मार्च माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली फसले
गेहूं:- गेहेूं की फसल में नमी का अभाव न होने दें और स्थिति देखकर सिंचाई करें । इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पानी देते समय तेज हवा न चल रही हो। मण्डुसी व जंगली जई जैसे खरपतवारों को नष्ट कर दें। खुला कन्डुवा से ग्रसित गेहेूं की बालियों को देखते ही खेत से
सावधानीपूव कर् लिफाफे से ढक कर निकाल दें तथा मिट्टी में गहरे दबाकर नष्ट करें या जला दें। कन्डुवा ग्रसित बालियों को निकालते समय पौधों को कम से कम हिलाएं अन्यथा फंफूदी बिखर कर बीज को संक्रमित कर देगें। अगर माहू का प्रकोप अधिक हो तथा माहू को खाने वाले गिडार की संख्या कम हो तो क्वीनालफास 25 ई.सी. का 1 ली. या मोनोक्रोटोफास 25 ई.सी. का 1.4 लीटर दवा को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें । सरसों:- सरसों पककर लगभग तैयार हो रही है। फसल की 75 प्रतिशत फलियों के सुनहरा पीला पड़ने पर कटाई करना उचित रहता है। कटाई सुबह के समय करने से फलियों के चटकने का अंदेशा नहीं रहता। कटाई के बाद छोटे – छोटे बन्डल बनाकर खलिहान में लाकर सूखने के लिए छोड़ दें फिर गहाई करें तथा बीज को पूर्ण रूप से सुखा कर भंडारण करें ।
गन्ना:- गन्ने की पिछेती किस्मों की कटाई इसी माह में समाप्त करें व नई फसल की बुवाई इस माह में पूरी कर लें । बीज प्रमाणित बीज पौधशाला से प्राप्त करना चाहिए या निरोगी नौलख फसल से बीज लें । लाल सड़न रोग ग्रस्त इलाकों में गन्ने की बुवाई नम गर्म हवा (एम.एच.ए.टी.) से बीज उपचारित कराकर ही करना चाहिए। बुवाई 60 से 75 से.मी. की दूरी पर बने कूडों में करनी चाहिए। अच्छी उपज के लिए 120 किलोग्राम नत्रजन, 50-60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 30-40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है। दीमक, कनसुआ यदि कीटों की रोकथाम हेतु 6.25 लीटर क्लोरपाइरीफास 20 ई.सी. को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर हजारे द्वारा कूडों में पोरियों के ऊपर डालें तथा तुरन्त मिट्टी से ढक दें । खरपतवारों की रोकथाम के लिए एटंाजीन 2.0 किग्रा. सक्रिय तत्व प्रति हैक्टर बुवाई के तुरन्त बाद 600-750 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें । गन्ने के साथ इस मौसम में लगाई जाने वाली मूगं, उर्द, लोबिया आदि फसलों को अन्र्तफसली के रूप में लगाया जा सकता है। गन्ने के दो लाईनों के बीच में एक लाईन अन्र्तफसली की लगा सकते हैं ।
सूरजमुखी:- सूरजमुखी को बुवाई के 15-20 दिन बाद विरलीकरण द्वारा पौधों से पौधों की दूरी 25-30 से.मी रखें । फसल में पहली सिंचाई 2 0-25 दिन पर करें । इसके बाद 40 किलोग्राम नाइट्रोजन है की दर से यूरिया के रूप में टापडे्सिग करें । खरपतवार का प्रकोप हो तो फसल के 25-30 दिन की होते ही एक निराई- गुडाई करे । सिंचाई 15-20 दिन के अंतराल पर करे । कटुआ सूड (हरे रंग) की आक्रमण हो तो 10 किलोग्राम फेनवेलरेट 0.4 प्रतिशत धूल प्रति हैक्टर की दर से भुरकाव करें ।
चना वर्षा के अभाव में चने में फूल आने के बाद हल्की सिंचाई करें । भारी भूमि में सिंचाई फुब्बारे विधि से करना चाहिए।
मेन्था फसल की 25-30 दिन पर हल्की गुडाई करे। आवश्यकतानुसार 15-20 के अंतराल पर सिंचाई करें ।
उर्द एवं मूंग : उर्द के बुवाई का उचित समय मार्च का प्रथम पखवाड़ा तथा मूंग की बुवाई का उपयुक्त समय मार्च के दूसरे पक्ष से 10 अप्रैल तक है। मूंग की पंत मूंग 1, पंत मूंग 2, पंत मूंग 5 तथा नरेन्द्र मूंग 1 उन्नत किस्में हैं । उर्द की उन्नत किस्में पंत यू. 19, पंत यू. 31, पंत उर्द 35, पंत उर्द 40 एवं नरेन्द्र यू. 1 है। एक हैक्टर हेतु मूंग की 25-30 किलोग्राम तथा उर्द की 30 से 35 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। मूंग की बुवाई 25-30 से.मी. की दूरी पर लाइनों में करें । बीज 4-5 से.मी. गहराई पर बोएं । उर्द की बुवाई लाईन से लाईन की दूरी 20-25 से.मी.पर करें ।
