साधारण नाम- हजारदाना
वानस्पतिक नाम- फाइलेंथस एमरस
उपयोग– सम्पूर्ण पौधे ( पंचांग ) का उपयोग परम्परागत रूप से पीलिया तथा अन्य बीमारियों में होता है। लोक औषधि में इसका प्रयोग गुर्दा रोग, मूत्ररोग, आंत सम्बन्धी बीमारियां, शर्करा तथा यकृत रोगों में होता है। फाइलेंन्थीन तथा हाइपोफाइलेंथीन इसके जैव सक्रिय यौगिक है।
पौध परिचय– यह एक बहुवर्षीय पौधा है इसका तना सीधा तथा 10 से 60 सेमी होती है। इसमें आजीवन पुष्प निकलते हैं।
जलवायु– इसके पौधे भारत में 700 मी. की ऊंचाई तक के क्षेत्रों में बहुतायत में मिलते हैं। जबकि देश के दक्षिणी भाग में इसकी उपलब्धता कम है। यह समशीतोष्ण जलवायु में अच्छी तरह पनपता है। हालांकि विषम परिस्थितियों में कठिनाई से जीवित रहता है। जलभराव का इसमें बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। छाये में इसकी बढ़वार कम होती है।
भूमि– विभिन्न प्रकार की मृदाओं में,जिसका पी एच क्षारीय से उदासीन होता है, पौधे अधिकता से पनपते है। पथरीली तथा सिंचाई वाली जमीन पौधों के लिए उपयुक्त है।
प्रवर्धन– नर्सरी में बीजो को उगाकर पौधों की रोपाई की जाती है। प्रति हेक्टेयर लगभग 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों की बुवाई को बराबर रखने के लिए इन्हें शुष्क मृदा और बालू के साथ मिश्रित किया जाता है। बीजों के जमने तक उचित नमी रखी जाती है। उत्तर भारत के मैदानों में अप्रैल से मई महीने में बीजों की अंकुरण दर अधिक होती है। इन्हें मार्च से अक्टूबर तक भी बोया जा सकता है।
पौध- रोपण एवं भूमि की तैयारी– लगभग 30 – 40 दिनों की पुरानी पौध ( लम्बाई 10-15 ) को पूर्ण रूप से तैयार खेत में 40×20 सेमी की दुरी में ( 1,25,000 पौधे/हेक्टेयर ) रोपाई करते हैं। रोपण के बाद हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। रोपण विधि से फसल अधिक उपज देती है।
खाद एवं उर्वरक– कार्बनिक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मीकम्पोस्ट, हरित खाद का आवश्यकतानुसार उपयोग किया जाता है।
सिंचाई– वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नही होती है। जहाँ कम वर्षा होती है, प्रत्येक पखवारे में सिंचाई आवश्यक होती है।
निराई– खेत को पूरी तरह खर-पतवारों से मुक्त रखना चाहिए। नियमित रूप से प्रत्येक माह हाँथ से निराई की आवश्यकता होती है। व्यवसायिक खर-पतवार नाशक का प्रयोग वर्जित है, क्योंकि यह फसल की गुणवक्ता को प्रभावित कर सकता है।
भुई आंवला- कटाई एवं भंडारण
रोपण के लगभग 60 दिनों के बाद पौधों की कटाई की जाती है। चूंकि failenths एमरस के सक्रिय तत्व की उपलब्धता पत्तियों में ज्यादा होता है , इसलिए पत्तियों की अधिक मात्रा का उत्पादन लाभकारी होता है।
उपज- 14 – 16 कुंतल सूखा शाक।
भूमि आंवला (भुई आंवला) – अनेक बीमारियों की औषधि
भूमि आंवला
-लीवर की सूजन,
-सिरोसिस,
-फैटी लिवर,
-बिलीरुबिन बढ़ने पर,
-पीलिया में,
-हेपेटायटिस B और C में,
-किडनी क्रिएटिनिन बढ़ने पर,
-मधुमेह आदि
में चमत्कारिक रूप से उपयोगी हैं।
(भूमि आंवला (भुई आंवला) लिवर के रोगियों के लिए वरदान है|)
[स्रोत- सीमैप लखनऊ]