सरसों की खेती : विगत कुछ वर्षों से पीली सरसों की खेती किसानों में काफी प्रचलित हुई है। इस फसल की विभिन्न प्रजातियों के दाने पीले रंग के होते है जिसमें तेलांश तोरिया तथा राई की प्रजातियों से अधिक पाया जाता है। इसकी खेती मैदानी, तराई, भाभर तथा निचले मध्य पवर्तीय क्षेत्रों में सफलता पूर्वक की जाती है।
सरसों की उन्नतशील प्रजातियाँ
राई या सरसों के लिए बोई जाने वाली उन्नतशील प्रजातियाँ जैसे क्रांति, माया, वरुणा, इसे हम टी-59 भी कहते है, पूसा बोल्ड, उर्वशी, तथा नरेन्द्र राई, प्रजातियाँ की बुवाई सिंचित दशा में की जाती है तथा असिंचित दशा में बोई जाने वाली सरसों कीप्रजातियाँ जैसे की वरुणा, वैभव तथा वरदान, इत्यादि प्रजातियाँ को बवाई करना चाहिए।
सरसों की खेती में बीज दर एवं बुवाई की विधि
सरसों की खेती में बुवाई का समय
पर्वतीय (मध्य ऊचाई तक) तथा मैदानी क्षेत्रों में पीली सरसों की बुवाई अक्तूबर के प्रथम पखवाड़े में कर देनी चाहिये। बिनोये प्रजाति की बुआई अक्तूबर माह तक कर सकते है। विलम्ब से बोई गई फसल में बीमारियों एवं कीटों का विशेष कर माहू के प्रकोप की अधिक सम्भावना रहती है जिससे उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पडत़ा है।
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सरसों की खेती में उर्वरक की मात्रा
समान्यतः उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिये। यदि मिट्टी परीक्षण सम्भव न हो तो 90 कि.ग्रा. नत्रजन, 40 किग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश का प्रयोग करना चाहिये | फास्फोरस देने के लिये सिगंल सुपर फास्फेट का प्रयोग अधिक लाभदायक होता है क्योंकि इससे गधंक की आपूर्ति भी हो जाती है अन्यथा 30 कि.ग्रा./है. गन्धक का प्रयोग अलग से करें।
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सरसों की फसल में निराई-गुड़ाई एवं विरलीकरण
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(अ) सरसों की खेती में रोगों की रोकथाम
( ब ) सरसों की खेती में कीटों की रोकथाम
- थियामेथोक्जाम 25 डब्लू एस जी का 100 ग्राम/है
- मिथाईल-ओ-डिमेटान 25 ई.सी. का 1.0 लीटर/है
- इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल का 100 मि.लि./है
सरसों की खेती की जानकारी
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