कोदा / मंडुवा:-
मंडुवा को अलग-अलग नामों से जाना जाता है ,
कन्नड़ नाम रागी है|
अंग्रेजी –फिंगर मिलेट कहते हैं |
गढ़वाल , कुमांऊँ में मंडुवा/कोदा नाम ज्यादा प्रचलन में है | इसे उपेक्षित मोटे अनाज की श्रेणी में रखा है जबकि यह सबसे बारीक है और दुनिया में जितने अनाज हैं , उनमें पौष्टिकता की दृष्टि से मंडुवा सबसे सिखर पर है | स्त्री , पुरुष , बच्चों एवं बूढों सबके लिए यह बहुत उपयोगी है | बढ़ते बच्चों के लिए तो यह और भी उपयोगी है , क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा कैल्शियम पाया जाता है |
पर्वतीय असिंचित क्षेत्रों की खरीफ फसल प्रणाली में मडूंवा धान के बाद दूसरी मुख्य फसल है। इस फसल में प्रतिकूल मौसम को सहन करने की अभूतपूर्व सामर्थ्य है। मंडुवामें प्रोटीन धान से अधिक तथा कैल्शियम की मात्रा धान और गेहूँ से क्रमशः 35 तथा 8 गुनी होती है।
उन्नत किस्में
पी.ई. एस.-176, पी.ई.एस.-110, वी.एल.-149,पतं रानी मंडुवा-1, पतं रानी मंडुवा-2,वी. एल.मंडुवा 315 एवं वी.एल. मंडुवा 324 मध्य अवधि 105-110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। पतं मंडुवा-3, वी.एल. मंडुवा-204 एवं वी.एल. मंडुवा-146, अल्पकालीन अवधि 95 से 100 दिन में पकने वाली प्रजातियाँ है। कम व मध्यम ऊचाई वाले क्षेत्रों में मध्य अवधि की किस्मों एवं सभी ऊचाई वाले क्षेत्रों में अल्पकालीन प्रजातियों को लगाना चाहिए। पर्वतीय परिसर रानीचौरी द्वारा विकसित प्रजाति पी.आर.एम. 1 से दाना के साथ ही अधिक चारा भी प्राप्त कर सकते है।
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बुवाई का समय
मई अन्त से जनू मध्य तक का समय उपयुक्त है।
बीज की मात्रा एवं बुवाई की विधि
सीधी बुवाई के लिये 8-10 कि.ग्रा./है. (160-200 ग्रा./नाली) बीज की आवश्यकता होती है। मंडुवा की बुवाई प्रायः छिटककर की जाती है। लेकिन यदि इसकी बुवाई हल्की गहरी कूड़ों में पंक्तियो में 20-25 से.मी. की दूरी पर की जायं े तो खड़ी फसल से खरपतवार निकालने में आसानी रहती है। सीधी बुवाई के लगभग 1 माह बाद पौधों की छंटनी कर पौधे से पौधे के बीच की दूरी 7.5-10.0 से.मी. रखनी चाहिए। मंडुवा को रोपाई विधि द्वारा (20-25 दिन की पौध होने पर) लगा सकते हैं। इसे 20*10 से.मी. की दूरी पर बोये। पौधशाला में बीज (4-5 कि.गा्र . प्रि त हैक्टर) मइ र् के अन्त से जून के प्रथम सप्ताह तक लगाते हैं। मंडुवा की रोपाई जून के तीसरे सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक कर सकते हैं।
उर्वरक का प्रयोग
मृदा परीक्षण के आधार पर ही उर्वरको का प्रयोग किया जाये। अच्छी उपज के लिए 40 कि.ग्रा. नत्रजन तथा 20 कि.ग्रा. फॉस्फोरस की प्रति हैक्टर (क्रमशः 800 व 400 ग्रा. प्रति नाली) आवश्यकता पड़ती है। नत्रजन का आधा भाग तथा सम्पूर्ण फॉस्फोरस जुताई के साथ डालना चाहिए। नत्रजन का शेष भाग पौध जमाव के लगभग 3 सप्ताह अर्थात प्रथम निराई के शीघ्र बाद प्रयोग करना चाहिए। गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद की लगभग 100 कु.प्रति है. (2 कु.प्रति नाली) मात्रा का प्रयोग अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए लाभदायक पाया गया है।
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खरपतवार नियंत्रण
निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को यथाशीघ्र निकाल देना चाहिए। मंडुवा में बुवाई के 3 सप्ताह के अन्दर 2, 4-डी साे डयम साल्ट 80 प्रतिशत 1.0 किग्रा./है. (20 ग्रा . प्रति नाली) की दर से छिड़काव करने से बड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का नियंत्रण किया जा सकता है।
कीट नियंत्रण
इस फसल में तना छदे क कीट क्षति पहुँचाता है। अतः इसकी रोकथाम असिंचित धान की भाँति करें।
रोग नियंत्रण
मंडुवा की फसल में झोंका रागे के लक्षण प्रकट होने पर प्रारम्भ में बलियो के निकलते समय कार्बेन्डाजिम अथवा एडीनाफे ने फास 50% ई.सी का 0.1% घोल 700-800 लीटर पानी प्रति है. (14-16 लीटर पानी प्रति नाली) की दर से 8-10 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार 1-2 छिड़काव करें। सर्कोस्पोरा पर्ण चित्ती के नियंत्रण हेतु क्लोरोथेलोनिल 0.1% घाले का छिड़काव करें।
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उपज
मडं ुवा का उत्पादन 15-18 कु./है. (30-36 कि.ग्रा. प्रति नाली) तक लिया जा सकता है।