उर्द एवं मूंग हेतु 20 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40-45 किलोग्राम फास्फोरस प्रति है. की आवश्यकता होती है। बुवाई से पहले राइजोबियम कल्चर का 200 ग्राम मात्रा (एक पैकेट) 10 किग्रा. बीज से उपचारित करके बोये बरसीम बरसीम की कटाई करते रहें । प्रत्येक कटाई के बाद सिंचाई करें । बीज बनाने हेतु बरसीम की कटाई मार्च के दूसरे पखवाड़े से रोक देनी चाहिए।
मार्च माह में पर्वतीय क्षेत्र होने में वाली फसले
गेहूं जौ सिंचित दशा में बोये गये गेहूं की फसल में पर्याप्त वर्षा न होने की स्थिति में फूल आने पर सिंचाई अवश्य करें । उपराऊ/उखड़ी क्षेत्रों में 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव करें । रतुआ या गेरूई रोग एवं पर्ण झुलसा रोग नियन्त्रण के लिये मेन्कोजेव दवा की 40 ग्राम मात्रा को
20 लीटर पानी में घोलकर प्रति नाली के हिसाब से आवश्यकतानुसार छिड़काव करें ।
चना, मटर, मसूर पानी की उपलब्धतानुसार सिंचाई फलियों में दाना आते समय की जानी चाहिए। चना, मटर के पत्ती सुरगक व फली छेदक कीट तथा मसूर का माहू कीट नियन्त्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. दवा की 15 मि.ली. दवा को 16-20 लीटर पानी में घोलकर प्रति नाली की दर से आवश्यकतानुसार छिड़काव करें ।
तोरिया/सरसों माहू कीट के नियन्त्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. दवा की 15 मि.ली. मात्रा को
16-20 लीटर पानी में घोलकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करें । आवश्यकता पड़ने पर 15-20 दिन बाद पुनः छिड़काव करें ।
मार्च माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली सब्जिया
आलू : आलू की खुदाई का काम 15 मार्च तक अवश्य ही पूरा कर दें । देर से खुदाई करने पर आलू सड़ना शुरु हो जाता है। हरे, छोटे व कटे आलुओं को निकालकर शेष मात्रा को या तो बाजार भेजे या शीत भंडार में रखने की व्यवस्था करें । साधारण रुप से 80 किलोग्राम वजन की बोरियां रखना उचित है।
टमाटर जनवरी-फरवरी माहों में रोपी गई फसलों में 0.25 प्रतिशत इन्डोफिल-45 नामक दवा का छिड़काव करे । ग्रीष्मकालीन फसल में फलछेदक नामक कीट का आक्रमण काफी होता है। अतः इसके बचाव के लिये पुष्पावस्था में 0.2 प्रतिशत सेविन या थायोडान नामक कीटनाशी का एक छिड़काव अवश्य ही करें ।
बैंगन पूर्व में रोपी गई फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुडाई व सिंचाई करें । 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टर की दर से खड़ी फसल में डाले यदि अभी तक रोपाई नहीं की है तो 60 से 45 सेमी. की दूरी पर रोपाई करें व सिंचाई करें । कीटों के आक्रमण से बचाने के लिये 0.2 सेविन नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
मटर तैयार फलियों को तोड कर बाजार भेजें । बीज वाली फसल की कटाई करें व बीज निकालें ।
फूलगोभी, पात गोभी व गांठगोभी तैयार गोभियों की कटाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें । फसल में आवश्यकतानुसार निराई-गुडाई व सिंचाई करें । बीज वाली फसल को माहू से बचाव के लियेे 0.15 प्रतिशत मैटासिस्टाक नामक कीटनाशी का एक छिड़काव करें।
मूली,गाजर व शलजम तैयार जड़ों को बाजार भेजने की व्यवस्था करें बीज वाली फसलों में आवश्यकतानुसार निराई-गुडाई व सिंचाई करें । माहू के बचाव के लिये 0.15 मैटासिस्टाक नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें ।
प्याज फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुडाई व सिंचाई करें । 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डाले। बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डोफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें ।
लहसुन फसल में आवश्यकतानुसार निराई- गुडाई व सिंचाई करें । पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई दें तो 0.25 प्रतिशत इन्डोफिल-45 नामक दवा का एक छिड़काव करें ।
पालक, मैथी, धनियां तैयार पक्तियों की कटाई कर छोटी-छोटी गड्डियाँ बनायें व बाजार भेजें । बीज वाली फसलों में आवश्यकतानुसार निराई- गुडाई व सिंचाई करें । अवांछित पौधों को निकालें । कीटों के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत सेविन नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें ।
