गेहूं की अधिकतम पैदावार प्राप्त करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिएः –
उन्नतशील प्रजातियों का चयन क्षेत्रानुसार परिस्थिति विशेष हेतु संस्तुत प्रजातियों का चुनाव करे । अपने प्रक्षेत्र पर 2-3 प्रजातियों की बुवाई करें ताकि रोग एवं कीटों के प्रकोप होने पर उपज में कमी न्यूनतम हो।
भूमि की तैयारीः-
बुवाई के समय खेत में खरपतवार एवं ढेले न हो तथा पर्याप्त नमी होनी चाहिए। अतः खेत में नमी की कमी हो तो जुताई से पूर्व पलेवा करे । खेत में ओट 1⁄4जब आसानी से जुताई की जा सके1⁄2 आने पर पहली जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2-3 जुताई हैरो, कल्टीवेटर या देशी हल से करने के बाद पाटा लगा कर खेत को समतल करना चाहिए।धान-गेहूँ फसल चक्र में धान के ढूंढों को जल्दी सड़ाने हेतु 20 किलोग्राम/हैक्टर नत्रजन यूरिया के द्वारा खेत की तैयारी शुरु करते समय डालना चाहिए।
गेहूं की बुवाई का समय
क्षेत्रानुसार गेहूं की बुवाई का समय भिन्न-भिन्न होता है। सामान्यतः गेहूं की बुवाई उस समय करनी चाहिए जबकि औसत तापमान 20 0 -220 सेन्टीग्र ट े हो। जब प्रातः बात करते समय मु ह ॅ से भॉप निकलने लगे या घर में छिपकली कलेन्डर के पीछे छिपने लगे तब गेहूं की बुवाई का उचित समय होता है। समय से पहले बुवाई करने पर कल्ले कम निकलते है तथा बालियॉ जल्दी आ जाती है तथा बाली का आकार छोटा हो जाता है। उपज भी कम प्राप्त होती है विलम्ब से बुवाई करने पर पैदावार में भारी कमी आती है। मैदानी क्षेत्र में दिसम्बर में बुवाई करने पर पैदावार में 45-50 किलोग्राम/हैक्टर/दिन एवं जनवरी में बुवाई करने पर 60-65 किलोग्राम/हैक्टर/दिन की दर से कमी आती है।
अतः उत्तर-पश्चिम मैदानी क्षेत्र के सिचिंत दशा में गेहूं की समय से बुवाई का समय नवम्बर का दूसरा पखवाड़ा है तथा विलम्ब से बुवाई 25 दिसम्बर तक अवश्य पूरा कर लेना चाहिए।
विभिन्न क्षेत्रों एवं परिस्थियों हेतु गेहूं के बुवाई का समय निम्नवत
गेहूँ के बुवाई का उचित समय
क्षेत्र/परिस्थिति | बुवाई का समय |
---|---|
मैदानी क्षेत्र 1. असिंचित 2. सिंचितक. क. समय से बुवाई* ’ख. विलम्ब से बुवाई |
अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा नवम्बर का प्रथम एवं दूसरा पखवाडा 25 दिसम्बर तक |
पर्वतीय क्षेत्र 1700 मीटर से नीचे 1. असिंचितजल्दी बुवाईसमय से बुवाई 2. सिंचितजल्दी बुवाईसमय से बुवाई1700 मीटर से ऊपर असिंचितसमय से बुवाई |
अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ानवम्बर का प्रथम पखवाड़ा नवम्बर का दूसरा पखवाड़ाअक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा |
*वातावरण का तापमान 220 सेन्टीग्र ड से अधिक हो तो नवम्बर के प्रथम पखवाड़े में बुवाई न करें।
बीज दर
समय से लाइनों में बुवाई हेतु बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हैक्टर प्रयोग करे । विलम्ब दशा में लाइनों में बुवाई हेतु बीज की मात्रा 125
किलोग्राम/हैक्टर प्रयोग करे । अगर गेहूं की बुवाई छिटकवॉ विधि से करते हैं तो बीज दर में 25 प्रतिशत की बढोत्तरी करे । गेहूं की प्रजाति यू.पी.-2425 की तरह के मोटे दाने वाली हो तो बीज की उपरोक्त बताई गईमात्रा में 25 प्रतिशत की बढोत्तरी करना लाभदायक होता है। अगर बीज का जमाव 85 प्रतिशत से कम हो तो जमाव प्रतिशत में कमी के अनुसार बीज की मात्रा में बढोत्तरी करे ।
बीजोपचार
प्रमाणित बीज उपचारित होता है स्वंय उत्पादित बीज को बीज
जनित रोगों से बचाव हेतु बीजोपचार निम्न फफूॅदीनाशक एवं बायोएजेन्ट
कवक से करना चाहिए।
(क) कार्बोक्सिन – 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर
