नवम्बर माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली फसले
धान, उर्द व मूगं देर से बोई गई फसल की कटाई कर लें और सुखाकर भंडारण की व्यवस्था करें।
मूगंफली देर से बोई गई फसल की खुदाई करें।
अरहर शीघ्र पकने वाली किस्मों की 75-80 प्रतिशत फलियां पकने पर कटाई कर लें। लम्बी अवधि की किस्मों में फलीछेदक कीट के रोकथाम के लिए मोनाक्रोटोफेास (36 एस.एल.) 1250 मिली. या डाइमेथाऐट 3. 0 इ.सी. 660 मिली.लीटर दवा को आवश्यक पानी में मिलाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
ताेरिया दाना भरने की अवस्था में यदि खते में नमी की कमी हो तो सिचांई करें। झुलसा, तुलासिता, सफेद गेरूई रोग के नियत्रंण के लिये मैकाजेब 75 डब्ल्यू. पी. 2.5 किग्रा दवा को आवश्यक पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें। माहू, आरामक्खी नियंत्रण के लिये क्वीनालफास 2. 5 इ.सी. की 1.0 लीटर मात्रा प्रति हैक्टेयर की दर से आवश्यक पानी में घोलकर छिड़काव करे।
राई– सरसों पिछले माह बोई गई फसल से 15-20 दिन के अन्दर घने पौधे निकालकर उनकी आपस की दूरी 15 से. मी. कर देनी चाहिए। आवश्यकतानुसार सिचांई करें सिंचित क्षेत्रों में शेष् नत्रजन की टॉपड्रेसिंग बुवाई के 25-30 दिन बाद पहली सिचांई पर करें।रोग
व कीट नियत्रंण ताेरिया की तरह करें।
चना सिंचित दशा में चना की बुवाई इस माह के द्वितीय सप्ताह तक कर ले। छोटे व मध्यम दाने वाली किस्मों के लिये 60-80 किग्रा तथा बड़े दाने वाली किस्मों के लिये 80-100 किग्रा प्रति हैक्टर बीज पर्याप्त होता है । बुवाई परिस्थितिनसुार 30-45 से. मी. की दूरी पर लाइनों से करें। राइजाेबियम कल्चर तथा पीएसबी कल्चर का प्रयोग बीजोपचार हेतु करना लाभप्रद है। मृदा परीक्षण के अभाव में 20 किग्रा नत्रजन, 40-50 किग्रा फास्फोरस, 30 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टर की दर से बढ़ रही प्रयोग कर सकते हैं। बुवाई के 25-30 दिन बाद एक निराई- गुडाई कर दें। बुवाई हेतु पूसा 256, के. 850, अवरोधी्, के. डब्ल्यू आर-108, पन्त जी-114, पूसा धारवाडं प्रगति 72, पूसा 362 इत्यादि किस्मों का चयन कर सकते हैं। काबुली चना हेतु सदाबहार पतं काबुली चना 1, पूसा 1053, पूसा 1088, चमत्कार, उज्जवल, एल-550 अच्छी किस्में हैं।
मटर, मसूर अक्टूबर माह में बोई गई फसल में सिचांई , निराई- गुडा़ई आदि करनी चाहिए। इन फसलों की बुवाई नवम्बर के प्रथम पखवाड़े तक कर दे। मटर के लिये सामान्यतया 80-125 किग्रा बीज तथा मसूर के लिये 30-40 किग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है। बुवाई लाइनों में करे। दलहनी फसलों को राइजोबियम कल्चर से बीज शोधन करना लाभप्रद है । मटर में तना छेदक मक्खी, पत्ती सगुंरम कीट, इत्यादि नुकसान
पहुंचा सकते हैं नियंत्रण के लिये क्वीनालफास 2. 5 इ. सी. 1.0 ली. या मोनोक्रोटोफास 36 एस.एल. 1250 मिली मात्रा को 600-800 लीटर पानी में मिलाकर पीने से प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।
गेंहू समय से बुवाई के लिये यू. पी. 2382, यू. पी . 2338, डब्ल्यू. एच.-542, पी.बी. डब्ल्यू 343, यू.पी. 2554, पी.बी.डब्ल्यू 502, पी.बी.डब्ल्यू 550, डी.बी. डब्ल्यू 17, यू. पी. 2628 तथा रतुआ रोगरोधाी किस्मों पी.बी.डब्ल्यू621-50, एच.डी.2967, पी.बी.डब्ल्यू 321 इत्यादि किस्मों का चयन कर सकते हैं।बुवाई के लिये 100 किग्रा बीज पर्याप्त होता है। बुवाई 18-22 से. मी. की दूरी पर बनी लाइनों में करें। छिडकाव विधि में 25 प्रतिशत ज्यादा बीज का प्रयोग करें। मृदा परीक्षण के अभाव में 120-150 किग्रा. नत्रजन, 60 किग्रा. फास्फोरस, 40 किग्रा. पोटाश प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी से दो तिहाई मात्रा बुवाई के समय आखिरी जुताई के समय मिला दें। जिकं की कमी वाले क्षेत्रों में 20-25 किग्रा. जिंक सल्फेट खेत में बुवाई के समय प्रयोग करें।
