तिलहनी फसलों में राई का प्रमुख स्थान है। राई की खेती सीमित सिंचाई की दशा में अधिक लाभदायक हैं।
राई की उन्नत किस्में
मैदानी, तराई, भावर व घाटी के सिंचित क्षेत्रों के लिये उपयुक्त प्रजातियाँ
प्रजाति | उत्पादन क्षमता |
पकने कीअवधि | उपयुक्त |
---|---|---|---|
नरेन्द्र अगेती राई-4 | 14-16 | 100-110 | अगेती बुआई हेतु |
पंत राई-19 | 20-25 | 115-119 | अगेती बुआई हेतु |
पंत राई-19 | 20-28 | 125-130 | समय से बुआई, सिंचित |
कृष्णा | 20-28 | 128-132 | समय से बुआई, सिंचित |
पंत राई-20 | 25-30 | 125-127 | समय से बुआई, सिंचित |
पंत राई-21 | 25-30 | 124-128 | समय से बुआई, सिंचित |
वरदान | 12-16 | 120-125 | विलंब से बुआई हेतु |
आर्शीवाद | 14-18 | 125-130 | विलंब से बुआई हेतु |
राई की खेती में बुवाई का समय एवं विधि
राई बोने का उपयुक्त समय सितम्बर के अन्तिम सप्ताह से अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा है। बुवाई देशी हल के पीछे उथले (⁄4-5 से.मी गहरे) कूड़ों (समय से 45 से.मी. एवं देर से 30 से.मी. की दूरी पर) में करने के बाद हल्का पाटा लगा देना चाहिये। असिंचित मध्य पर्वतीय क्षेत्र में बुवाई का उपयुक्त समय सितम्बर का द्वितीय पखवाड़ा है। विलम्ब से बुवाई करने पर माहू के साथ-साथ अन्य कीटों एवं बीमारियों के प्रकोप की सम्भावना अधिक रहती है।
बीज दरः-
कतारों में बुवाई करने हेतु 4 कि.ग्रा./हैक्टर और छिटकवाॅ विधि में 5.0 कि.गा. बीज प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती है।
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राई की खेती में बीज शोधनः
4.0 ग्राम एप्रान एस.डी.-35 या मैटालेक्सिल 2.0 ग्राम/कि.ग्रा बीज की दर से शोधन करने से प्राम्भिक अवस्था में सफेद गेरुई एवं तुलासिता रोग की रोकथाम हो जाती है। अन्य बीज तथा मृदा जनित रोगों से सुरक्षा एवं पौधों के प्रारंभिक स्वास्थ के लिए 2.5 ग्राम थायरम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करे के बोयें।
राई की खेती में उर्वरक की मात्रा
सामान्यतः सिंचित क्षेत्रों में 120 कि.ग्रा. नाईटोजन, 40 कि.ग्रा. फास्फोरस, 20 कि.ग्रा. पोटाश प्रयोग करना चाहिये। फास्फोरस देने के लिये सिंगल सुपर फास्फेट अधिक लाभदायक होता है क्योकिं इससे सल्फर की भी पूर्ति हो जाती है । असिंचित क्षेत्रों में उपर्युक्त उर्वरकों की आधी मात्रा प्रयोग करनी चाहिये। यदि डाई-अमोनियम फासफेट 1⁄4डी.ए.पी.1⁄2 का प्रयोग किया जाता है तो उसके साथ बुवाई के समय 200 कि.ग्रा. जिप्सम प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करना लाभदायक होता है। सिंचित क्षेत्रों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूॅडो में नाई या चोंगा द्वारा बीज से 2-3 से.मी. नीचे देना चाहिये। नाइट्रोजन की शेष मात्रा पहली सिंचाई, बुवाई के 25-30 दिन बाद टापड्रेसिंग के रुप में देनी चाहिये।
राई की खेती में निराई-गुड़ाई एवं विरलीकरण
बुवाई के 15-20 दिन के अन्दर घने पौधों को निकालकर पौधों की आपसी दूरी 10-15 से.मी. कर देनी चाहिये। प्रति वर्ग मीटर लगभग 22 पौधें
रखना चाहिए तथा खरपतवारों को नष्ट करने के लिए एक निराई-गुडा़ई सिंचाई से पहले और दूसरी पहली सिंचाई के बाद कर देनी चाहिये।खरपतवार नियंत्रण के लिये बुवाई के पूर्व फ्लूक्लोरेलिन 1⁄445 ई.सी.1⁄2 की 2. 2 ली. मात्रा 800-1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़क कर भलीभाॅति हैरो चलाकर मिट्टी में मिला दें या पेण्डीमेथिलीन 30 ई.सी. 3.3 लीटर/हैं की दर से 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर बुवाई के तुरन्त बाद जमाव के पहले छिड़काव करें।