भिन्डी, लोबिया व राजमा आवश्यकतानुसार निराई- गुडाई व सिंचाई करें । 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें । यूरिया पत्तियों पर न पड़ने पाये कीटों के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत सेविन या मैलाथियान 50 ई.सी, 2.0 मिली. प्रति लीटर पानी का छिड़काव करे । बीज वाली फसलों में अवांछित पौधों को निकाले ।
मिर्च पूर्व में रोपी गई फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुडाई व सिंचाई करे । 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टर की दर से खड़ी फसल में डालें । यदि अभी तक रोपाई नहीं की गई है तो व 50 ग 50 सेमी. की दूरी पर रोपाई करें ।
शिमला मिर्च तैयार फलों की तोडाइ कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें तथा फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुडाई व सिंचाई करें । यदि फलों व पत्तियों पर धब्बे दिखाई दें तो 0.25 प्रतिशत इन्डोफिल-45 का एक छिड़काव करें।
खीरावर्गीय फसलें फसलों में आवश्यकतानुसार निराई- गुडाई व सिंचाई करें । ककड़ी के फल तैयार हो गये होंगे । उनको तोड कर बाजार भेजे। कीटों के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत सेविन या मैलाथियान 50 ई.सी. 2.0 मिली प्रति लीटर पानी में कीटनाशी दवा का घोल बनाकर एक
छिड़काव करें । 10-15 ग्राम यूरिया प्रति थाले की दर से डालें लेकिन यूरिया पत्तियों पर न पड़ने पाये।
अदरक, हल्दी इन फसलों की बोआई का उत्तम समय है। अतः खेत की तैयारी शुरु कर दें । 200 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद, रोपाई के 20 दिन पूर्व जमीन में मिला दें । खेत की आखिरी जुताई पर 100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से डालें । 50-20 सेमी. की दूरी पर मेंडो पर पर बोआई करें ।
मार्च माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली सब्जिया
आलू घाटियों में जहाँ पर आलू बोया जा चुका है, झुलसा नामक बीमारी के बचाव के लिए 0.25 प्रतिशत इन्डोफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें, पहली सिंचाई करें व 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टर की दर से खड़ी फसल में डाले। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बोआई करें । खेत की तैयारी के समय 200 कुन्तल गोबर की सड़ी खाद डाले तथा आखिरी जुताई पर 100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर डाले तथा 60 से.मी. की दूरी पर मेंडोबनाये। इन मेडो पर 15 से.मी. की दूरी पर बीज बोयें ।
टमाटर पूर्व में रोपी गई फसल में आवश्यकतानुसार निराई, गुडाई व सिंचाई करें । झुलसा नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.25 प्रतिशत इन्डोफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें । जो किसान रोपाई करना चाहते हैं, खेत की तैयारी करें तथा 150 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद डालें व आखिरी जुताई पर 100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर में डाल कर सांयकाल के समय रोपाई करें व सिंचाई करें ।
पालक/धनियां, मैंथई इनकी बोआई का सही समय है, खेत की अच्छी तरह तैयारी करें । तैयारी केसमय 100 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद तथा 75 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से डाले व बाद में 30 से.मी. की दूरी पर कतारे बनाये । उन कतारों में बीज की बोआई करे ।
भिंडी/लोबिया पूर्व में बोई गई फसलों में आवश्यकतानुसार निराई, गुडाई व सिंचाई करें । जहाँ अभी तक बोआई नहीं की गई है, शीघ्र ही बोआई करें । 100 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद, 75 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से डाले। 30 से. मी. की दूरी पर कतारें बनायें व बीज की बोआई करें । बोआई के समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिये।