(विटावेक्स 75 डब्लू. पी) से। या
(ख) टेब कू ोन जे ोल – 1.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर
(रैक्सिल 2 डी. एस.) से। या
(ग) कार्बेन्डाजिम – 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर
(बाविस्टीन या 50 डब्लू पी) से। या
(घ) कार्बोक्सिन – 1.25 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की
(विटावेक्स 75 डब्लू. पी) दर से।
बायोएजेन्ट कवक – 4.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर
(टांइकोडर्मा विरीडी) से।
दीमक प्रभावित क्षेत्रों मे बीज का शोधन कीटनाशी
रसायनो – क्लोरपाइरीफास 20 ई.सी. के 5.0 मिलीलीटर अथवा थियामेथेक्जाम 30 एफ एस के 3.3 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से भी करे । विभिन्न प्रकार के कृषि रसायनों से बीज शोधन के समय ‘ थ्प्त् ’ का क्रम रखना चाहिए। इसका अर्थ है कि सर्वप्रथम बीज को फफूॅदीनाशक से फिर कीटनाशक से तथा अंत में कल्चर एवं बायोएजेन्ट से बीज शोधन करना चाहिए। प्रत्येक शोधन के बाद बीज को छाया में सुखाना चाहिए।
बुवाई की विधि
गेह ँ ू की बुवाई हेतु ‘‘सीड़-डिंल’’ का प्रयोग करे । सीड़ डिंल से बुवाई करने पर बीज उचित गहराई पर बोया जाता है जिससे बीज का
जमाव अच्छा होता है। समय से बुवाई हेतु लाईन से लाईन के बीच की आपसी दूरी 22-23 सेन्टीमीटर तथा विलम्ब से बुवाई में लाईनों की आपसी
दूरी 15-18 सेन्टीमीटर रखना चाहिए। बीज को 5 सेन्टीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। अधिक गहराई पर बोने से जमाव में कमी आती है एवं
कल्ले भी कम निकलते है ।
खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग मिटटी के परीक्षण के संस्तुती अनुसार करना चाहिए। अगर मिटटी का परीक्षण नहीं किया गया हो तो समान्तयः
निम्न मात्रा में पोषक तत्वों का प्रयोग करे ।
प्रजातियाँ | संस्तुत मात्रा (किलोग्राम/हैक्टर)
नत्रजन फास्फोरस पोटाश |
||
---|---|---|---|
पर्वतीय क्षेत्र असिंचित सिंचित |
60 100-120 |
30 60 |
20 40 |
तराई एवं भावर और मैदानी क्षेत्र सिंचित दशा समय से बुवाई विलम्ब से बुवाई |
120-150* 80 |
60 40 |
40 30 |
*धान-गेहूँ फसल चक्र
प्रयोग विधि
असिंचित दशा में उर्वरकों की सम्पूर्ण मात्रा बुवाई के समय ही प्रयोग करते है। अगर वर्षा समय से हो तो अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु 10 किलोग्राम नत्रजन प्रति हैक्टर की दर से यूरिया द्वारा टापडं ि े संग करे । वर्षा नहीं हुई हो तथा फसल पीली दिखाई दे रही हो तो यूरिया की 2 प्रतिशत घोल का पर्णीय छिड़काव करे । सिंचित दशा में कुल नत्रजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस एव पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई से पहले मिटटी में मिला दे । नाइटांजेन की शेष मात्रा पहली सिंचाई के बाद टापडं ि े संग के द्वारा प्रयोग करे ।
समन्वित पोषण प्रबंधन
उर्वरकों तथा गोबर की सड़ी खाद के समन्वित प्रयोग से भूमि की संरचना में सुधार तो होता है साथ ही गेहूँ की पैदावार में आशातीत बढ़ोत्तरी होती है। अतः असिंचित एवं सिंचित दोनों ही दशा में गेहूँ की बुवाई से 15-20 दिन पहले ही 10 टन गोबर की खाद प्रति हैक्टर प्रयोग कर भूमि में मिला दे । अगर गर्मी में सिचाई का साधन उपलब्ध होतो धान-गेहूँ फसल चक्र में गेहूँ की पैदावार में आ रही कमी को रोकने हेतु निम्न सस्य विधियां
अपनाएः-
1. धान की फसल के बाद गेहूँ के लिए खेत की जुताई से पूर्व 20 किलाग्राम नत्रजन प्रति हैक्टर का यूरिया द्वारा प्रयोग करे ।