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राई की फसल में सिंचाई
राई फूल आने व दाना भरने की अवस्थाओं से पूर्व की अवस्था पर जल की कमी के प्रति विशेष सम्वेदनशील है। अतः अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए इन अवस्थाओं पर सिंचाई करना आवश्यक है। जब उर्वरक का अनुमोदित मात्रा में 1⁄4120 कि.ग्रा.नाइट्रोजन,40 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20 कि.ग्रा. पोटाश/है.1⁄2 किया गया हो तथा मिट्टी हल्की हो तो अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिये 2 सिंचाई क्रमशः पहली बोने के 30 दिन तथा दूसरी वर्षा न होने पर 50-55 दिन के बाद करें।
फसल सुरक्षा
राई की खेती में रोग एवं कीट का उपचार
1. झुलसा रोग :-इस रोग में पत्तियों, शाखाओं तथा फलियों पर गहरे कत्थई रंग के धब्बे बनते हैं जिनमें गोल-गोल छल्ले जो पत्तियों पर
स्पष्ट दिखाई देते हैं।
रोकथामः-
मैनकोजब 75 प्रतिशत की 2 कि.ग्रा. 800-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से 2 छिड़काव करें ।
2. सफेद गेरुई रोग :-
इसकी रोकथाम झुलसा रोग की भाॅति करें। इसके अतिरिक्त रिडोमिल एम.जेड. 72 की 2.5 कि.ग्रा/हैक्टर की दर से छिड़काव करे । बुवाई से पूर्व एप्रान 35 एस.डी. फफूंदी नाशक 4 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।
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3. तुलासिता रोग :-
रोकथामः-
इसकी रोकथाम सफेद गेरुई की भांति करें।
4. तना सड़न रोग :-
रोकथाम :-
कार्बेन्डाजिम 1.0 किग्रा प्रति हैक्टयर की दर से 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर 2 छिड़काव करे । बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम/किग्रा बीज की दर से उपचारित करें।
5. आरा मक्खी :-
इसकी गिडारें सरसों कुल की सभी फसलों को हानि पहुॅचाती हैं ।गिडारें काले रंग की होती है जो पत्तियों के किनारों को अथवा विभिन्न आकार के छेद बनाती हुई बहुत तेजी से खाती है जिससे पत्तियाँ बिल्कुल छलनी हो जाती है।
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5. माहू :-
यह छोटे कोमल शरीर वाले हरे रंग के कीट होते हैं जिनके झुण्ड पत्तियों फूलों तथा पौधे के अन्य कोमल भागों पर चिपके रहते है तथा रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देते है।
रोकथामः- निम्नलिखित किसी एक कीटनाशक रसायन का प्रयोग कर माहू का प्रकोप यदि अधिक हो तभी कीटनाशी का प्रयागे करें। अन्यथा माहू का मित्र कीटों द्वारा स्वयं जैविक नियत्रंण हो जाता है।
6. बालदार 1⁄4गिडार1⁄2 कीट :-
7. चित्रित बग 1⁄4पेन्टेडबग1⁄2 कीट :- यह नारंगी रंग का धब्बेदार कीट हैं जिसके शिशु तथा वयस्क पत्तियों मुलायम टहनियों तथा कलियों से रस चूसते हैं जिसके फलस्वरुप पौधों की वृद्धि रुक जाती है। कीट कटाई के बाद मड़ाई के लिए रखे गये ढेर में भी हो सकते हैं जो दाने पर आक्रमण करते है।
रोकथाम :- इस कीट के उपचार हेतु मॉह के उपचार में वर्णित किसी एक कीटनाशी को प्रयोग में लाना चाहिए।
कटाई-मड़ाई
जब 75 प्रतिशत फलियॉ सुनहरे रंग की हो जाये, फसल को काटकर सुखाकर मड़ाई करके बीज को अलग कर लेने चाहिए। देर करने से बीजों के झडऩे की आशकां होती है। बीज को खूब सुखाकर ही भण्डारण करना चाहिए।
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