खीरावर्गीय फलियां इनकी बोआई का भी उचित समय है। 150 से.मी. की दूरी पर नालियां बनायें । उनमें 100 से. मी. की दूरी पर थालें बनायें । प्रत्येक थाले में 10 किलो गोबर की सड़ी खाद, 10 ग्राम यूरिया, 25 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 ग्राम म्यूरेट आफ पोटाश डालकर बीज की बोआई करें। बोआई के समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिये।
अदरक, हल्दी इनकी बोआई का उचित समय है। खेत की अच्छी तरह तैयारी करें । 200 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद, 100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस व 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से डाले व बाद में 45*15 से.मी. की दूरी से बोआई करें ।बोआई के समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
बैंगन व मिर्च पूर्व में रोपी गई फसल में 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें व सिंचाई तथा निराई गुडाई करें । जहां पर अभी रोपाई की जानी है वहां पर खेत की तैयारी करें , तैयारी के समय 150 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद तथा 100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर डालकर सांयकाल के समय रोपाई करें ।
मटर, राजमा इसकी बोआई का अच्छा समय है, अर्किल अच्छी किस्म है, खेत की तैयारी करें, तैयारी के समय 50 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर डालें व बोआई करें । बोआई के समय जमीन में पर्याप्त नमी की मात्रा होनी चाहिये।
फूल गोभी/पातगोभी/गांठगोभी इनकी सिंचाई का उचित समय है। खेत की अच्छी तरह तैयारी करें । पुरानी फसल के अवशेष इकट्ठा करके जला दें । रोपाई से पूर्व 200 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद, 100 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, 80 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर डाल कर सांयकाल के समय रोपाई करें व हल्की सी सिंचाई करें । स्वस्थ्य पौधों की ही रोपाई करें ।
मूली, गाजर शलजम इनकी बोआई का उचित समय है। खेत की अच्छी तरह तैयारी करें । तैयारी के समय 100 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद डालें । 50 किलोग्राम न.त्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हैक्टर की दर से डाले। बाद में 30 सेमी. की दूरी से बीज की बोआई करे। बोआई क समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिए।
मार्च माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाले फल
आम हापर कीट की रोकथाम हेतु सेविन (0.2 प्रतिशत) घोल का छिड़काव करें । चूर्णिल कवक की रोकथाम हेतु कैराथेन (0.05 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें ।
केला खरपतवार को निकालकर गुडाई करे । अवांछित पुत्तियों को निकाल दें । माहू की रोकथाम हेतु 0.2 प्रतिशत मेटासिस्टाक्स के घोल का छिड़काव करें । बाग की सिंचाई करें ।
नीबूवर्गीय फल कैंकर रोग की रोकथाम हेतु ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत) का छिड़काव करें । फलों को तोडकर बाजार भेजें। पौधशाला में कली बांधने का कार्य इस माह अवश्य पूर्ण कर लें । पेडो के तनों को चूने से पोत दें । पौधशाला में मूलवृत तैयार करने हेतु बीजों की बुआई करें ।
पिछले मौसम में कलिका चढ़ाए गए पौधों के मूलवृत से उगे हुए कल्लों को निकाल दें।
अंगूर चूर्णिल आसिता की रोकथाम हेतु कैराथेन (0.05 प्रतिशत) का और श्यामवर्ण की रोकथाम हेतु ब्लाइटाक्स -50 (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें । इस माह के प्रथम सप्ताह तक फास्फोरस तथा पोटाशधारी उर्वरकों की शेष मात्रा का भी प्रयोग करे । पौधों पर जिंक सल्फेट (0.5 प्रतिशत) व बोरेक्स (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें । अगूर के गुच्छों के फूल खिलते समय जिब्रेलिक अम्ल (50 पी.पी.एम.) के घोल में थोडी देर के लिए डुबांए।
अमरुद तनाबेधक कीट की रोकथाम हेतु क्वीनालफास 25 ई.सी. (0.1 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें ।
पपीता नए बाग की रोपाई करें । बाग में थालों की सफाई करें । फलों को तोड कर बाजार भेजें । पौधशाला में बीजों की बुवाई करें ।
