उन्नत किस्में
सकंर किस्में पकने की अवधि (दिन) उपज (कु./है. )
एस.एस.एच.-6163 90-95 20-22
एन.एस.एफ.एच.-36 90-95 22-24
पी.ए.सी.-3776 95-100 22-24
सुपर ज्वालामुखी 105-110 30-32
पैरी-3848 90-95 18-20
न. 6465 95-100 25-30
एम.एस.एफ.एच.-1051 105-110 30-32
पैरी-3890 100-105 20-22
पी. ए.सी. 36 100-105 23-26
पी. ए.सी. 336 100-105 20-25
सनजीन 85 85-90 18-20
कावेरी 618 85-90 18-20
के. वी.एस.एच.-42 95-105 18-20
संकुल किस्मे माडर्न 80-85 14-15
हरियाणा सूरजमुखी -1 90-95 18-20
बीज शोधन : बुवाई से पहले बीज को 12 घण्टे पानी में भिगोकर छाया में 3-4 घंटे सुखाकर कैप्टान की 2 ग्रा. मात्रा या थीरम की 3 ग्रा. मात्रा लेकर प्रति कि.ग्रा. की दर से शोधित कर लेना चाहिए, इससे बीज का जमाव अच्छा होता है एवं साथ ही पौध को विभिन्न बीमारियो से बचाया जा सकता है।
बुवाई की विधि एवं समय
सूरजमुखी की बसन्तकालीन फसल को बोने का उचित समय फरवरी का प्रथम से द्वितीय पखवाडा़ है किन्तु इसकी बुवाई कृषक बंधु मार्च के प्रथम से द्वितीय पखवाड़े तक करते हैं। दरे से बुवाई करने पर फसल देर से पकती है और मानसून की वर्षा शुरु हो जाती है जिससे फसल कटाव एवं गहाई में समस्या हो सकती है। इसलिए फसल को फरवरी के अंत तक अवश्य बो देना चाहिए।
बवाई सदैव लाइनों में करें , संकुल एवं बौनी प्रजातियों को 45 से.मी. तथा संकर एवं लम्बी प्रजातियों को 60 से.मी. दूरी पर बनी लाइनों में बोयें तथा पौधे से पौधे की दूरी 20-30 से.मी. रखें। बीज की गहराई 3-4 से.मी. रखें। बुवाई के 15-20 दिन बाद विरलीकरण कर पौधे से पौधे की दूरी 20-30 से.मी. कर देना चाहिए।
उर्वरक एवं खाद
सूरजमुखी की सफल खेती करने हेतु 80-120 कि.ग्रा. नत्रजन, 60 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 40 कि.ग्रा. पोटाश प्रति है0 की आवश्यकता होती है। नत्रजन की आधी से दो तिहाई मात्रा बोते समय
तथा शेष 25-30 दिन बाद या पहली सिंचाई के समय खड़ी फसल में छिड़क दे। फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय दें। 200 किग्रा./ है0 जिप्सम का भी प्रयोग बुवाई के समय
अवश्य करे। फॉस्फोरस को एस.एस.पी. के रुप में दें जिससे बीजो में तेल की मात्रा बढ़ जाती है।
सिंचाई
आवश्यकतानुसार पहली सिंचाई बोने के 20-25 दिन बाद आवश्यक है तदापे रान्त समान्यतया 20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। वैसे 4-5 सिंचाइयाँ वानस्पतिक, कली, फलू एवं दाने पड़ते समय खते में नमी की कमी होने पर अवश्य करनी आवश्यक है।
खरपतवारों का नियंत्रण
इसके लिए पहली निराई-गुड़ाई बोने के 15-20 दिन बाद करे तथा दूसरी गुड़ाई के समय पौधों पर मिट्टी भी चढा़ दे जिससे पौधे तेज हवा के कारण गिरने नहीं पाते। टाके .इ.र् 25 की 1.5-2.0 कि.ग्रा . सक्रिय पदार्थ दवा को 800-1000 ली. पानी में घाले कर अनुकरण के पहले खते में छिड़कने से भी खरपतवार नष्ट हो जाते हैं। पेन्डीमेथलीन की 1.0 कि.ग्रा. का सक्रिय पदार्थ मात्रा 600-800 ली. पानी में घोलकर देने के 2-3 दिन बाद करने से भी खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।