गन्ना बोने के 25-30 दिन के अन्तराल पर निराई गुुड़ाई कर दे। यदि सह-फसली खेती की गई है तो फसलानुसार शस्य क्रिया करें।
नवम्बर माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली फसले
गेहूँ सिंचिंत क्षेत्रों में गेहूं की बुवाई इस माह कर ले। सिंचित दशा में समय से बोने के लिये वी.एल. 719, वी. एल.738, वी.एल.802, वी.एल.804, यू. पी. 2572, एच. एस.240, एच.डी. 2380, यू. पी.1109 तथा विलम्ब से बुवाई की दशा में एच.एस.295 किस्म का चयन कर सकते हैं । बुवाई लाइनों में करना लाभपद्र है । 2.0 किग्रा. बीज प्रति नाली प्रयोग कर सकते हैं । छिटकंवा विधि से 25 प्रतिशत ज्यादा बीज का प्रयोग करें। यदि घर का बीज है तो 2.0 ग्राम कार्बेनडाजिम या 3.0 ग्राम थाइरम प्रति कीग्रा . बीज की दर से बीजशोधन करे। सिंचित दशा में अधिकतम पैदावार प्राप्त करने के लिये 2.0-2.4 किग्रा. नत्रजन, 1.20 किग्रा. फास्फोरस तथा 0.8 किग्रा. पोटाश तत्व के रूप में प्रति नाली प्रयोग करें। नत्रजन की आधी मात्रा तथा अन्य दोनों तत्वों की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा शेष नत्रजन की मात्रा पहली सिचांई के बाद प्रयोग करें। पिछले माह बोई गई फसल के खरपतवार निकाल दें। यदि वर्षा हो गई हो तो यूरिया की टापड्रेसिंग आवश्यकतानुसार कर सकते हैं।
जौ जौ की बुवाई यदि किसी कारण वश नहीं हो पाई हो तो अविलम्ब कर ले। वी.एल.बी-1 समस्त पवर्तीय क्षेत्रों के लिये तथा हिमानी व डोलमा नामक उन्नत किस्में मध्यम व निचले क्षेत्रों हेतु उपयुक्त है। पिछले माह बोई गई फसल में निराई कर खरपतवार निकाल देे। सिंचित दशा में पहली सिंर्चाइ के बाद यूरिया की टापड्रेसिंग करें।
मसूर मसूर की बुवाई के लिये अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक उत्तम समय है। बुवाई हेतु 0.8-1.0 किग्रा . बीज प्रति नाली पर्याप्त है। बुवाई लाइनों में करना चाहिए। पिछले माह बोई गई फसल में आवश्यकतानुसार निराई कर दे।
नवम्बर माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली सब्जियाँ
शकरकंद फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। 50 किलोग्राम यू रिया खड़ी फसल में डाले। यूरिया डालते समय जमीन में से एक पर्याप्त नमी होनी चाहिये । झुलसा नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डाेफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें। तैयार फलों कोे तोडक़र बाजार भेजें।
आलू पहली बार सिचांई करें जिसमें जमाव पूरा हो जायेगा। बुआई के 35-40 दिन बाद खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया डालें व मिट्टी चढ़ायें। पहला 0.2 प्रतिशत डाइथेन एम-45 का छिड़काव बुआई के 35 दिन बाद अवश्य ही करें।
मिर्च, बैंगन तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजें । बाजार भेजने से पूर्व छटाई करे। बीज वाली फसलों में पके फलों की तुड़ाई कर बीज निकालें। मिर्च की पकी फलियों को 20-22 दिन तक सुखाना पड़ता है ।
मूली, गाजर तैयार मेड़ो की खुदाई कर बाजार भेजें । बाजार भेजनेे से पूर्व जड़ो की सफाई करें। फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें।
मटर फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिंचाई करें। तैयार फलियों की तुड़ाई कर बाजार भेजें । बीज वाली फसल में अवांछित पौधों को निकाले।