2.गेहूँ की कटाई एवं धान की रोपाई के बीच की अवधि में हरी खाद के लिए ढै चं ा या सनई की बुवाई करें तथा 50-60 दिन बाद खेत में पलट दें।
3. धान की फसल में 20-25 किलाग्राम/हैक्टर जिंक सल्फेट का प्रयोग नहीं किया गया हो तो गेहूँ की बुवाई के 20-30 दिन पर पहली सिंचाई के आस-पास पौधों में जिंक की कमी के निम्न लक्षण दिखाई पड़ते हैः-
क. प्रभावित पौघे स्वस्थ पौधों की तुलना में बौने रह जाते है।
ख. शुरु में तीन-चार पत्तियों की शिराओं के मध्य भाग में पर्णहीनता दिखाई देती है। पौधे पीलापन लिए होते है। खड़ी फसल में यदि जिंक की कमी के उपरोक्त लक्षण दिखाई दें तो 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट तथा 16 किलोग्राम यूरिया को 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करे । आवश्यकतानुसार 10-15 दिनों के अंतराल में 2-3 छिड़काव करे । कुछ क्षेत्रों में जिंक के अतिरिक्त गंधक 1⁄4सल्फर1⁄2 तथा मै ग
नीज की कमी के निम्न लक्षण दिखाई देते हैः-
गंधक (सल्फर) :- सल्फर की कमी रेतीली भूमि में दिखायी देती है अथवा पौधें की छोटी अवस्था में अधिक वर्षा होने पर भी सल्फर की कमी के लक्षण दिखाई देते है और पत्तियों का हरा रंग समाप्त होने लगता है और पत्तियों की शिराओं का मध्य पीला पड़ने लगता है। पौधों की बढ़वार रुक जाती है और कल्ले कम निकलते है। कमी को दूर करने हेतु फास्फोरस का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट द्वारा करना चाहिए जिसमें फास्फोरस के अतिरिक्त सल्फर भी होता है।
मैंगनीजः- पौधों में निचली पत्तियों पर छोटे गोल धूसर सफेद धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में मिलकर धारी बनाते है। कमी के लक्षण दिखाई पड़ते ही
5 ग्राम मैगनीज सल्फेट और 20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी में घोलकर 10 दिनों के अंतराल पर 2-3 छिड़काव करे ।
उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपया
उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने हेतु मृदा के प्रकार के अनुसार निम्न विधि से उर्वरक का प्रयोग करे ।
1. दोमट या मटियारः- नत्रजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूड ा ं े में बीज से 2-3 सेन्टीमीटर
नीचे एवं बगल में देना चाहिए। नत्रजन की शेष दो तिहाई मात्रा पहली गांठ बनते समय 1⁄4बुवाई के 35 से 40 दिन1⁄2 टापडेंसिंग द्वारा देना
चाहिए। मटियार मृदा में नत्रजन टापडेंसिंग सिंचाई के 3-4 दिन पहले करना लाभप्रद होता है।
2. बलुई दोमट एवं बलुई भूड़ः- नत्रजन की एक तिहाई तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय कूड ा ़ ं े के 2-3 सेन्टीमीटर नीचे एवं बगल में दे । एक तिहाई नत्रजन को पहली सिंचाई (बुवाई के 20-25 दिन) के बाद तथा शेष एक तिहाई मात्रा को दूसरी सिंचाई के बाद
टापडे ि ं संग द्वारा प्रयोग करे । इन मृदाओं में नत्रजन की टापडे ि ं संग सिंचाई के बाद ओट आने पर करना अधिक लाभप्रद होता है।
अगर मृदा में जिंक की कमी हो तो 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट को अंतिम जुताई के पूर्व प्रयोग करे । फास्फोरस उर्वरक के साथ जिंक सल्फेट का प्रयोग एक साथ नहीं करना चाहिए।
निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार प्रबंधन
बुवाई के 25-30 दिन एवं 45-50 दिन पर दो निराई-गुड ा ई करने से खरपतवारों का समुचित विकास नष्ट हो जाता है। अगर मानव श्रम की
कमी हो तो खरपतवारों का प्रब ध् ं ान शाकनाशी रसायनों के द्वारा भी किया जा सकता है। खरपतवारों के प्रकार के अनुसार शाकनाशी रसायनों का चुनाव निम्न सारणी के अनुसार करे ।
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