पादप सुरक्षा
दीमक व कटुवा कीट जमाव के समय फसल को नुकसान करते हैं। इनकी रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफास की लगभग 6 लीटर मात्रा को 600-700 लीटर पानी में घाले कर बोने से पहले खते में छिडक़ कर मिट्टी में मिला देना चाहिए। हरा फुदका, बिहार की बालदार सूड़ी, तम्बाकू की सूड़ी, चेपा , सफेद मक्खी, नाजारा कीट, रेड पम्पकिन कीट तथा रस चूसने वाले कीट फसल की बढ़ाते तरी अवस्था में और चने की सूड़ी एवं परागकण खाने वाले कीट शीर्ष (मुण्डक) एवं दाने भरने वाली अवस्था में फसल को भारी नकु सान करते हैं। इनकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफास का 1 मि.ली. दवा प्रति लीपानी के हिसाब से घोल बनाकर दो छिड़काव 10-15 दिन के अन्तराल पर करने से कीट नष्ट हो जाते हैं।
सामान्यतया झुलसा, रस्ट, तुलासिता रोग खरीफ मौसम में उगने वाली फसल की मुख्य बीमारियॉ है। इनकी राके थाम हेतु 0.2-0.25 प्रतिशत मैंकोजेब के 2-3 छिड़काव 10-15 दिन के अन्तर से करे। रबी एवं बसन्तकालीन फसल की स्केलेरोशियम कालर राट तना सडऩ , चारकाले सडऩ , स्केरेलोटनया तना सडऩ एवं राइे जोपस मुण्डक सडऩ मुख्य बीमारियां है। इन बीमारियों की राके थाम हेतु सर्वप्रथम बुवाई से पहले बीज शाे धत करे और खड़ी फसल में 0.1 प्रतिशत कार्बेन्डाजिम एवं 0.2 प्रतिशत मैंकोजेब के 2-3 छिड़काव 15 दिनों के अन्तराल पर करे। मुण्डक में दाने भरते समय 0.2 प्रतिशत ब्लाइटॉक्स के दो छिड़काव करे।
पशु पक्षियों से बचाव
सूरजमुखी की फसल को मुख्यात नीलगाय, जंगली सुअर, बंदर, तोता, कौआ आदि मुण्डक में दाना भरते समय भारी नुकसान करते हैं। तोते अकेले पूरी फसल को नष्ट करने में सक्षम होते हैं। अतः इन पशु-पक्षियों से फसल को बचाना अति आवश्यक है। आजकल बाजार में पक्षी उड़ाने वाले टेप (एल्युमिनियम) बाजार में उपलब्ध हैं। इन टेपां को खते में फसल से कुछ अधिक ऊँचाई पर चारां तरफ खेत में आड़े तिरछे बाँधने पर तोते से फसल को बचाने में सहायता मिलती है। बाजार में जूट, रेशम एवं धागे से बने जाल भी उपलब्ध है जिनसे फसल की सुरक्षा की जा सकती है। यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि प्रजाति का चुनाव ऐसा हो जिसका मुण्डक नीचे की तरफ झुक जाता हो क्यों क ऐसी प्रजातियों में पक्षियों से नुकसान नहीं हो पाता है।
कटाई एवं मड़ाई
जब मुण्डक को पिछला भाग भूरे-सफेद रगं का होने लगे तभी फसल के मुण्डको को काटकर 5-6 दिन तजे धपू में सुखाकर डण्डे से पीटकर दाने निकाल लिए जाते है। आजकल बाजार में सूरजमुखी थ्रेसर उपलब्ध है जिनकी सहायता से सरू जमुखी की मड़ाई की जा सकती है।
उपज
उपर्युक्त वैज्ञानिक विधि से सूरजमुखी की खेती करने पर लगभग 25-30 कुन्तल बीज एवं 80-100 कुन्तल डण्ठल प्रति हेक्टेयर पैदा किये जा सकती हैं। इसके साथ ही रु. 15000-20000/- प्रति है. शुद्ध लाभ मात्र 90-100 दिन में लिया जा सकता है।
बसन्तकालीन सुरजमुखी के उन्नत किस्म की बीज कौन सी है और हमे कहा से प्राप्त हो सकती है कृपया डिटेल उपलब्ध कराए
What’s app 7091886063