (पाइपर नाइग्रम) एक बहुवर्षीय वेल है, जो पाईपरेसी परिवार से सम्बन्धित है । इसके छोटे गोल फल, मसाले और औषधी दोनों रूपों में इस्तेमाल किए जाते हैं । वाणिज्यिक रूप से काली मिर्च और सफेद मिर्च बाजार में मिलती है । पके फलों को वैसे ही सूखाकर काली मिर्च तैयार की जाती है और सफेद मिर्च अच्छी तरह पके हुए फलों की बाहरी त्वचा हटाने के बाद उसे सूखाकर तैयार की जाती है । काली मिर्च का प्रयोग मसाले के रूप में विभिन्न खाद्य पदार्थों को तैयार करने में तथा औषधी के रूप में होता है । पूरे विश्व में ...
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