फूल गोभी, पता गोभी , गाठं गोभी तैयार गाेभियों की कटाई कर बाजार भेजें। देर से रोपी गई फसलों में 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डाले। फसलों में आवश्यकतनुसार निराई गुड़ाई करें।
पालक, मेथी, धनियां तैयार पत्तियों की कटाई करें, छोटी वाली गडिडया बनाये व बाजार भेजें । कटाई के बाद 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से डालें व हल्की सी सिचांई करें।
लहसुन फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिचांई करें। खड़ी फसल में 50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर की दर से डाले। यदि पत्तियों पर पीले धब्बे दिखाई दे तो 0.2 प्रतिशत इन्डाेफिल-45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
खीरावगीर्य फसलें ये सभी फसलें लगभग समाप्त हो चुकी होगीं । फिर भी तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजें। बीज वाली फसल में पके फलों को तोड़कर बीज निकाले
शकरकंद तैयार मेडो की खुदाई कर बाजार भेजें । शेष आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिचांई करें।
अदरक, हल्दी तैयार अदरक की खुदाई कर बाजार भेजें। खुदाई के बाद कंदो का अच्छी तरह साफ करें व सुखायें।हल्दी की फसल मे आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई
नवम्बर माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली सब्जियाँ
टमाटर तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजें । बाजार भेजने से पूर्व कीट/रोग ग्रस्त फलों को अवश्य निकाल दें । बीज वाली फसल से पके फलों को तोडक़र बीज निकालें।
आलू फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिचांई करें। मिट्टी चढ़ाने से पूर्व 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डाले। झुलसा नामक बीमारी के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डाेफिल -45 नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
बैंगन, मिर्च तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। बाजार भेजने से पूर्व फलों की छंटाई करे। कीट एवं रोग ग्रस्त फलों को निकाल दें। कीट तथा बीमारियों के बचाव के लिये 0.2 प्रतिशत इन्डाेफिल-45 तथा मैलाथियान 50 इ.सी. 2.0 मिली. /ली. पानी में छिड़काव करें।
पालक, मेेंथी पत्तियों की कटाई कर गड्डियां बनायें व बाजार भेजने की व्यवस्था करे। कटाई के बाद 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डाले। यूरिया डालते समय जमीन में पर्याप्त त नमी होनी चाहिये।
फूलगोभी , पातगोभी, गाठं गोभी तैयार गाेभीयों को बाजार भेजने की व्यवस्था करें। फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुडाई व सिचांई करें। अक्टूबर माह में रोपी गई फसलों में 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डाले। उस समय जमीन में पर्याप्त नमी होनी चाहिये ।
अदरक तैयार अदरक की खुदाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करें। बाजार भेजने से पूर्व कदों की सफाई करें व सुखाये।
खीरावगीर्य सब्जियाँ तैयार फलों की तुड़ाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करे। बीज वाली फसलों के फलो की तुड़ाई कर बीज निकालें।
लहसुन फसल में आवश्यकतानुसार निराई गुड़ाई व सिचांई करें। 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें व हल्की सी सिचांई करें।
शकरकदं तैयार फसल की खदाई कर बाजार भेजने की व्यवस्था करे।
मुली, शलजम गाजर फसलों में आवश्यकतानुसार निराई गुडाई व सिचांई करे। 50 किलोग्राम यूरिया खड़ी फसल में डालें मूली की फसल पर 0.2 प्रतिशत सेविन नामक दवा का घोल बनाकर एक छिड़काव करें।
नवम्बर माह में मैदानी क्षेत्र में होने वाली फल