कटहल बाग की सफाई करें । यदि नमी की कमी हो तो एक सिंचाई करें । बाग में ब्लाइटाक्स-50
(0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें ।
फालसा बाग की सिंचाई करें । ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें ।
लोकाट थ्रिप्स की रोकथाम हेतु मेटासिस्टाक्स (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें । फल की मक्खी की रोकथाम हेतु मैलाथियान (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें ।
बेल बाग में ब्लाइटाक्स-50 (0.25 प्रतिशत) घोल का छिड़काव करें । नमी की अधिक कमी होने पर बाग की सिंचाई करें ।
करौंदा बाग की सिंचाई करें । थालों की सफाई व गुडाई करे । करौंदा बाग की सिंचाई करें । थालों की सफाई व गुडाई करे ।
मार्च माह मेंपर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले फल
सेब व नाशपाती बीजू मूलवृत्त पर भेंटकलम बांधने का कार्य समाप्त करें । बाग में पलवार बिछाएं।
नाशपाती में नाइटो्जन व पोटाशधारी उर्वरकों का प्रयोग करें । चूर्णिल आसिता की रोकथाम हेतु सल्फेक्स (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करे ।
आडू , खुबानी, आलूबुखारा व बादाम जिंकसल्फेट (0.5 प्रतिशत) व बोरेक्स (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें । गाोंदार्ति रोग की रोकथाम हेतु 0.2 प्रतिशत ब्लाइटाक्स-50 के घोल का छिड़काव करे । प्रभावित भाग को खुरचकर उस पर ब्लाइटाक्स-50, अलसी के तेल का (1:3) का लेप लगाएं। पर्णकुच न रोग की रोकथाम हेतु चूना, गंधक (1:15) के घोल का छिड़काव करें । बादाम में गोंदार्ति रोग की रोकथाम हेतु ब्लाइटाक्स-50 (0.2 प्रतिशत) के घोल का छिड़काव करें ।
मार्च माह में होने वाले पुष्प
गुलाब में जिन पौधों में बडिंग की गयी हों और आँखे न बढ़ रही हो तो उसमें दुबारा बडींग करें। क्यारियों की गुडाई तथा सप्ताह में एक बार सिंचाई तथा देशी कलमों की कटाई। दश्मिक रोज (चैती गुलाब) में फूल आना प्रारंभ हो जाता है। अतः उनकी प्रातः काल तुड़ाई तथा प्रोसेसिंग हेतु शीघ्र भेजे। ग्लैडियालस के स्पाइकों की कटाई तथा विपणन। रजनीगंधा के बल्बों का पहले से तैयार क्यारियों में जिसमें संस्तुत खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग किया जा चुका है, 30-20 सेमी. की दूरी पर रोपण। गेदा में 10-12 दिन के अन्तर पर सिंचाई तथा केवल एक बार गुडाई एवं निकाई कर दें । नत्रजन की एक तिहाई मात्रा (40-50 किग्रा. प्रति हैक्टर) की पहली टाप ड्रेसिंग करें ।
फल-सब्जी संर क्षण
संतरे के स्क्वैश, मार्मलैड बनाए जा सकतेे है । इसके रस को पौटेिेशयम-मेटा बाई सल्फाइड से सुरक्षित रखा जा सकता है। जनवरी में परिरक्षित किये गए नींबू के रस से स्क्वैश तथा कार्डियल बनाया जा सकता है तथा टमाटर से विभिन्न उत्पाद बनाये जा सकते है । पपीते से चटनी, मुरब्बा तथा नेक्टर बना सकते है ।
पशु पालन
गाय-भैंस:- इस समय अफरा होता है अतः अफरा से बचाव हेतु फूली हुई बरसीम न खिलाये ।
यदि अफरा हो गया हो तो उपचार हेतु 500 मिली सरसों का तेल 100 ग्राम काला नमक 50 ग्राम मीठा सोडा 15 ग्राम अजवाइन तथा 5 ग्राम हींग का मिश्रण पिलायें ।
भेंड़ व बकरी:- पेट को कीड़े रहित करने हेतु कृ मि नाशक दवा पिलायें । रहने के स्थान को साफ-सुथरा रखें तथा पिलाने वाले पानी को स्वच्छ रखे ।
कुक्कुट:- शेड में सीधे प्रकाश को न आने दें । यदि मुर्गिया एक दूसरे को चोच काटकर घायल
करती हो तो उनकी चोंच कटवा दें । मुर्गियों को संतुलित आहार नियमित देते रहें । यदि टीकाकरण
की आवश्यकता हो तो पशु चिकित्सक से परामर्श कर टीका लगवायें ।
मत्स्य:- खीचने वाले जाल को चलाकर मछलियों को पकडें तथा उन्हे बेचने के लिए बाजार भेजें ।
उत्प्रिरत प्रजनन द्वारा मत्स्य बीज उत्पादन का लक्ष्य हो तो बड़ी बड़ी स्वस्थ नर व मादा मछलियों को
आवश्यकतानुसार चुन कर अलग तालाब में रखें व पालन पोषण करें ।
मौन:- नयेे फ्रेम नये छत्ताधार के साथ दें जिससे नये छत्ते बनाये जा सके। नयी रानी बनवाने का कार्य किया जा सकता है। मौन गृह को ठण्ड से बचाने वाला पुआल धीरे- धीरे हटाना प्रारंभ कर दें। शहद भरने पर शहद निष्कासन का कार्य करें ।