साधारण नाम- वच वानस्पतिक नाम- एकोरस कैलेमस। उपयोग– भूस्त्रीय तने ( राइजोम ) का प्रयोग पारम्परिक रूप से तिक्त पाचक, पेट दर्द निवारक व अन्य बहुत सी बीमारियों में किया जाता हैं। पौध परिचय– सामान्यतया इसकी खेती दलदली, अर्ध जलप्लावित भूमि में बहुवर्षीय फसल के रूप में की जाती है जिसका भूस्त्रीय तना जमीन में फैलता रहता है। हिमालयी क्षेत्रों 2200 मीटर ऊंचाई तक व सम्पूर्ण भारत में इसके पौधे प्राकृतिक अवस्था में पाए जाते है। जलवायु– शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण जलवायु अधिक उपयोगी है। भूमि– मटियार एवं दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। 5.5 – 8.0 पी एच तक वाली मिट्टियों से इसकी अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है। जलभराव वाली भूमियों में भी सफलतापूर्वक खेती की जा सकती है। प्रवर्धन– भूमिगत तनों के सकर्स की टुकड़े काटकर। पौधरोपण एवं भूमि की तैयारी- खेत की अच्छी जुताई करने के पश्चात उसमे सड़ी हुई गोबर की खाद उचित मात्रा में मिलाले। 45 सेमी लाईन से लाईन तथा 30 सेमी पौधे से पौधे की दुरी पर टुकड़ो की रोपाई कर तुरन्त सिंचाई करें। रोपाई का उपयुक्त समय फरवरी – मार्च और जुलाई – अगस्त होता है। खाद एवं उर्वरक- नत्रजन, फास्फोरस व पोटाश क्रमशः 25:50:50 किग्रा /हे. की दर से अंतिम जुताई के पूर्व खेत में मिलाना चाहिए। ततपश्चात 100 किग्रा/हे. की दर से नत्रजन का चार बराबर भागों में, रोपाई के 30, 60, 90 तथा 120 दिन बाद डालना चाहिए। सिंचाई- फसल को अधिक मात्रा में जल की आवश्यकता पड़ती है। अतः आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। खुदाई- 18 से 24 माह बाद ठीक रहती है। भंडारण– अच्छी प्रकार सुखाये गये तने के टुकड़ो को ह्वारोधित पत्रों में भंडारित किया जाना चाहिए। उपज– ताजी जड़ो की उपज 8-9 टन/हे.। आय- व्यय– व्यय प्रति हेक्टेयर रु. 60,000 कुल आय प्रति हे. रु. 1,05,000- 1,25,000 /- शुद्ध लाभ प्रति हेक्टेयर रु. 45,000 – 65,000/- वच-के-फायदे-(vacha-sweet flag)