लहसुन का उपयागे चटनी, अचार, व मसाले के रूप में किया जाता है। इसकी अधिक उपज प्राप्त करने के लिए निम्न उन्नत विधियां अपनाना चाहिएः
लहसुन की उन्नतशील जातियां
जमुना सफेद (जी-1), जमुना सफेद-3, पंत लोहित, एग्रीफाउन्ड, पार्वती अच्छी किस्में है।
उर्वरक
लहसुन के लिए उर्वरक की मात्रा प्याज की तरह ही दी जाती है।
बीज एवं बुवाई
एक है. क्षेत्र में 3.5 से 5.0 कुन्तल गाठों के रूप में बीज की आवश्यकता पड़ती है।
1. मैदानी क्षेत्रों में लहसुन की बुवाई सितम्बर के अन्त से नवम्बर के आरम्भ तक करनी चाहिए।
2. पर्वतीय क्षेत्र की गर्म घाटियों में मैदानी क्षेत्रों की तरह एवं ऊंचे क्षेत्रों मार्च – अप्रैल मेंकरनी चाहिए।
3. पंक्ति से पंक्ति की दूरी 15 से.मी. एवं बीज से बीज की दूरी 8 से.मी. तथा बीज को 2.0-2.5 से.मी. की गहराई पर बोना चाहिए।
निराई-गुड़ाई
लहसुन की फसल खरपतवार मुक्त रखना आवश्यक है। गहरी गुड़ाई नहीं करनी चाहिए। खरपतवारनाशी रसायनों का प्रयोग प्याजकी भांति ही करना चाहिए।
सिंचाई
प्रारम्भिक अवस्था में 10-15 दिन के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए शल्क कन्द वृद्धि की अवस्था में नमी होना आवश्यक है, परन्तु शल्क कन्द परिपक्व होने लगे तो पानी न दें।
रोग एवं नियंत्रण
लहसनु में भी प्याज की भांत रागे एवं कीड़ो का प्रकोप होता है अतः इनका उपचार प्याज की ही भांत करे।
खुदाई एवं उपज
लहसुन की फसल 5 माह में पककर तैयार हो जाती है। उन्नत ढगं से खेती करने पर 100-150 कुन्तल प्रति हैक्टर पैदावार ली जा सकती है।
Garlic paste sells very well in developed countries.. So why not here? Tube of a toothpaste I saw almost in every Asian kitchen. Reducing pershability and adding value to the products will be the way out for stagnation..
nice information