मैंकोजेब
यह डाईबियोकार्बा मेट ग्रुप का एक स्पर्शजन्म फफूंदीनाशी है। यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं विविध उपयागे वाला कवकनाशी रसायण है जो 75 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के रूप में आता है इस उपयागे मुख्य रूप से पत्ती धब्बा झुलसा श्यामवर्ण, रतुआ,तुलासिताआदि रोगो से बचाव हेतु सुरक्षात्मक छिड़काव के लिए किया जाता है। इसकी 2 से 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 7 दिन के अन्तराल पर किया जाता है। यह बाजार में डाइथने एम-45, इण्डोफिल एम-45, एमगार्ड, कोरोथेन, यूथेन इत्यादि व्यवसायिक नामों से उपलब्ध है। अब यह रसायण 35 प्रतिशत एस.सी. एवं 75 प्रतिशत डब्लू.जी. के रूप में भी आ रहा है।
कापर आक्सीक्लोराइड
यह एक ताबायुक्त अकार्बनिक रसायण है जिसमें फफूंदनाशक के साथ-साथ जीवाणुनाशक गुण भी पाया जाता है। पानी में अघुलनशील होने के कारण यह वर्शात में आसानी से घुलता नहीं है। जिसके कारण इसका अपर अपेक्षाकृत लम्बी अवधि तक बना रहता है। आदमियों एवं जानवरों के लिए अपेक्षाकृत कम जहरीला होने के कारण सुरक्षित समझा जाता है। इसका उपयोग मैंकोजेब की तरह 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर सरु क्षात्मक छिड़काव के लिए किया जाता है। इसका उपयोग नीवू के कैंकर, धान के जीवाणु झुलसा आदि जीवाणु जनित रोगो के नियत्रंण हेतु अकेले या किसी एन्टीबायोटिक रसायण के साथ मिलाकर भी किया जाता है।
इसका प्रयोग जैविक खेती में भी किया जा सकता है। यह बाजार में 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के रूप में ब्लाइटाक्स, ब्लूकॅापर, फाइटोनाल, कोप्टर आदि नामों से अपलब्ध है।
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घुलनशील गंधक
सल्फर सबसे पुराना कवकनाशी है जो अभी भी कुछ बीमारियों के प्रति बहतु ही कारगर है।यह विभिन्न रूपों में आता है। तथा कई प्रकार से प्रयोग में लाया जाता है इनमें से घलु नशील गंधक सर्वाधिक प्रचलित है। यह 80 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के रूप में सल्फेक्स, इन्सफथायोविंट, आदि नाम से बाजार में आता है तथा 2-2.5 ग्राम. प्रति लीटर पानी की दर से प्रयोग किया जाता है। चूर्णी फफूदं के लिए यह बहुत ही कारगर है। अधिक तापमान पर इसके प्रयोग से कुछ पौधों पर विशाक्तता हो सकती है। इसका प्रयोग जैविक खेती में किया जाता है।
थाइराम
यह कार्बामेर ग्रुप का एक स्पर्षजन्य फफूंदीनाशी है जो 80 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के रूप में थिरम या थाइरम के नाम से बाजार में आता है। इसका प्रयोग बीज जनित बीमारियों के नियन्त्रण हेतु 2.5-3 ग्रा. प्रति कि.ग्र. बीज की दर से बीज शोधन हेतु किया जाता है। डैम्पिंग आफ या पौधगलन तथा जड़ एवं स्तम्भ सड़न जैसे मृदा जनित रोगों के नियन्त्रण के लिए इसका प्रयागे 2-3 ग्रा. प्रति लीटर पानी की दर ड्रेचिंग या पौध जड़ ऊपचार के लिए भी किया जाता है।
कैप्टान
यह डाइ कार्बोक्समाइड ग्रुप का एक स्पर्षजन्य फफूंदीनाशी है जिसका प्रयागे मुख्यरूप से बीज एवं मृदा जनित बीमारियों के नियन्त्रण के लिए 2.5-3 ग्रा./लीटर या 2.5-3 ग्रा./किग्रा. बीज की दर से क्रमशः मृदा या बीज ऊपचार हेतु किया जाता है। यह व्यवसायिक रूप से 75ः घुलनशील चूर्ण के प्रमुख फफूंदीनाशी रसायन एवं उनका उपयोग रूप में कैप्टान या कैप्टान के नाम से बाजार में उपलब्ध है।
कार्बोक्सिन
यह एमाइड गपु्र का एक सवार्गी कवकनाशी है जो 75ः घुलनशील चूर्ण के रूप में विटावैक्स के नाम से बाजार में उपलब्ध है। इसका प्रयोग मुख्य रूप से अन्तः बीज जनित रोगों- जैसे गेहूँ का
अनावृत्त कंडुवा, के नियन्त्रणके लिए 1.5-2 ग्रा. /कि.ग्रा . बीज की दर से बीज षोधन के लिए किया जाता है।
कार्बोन्डाजिम
यह सर्वा धक प्रयुक्त होने वाला एक सर्वागीं कवकनाशी है जो बेन्जामिडजोल ग्रुप में आता है। इसका प्रयोग मृदा उपचार, बीज शोधन, पौध जड़ उपचार एवं छिड़काव के रूप में किया जाता है। इसका प्रयोग गेहूँ के अनावृत कंडुवा, जड़ एवं तना सडऩ म्लानि, फल सडऩ , श्यामवर्ण, स्कैब, चूर्ण फफदूं इत्यादि के नियन्त्रण के लिए .01% घलु नशील चूर्ण के रूप में बाविस्टिन, जमू , स्टने, डेरोसालफंजीगाई, बेनोफिट, धानुस्टिन आदि के व्यवसायिक नाम से बाजार में उपलब्ध है।