आम आम को मीली बग से बचाने के लिए तनों पर पालीथीन की 30 से.मी. चौड़ी पट्टी गोलाई में बांधकर दानोंसिरों पर गी्रस लगाना चाहिए। थालों व तनों पर फाली डाल धूल का बूरकाव करना चाहिए
केला अवांछित पुत्तियों को निकाल देना चाहिए। 15 दिन के अतंराल पर सिचांई करे। बाग की निराई करे।
नींबूवर्गीय फल पके फलों को तोड़कर बाजार भेजे । थालों की सिचांई व एक बार निराई करें। यदि फल गिर रहे हो तो नेफ थलीन एसिटिक अम्ल (10 पी.पी.एम.) का छिड़काव करें।
अमरूद बाग की सिचांई करें। फलों के चिडियों से बचाएं।
पपीता 15 दिन के अतंराल से सिचांई करे। थालों की निराई करें।
अंगूर बाग की सफाई करें।
बेर बाग की सफाई करके सिचांई करें। फल मक्खी की रोकथाम हेतु मैलाथियान अथवा डायमक्राेन का छिड़काव करें।
लीची थालों की सफाई करें। बाग को स्वच्छ रखे। छोटे पौधों कोे पाले से बचाने हेतु छप्पर का प्रयोग करें।
लोकाट एक बार निराई करें। फलों को चिडियों से बचाएं। सिचांई करें।
आवंला बाग की सफाई करें। यदि फल गिर रहेे हो तो बोरेकस का छिड़काव करें। इससे पहलें बाग की सफाई करे। इस माह के अतं तक अगेती किस्मों के पेड़ों की तुड़ाई करें।
कटहल बाग की सफाई करे। एक सिचांई करे।
बेल बाग की सफाई करे। एक सिचांई करे।
करौंदा बाग की सफाई करें।
नवम्बर माह में पर्वतीय क्षेत्र में होने वाली फल
सेब व नाशपाती थालों की निराई गुडाई करें। बाग की सर्फाइ करे। पौधशाला में बीजों की बुआई करें।
आड़ू, खुबानी, बादाम बाग की सफाई करें। थालों में बीज की बुआई करे। आड़ू की पर्ण सकुंचन माह की रोकथाम हेतु मेटासिस्टाक्स का छिड़काव करें।
अखरोट, पांगर, भोटिया बादाम, पीकनट बाग की सफाई करके थालों की निराई गुडाई करें। पौधशाला में बीजों की बुआई करें।
नवम्बर माह में होने वाली पुष्प
देशी, गुलाब की कलम काटकरअगले वर्श के स्टाक के लिए क्यारियो में लगाना। गुलाब के पौधों को यदि जुलाई अगस्त में न लगाया गया हो तो तैयार खते में दूरी पर इस माह खेत में लगा दें। सिचांई एवं निराई गुडाई। ग्लैडियोल के स्थानीय मौसम के अनुसार सप्ताह में एक या दो बार सिचांई तथा कीटो एवं रोगों की रोकथाम हेतु समयानुसार दवाओं का छिड़काव कर रजनीगन्धा के स्पाइक की कटाइर्, छटाइर्, पैकिंग एवं विपणन कर पोषक तत्वों के मिश्रण का अन्तिम पणीर्य छिड़काव (पुष्पन अवधि में कुल 16 छिड़काव 15 दिन के अन्तर पर)। जनवरी माह में रोपाई हेतु गेदां को क्यारियों में दुबारा लगा दें।
फल-सब्जी सरंक्षण
पशुपालन
गाय-भैसं:- ठण्ड से बचाव हेतु पशुशाला पर पर्दे लगाये। इस माह में भैंस गर्मी में आती है अतः ध्यान दें। गाभिन भैसों को अधिक खनिज लवण दे । पशुओ को बडे़ अन्तराल पर नहलायें।पशुओं का बिछावन सूखा रखे।
भेड़े व बकरी:- बकरियों और भेड़ों को ठण्ड से बचाये तथा कृमि नाशक दवा का प्रयागे कर चिकित्सक के अनसुार करें
कुक्कुट :- अतं: कृमि नाशक दवा दें। से अधिक अण्डे प्राप्त करने ह्तेु दिन और रात की कुल रोशनी 16 घण्टे बनाये रखे जैसे-जैसे दिन छोटे होते जाए रात की रोशनी बढ़ाते जायें।
मत्स्य:- खाद व उवर्रक का प्रयोग करें। मछलियों को पर्याप्त मात्रा में परिपक्व आहार दें। अवांछनीय जलीय जीव जन्तओ को निकालते रहें।
मौन:- मौन गहृों को सूर्य की रोशनी में रखें। छाये में न रखें । मौन ग्रहो को ठण्डक से बचाने के लिए पुआल या टाट से अच्छी तरह ढ़क दे कमजोर वशों को सशक्त वशों में मिला दें ।जिन मौनवशों में रानी मरने के बाद भी नये रानी कोष्ठक नहीं बन रहे हो उनमें दूसरे मौन वंश से रानी कोषठक स्थानांतरित करें। ऐकेराइन बीमारी का प्रकोप होने पर 2 मिली. फामिर्क अम्ल का प्रयोग रूई में भीगाकर मुख्य द्वार से लकड़ी के द्वारा करें।
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