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मेटालैक्सिल
यह निम्नवर्गीय कवको के नियन्त्रण हेतु प्रयुक्त होने वाला सर्वप्रमुख सर्वागीं फफूंदीनाशी रसायन है। यह 35% डब्ल्यू. एस. के रूप में एप्रान या गैलेक्सी के व्यापारिक नाम से बाजार में आता है। जिसका प्रयोग 6 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. की दर से ज्वार, बाजरा व मक्का के तुलासिता रोग, सरसों के सफदे गंरूई एवं तुलासिता रागे तथा पौधशाला में लगने वाले पौध गलन के नियन्त्रण के लिए किया जाता है। आलू के पछेती झुलसा या अन्य फसलां में खडी़ फसल में तुलासिता या सफदे गेरुई रोग के नियन्त्रण के लिए मेटालैक्सिल एवं स्पर्शजन्य कवकनाशी के मिश्रण का प्रयाग किया जाता है। इसके लिए बाजार में रिडोमिल गोल्ड या रिडोमिल एम. जडे . 72 डब्ल्यू. पी. उपलब्ध है इसका 2.5 ग्रा/ लीटर पानी की दर स े घाले बनाकर छिड़काव करना चाहिए। इस रसायन का प्रयोग सावधानी के साथ करना चाहिए। कभी भी इसका लगातार छिड़काव न करें।
साइमोक्जैनिल
यह भी मेटालैक्सिल के समूह का ही एक सर्वांगी कवकनाशी है जो 72% घुलनशील चूर्ण के रूप में किसी स्पर्षजन्य कवकनाशी के मिश्रण के साथ आता है। यह कर्जाटे के नाम से बाजार में उपलब्ध है जिसका 2-2.5 ग्रा./लीटर की दर से आलू की पछेती झुलसा रोग के नियन्त्रण के लिए मेटालैक्सिल की थॉति प्रयोग करना चाहिए।
डाइनोकैप
यह एक सर्वांगी कवकनाशी है जो बाजार में कैराथेन 48 ई.सी. के नाम से आता है। इसका 1 मिली./ली. पानी की दर से घोल बनाकर चूर्णी फफूदं के नियन्त्रण हेतु किया जाता है।
प्रोपीकोनाजोल
यह एक सर्वांगी कवकनाशी है जो 25 ईसी. के रूप में रिल्ट या अन्य नामों से बाजार में उपलब्ध है। इसकी 1 मिली. मात्रा/ली. की दर से घोल बनाकर गेहूँ के गंरू ई, चूर्णीफफदूं , झुलसा आदि रोगों के नियन्त्रण के लिए छिड़काव करते है।
हेक्साकोनाजोल
यह भी प्रोपीकोनाजोल की भाँति एक सर्वांगी, कवकनाशी है जो 5% ई.सी. के रूप में टापर या कोन्टाफ तथा 5% एस.सी. के रूप में कोन्टाफ प्लास तथा 2% एस.सी.के रूप में समर्थ के व्यापारिक नाम से बाजार में उपलब्ध है। इसका 0.01% की दर से सेव के स्कैब, धान के झोंका रागे , मगूं फली के टिक्का रागे तथा अँगूर, आम व मटर के चूर्ण फफदूं के नियन्त्रण के लिए प्रयोग किया जाता है।
क्लोरोथैलोनिल
यह एक स्पर्शजन्य फफदूं नाशक है जो 75% घुलनशील चूर्ण के रूप में कवच या जटायु के नाम से बाजार में उपलब्ध है। इसका प्रयागे आलू व मटर के अगेती एवं पछेती झुलसा, सवे के स्कबै , मगूं फली के टिक्का रोग एवं रतुआ रोग के नियन्त्रण के लिए 2 ग्रा./ली. की दर से छिडकाव के रूप में करते है।
एजाक्सीस्ट्रोबिन
यह एक एंटीबायोटिक है जो स्ट्रोबिलुरिन ग्रुप का सदस्य है। यह एक सर्वांगी कवकनाशी है जो बाजार में एमिस्टार 23% एस.सी. के नाम से उपलब्ध है। इसका प्रयोग टमाटर के अगेती व पछेती झुलसा, मिर्च के फल सडऩ व चूर्णी फफूदं , आम के ष्यामवर्ण एवं चूर्णी फफूदं तथा अंगूर के तुलासिता एवं चूर्णी फफूंद के नियन्त्रण हेतु 1 मिली/ली. की दर से छिड़काव की रूप में करते है।
स्ट्रेप्टोसाइक्लिन
यह एक एन्टीबायेटिक है जिसका प्रयोग जीवाणु जनित रोगों के नियन्त्रण हेतु अकेले या ताम्रयुक्य फफूंदीनाशी के साथ मिश्रित कर के छिड़काव करते है। धान के जीवाणु झुलसा, नीबू के कैकंर, फ्रासबीन के हैलो ब्लाइट, सवे के फायर ब्लाइट, टमाटर या मिर्च के जीवाणु वर्ग चित्ती के नियन्त्रण हेतु 1 ग्रा./10 ली. पानी की दर से छिड़काव करते है। जीवाणुज म्लानि की राकथाम हेतु 1 ग्रा./लीपानी के घोल में पौध जड़ां को डुबाकर उपचारित करने से भी लाभ मिलता है।
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गुलाब मे दवा का उपयोग क्यों करना है दवाओं का उपयोग कम करे तो अच्छा
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हरे लेबिल का कोई कीटनाशक का प्रयोग कर सकते है
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फल मे कीडे का प्रकोप हो सकता है या रोग हो सकता है यदि सडे फल की फोटो भेजे तो उचित निदान बताया जा सकता है |