गेहूँ में लगने वाले कीट एवं चूहों के प्रकोप एवं हानि लक्षण और रोकथाम के उपाय निम्नवत है।
गेहूं में होने वाले रोग का नियंत्रण
कटाई प्रबंधन
कीट का नाम | प्रकोप और हानि | रोकथाम के उपाय |
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दीमक | पौधे की प्रत्येक अवस्था में कीट जड़ों पर आक्रमण करते हैं। प्रभावित पौधें आसानी से उखड़ जाते है। | कच्चे गोबर का प्रयोग खेत में नहीं करे। सड़ी गोबर की खाद ही प्रयोग करें। फिप्रोनिल 5 एफ.एस के 6 मि.ली. प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज शोधन कर बीज का आधा घटां छाया म सुखाकर बुवाई करें। खडी़ फसल म पक्रापे होता इमिडाक्लाेपड्र 200 एस एल के 875 मि.ली. या बाईफेन्थ्रिन 10 ई.सी. के 750 मि.ली. या फिप्रोनिल 5 एस सी के 3.5 लीटर को सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करे। |
गुजिया | कीट जमीन में ढेलों या दरारों में छिपा रहता है। यह उग रहे पौधों की जमीन की सतह से थाडे़ नीचे काटकर हानि पहचॅुता है। | क्लोरपाइरीफास 20 ई.सी. के 5 मि.लीप्रति कि.ग्राम बीज की दर से शोधन या मैलाथियान 5 डी.पी. के 30 किग्रा. को भूमि में बुवाई से पूर्व मिलाए या सिंचाई के समय खेत म 5 लीटर क्लोरपाइरीफास 20 ई.सी. का प्रयोग करे। |
मॉहू | छोटे कोमल शरीर वाले हरे रंग के लिए जो पत्तियों, पुष्प विन्यास आदि पर चिपके रहते है तथा रस चूसकर पौधों को कमजोर करके नुकसान पहुॅचाते है। | मॉहू का प्रकोप हो तो इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. के 140 मि.ली./हे. या थायोमिथेक्साम 25 डब्लू एस जी के 100 मि.ली./हैक्टर का 500-600 लीटर पानी में धोलकर छिड़काव करें। 15 दिन पर दूसरा छिड़काव करें। छिड़काव सुबह या शाम उस समय करें जबकि बारिश या तेज हवा नहीं चल रही हो। |
चूहा | खडी़ फसल में पौधे को काटकर चूहे बहुत हानि पहुॅचाते है | जिंक फास्फाइड अथवा बेरियम कार्बोनेट में बने जहरीले चारे का प्रयोग करे। जहरीला चारा बनने होते जिकं फास्फाइड एक भाग, सरसों के तेल एक भाग तथा 48 भाग दाना अथवा बेरियम कार्बोनेट 100 ग्राम, गेहूँ का आटा 860 ग्राम, शक्कर 15 ग्राम तथा 25 ग्राम सरसों का तेल का प्रयोग करें। चूहों की रोकथाम हेतु 2-3 बार सामूहिक रुप से कार्यक्रम चलाना चाहिए। |
रोग नियंत्रणः– गेंहू के रोग, प्रकोप एव हानि के लक्षण और राकेथाम के उपाय निम्नवत है।
कीट का नाम | प्रकोप और हानि | रोकथाम के उपाय |
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पहाड़ी बन्ट या दगुर्न्धयक्त कण्डअु | पौधों की बालियों के दाने कण्डुआ की काले रंग की गांठों में बदल जाते है। अतः बालियॉ फैली सी दिखायी दते है। इसस सडी़ मछली जैसी दुर्गन्ध आती है। | बीज शोधन करें। |
करनाल बन्ट | रोगी दाने आंशिक रुप से काले चूर्ण में बदल जाते है। यह भी बीज जनित रोग है। | बीज शोधन करें। खड़ी बीज की फसल में 25 प्रतिशत बाली निकलने पर 2 कि.ग्रामैन्कोजेब अथवा 500 मि.ली. प्रोपीकोनाजोल प्रित है. 100 लीटर पानी में घालेकर छिडक़ाव करें। |
सेहॅू रोग (ईयर काकेल) | यह सूत्र कृमि द्वारा होता है। रोगग्रस्त पौधों की पत्तियों मुड़ तथा सिकुड़ जाते है। रोगग्रस्त बालियॉ छोटी एवं फैली हुई होती है। दाने के जगह काले रंग की गोल गॉठे बन जाती है। | 1.रोग प्रभावित खेत में 2-3 साल तक गेहूँ न बोए। 2.प्रमाणित बीज की बुवाई करें। 3.रोग प्रभावित खेत के बीज को 2 प्रतिशत नमक के घोल में डुबाए तथा तैरते सूत्रकृमि ग्रसित गॉठों को निकालकर नष्ट करें। बीज को 3-4 बार साफ पानी से धोए तथा छाया में सुखाकर बुवाई करें। |
झुलसा रोग | पहले निचली पत्तियों पर पीले एवं भूरेपन लिए अण्डाकर धब्बे बनते है। बाद में धब्बे किनारों पर कत्थई भूरे रंग के तथा बीच में हल्के भूरे रंग के हो जाते है। | मैन्कोजेब 2 कि.ग्रा. अथवा प्रोपीकोनाजाल 500 मि.ली./है को 800-1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। |
गरुइ र्या रतअु रोग | गेरुई तीन प्रकार (पीला या धारीदार भूरा तथा काला) रंग का होते है। | संस्तुत गेरुई रोधी प्रजातियों की बुवाई करें। बुवाई समय से करें। संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। प्रोपीकोनाजाल 500 मि.ली. या हैक्साकोनेजोल 1 लीटर/है. का छिड़काव करें। |
चूर्णी फफूदी रोग/चूर्णिल आसिता | चूर्णी फफूदी रोग/चूर्णिल आसितासबसे पहले निचली पत्तियों पर सफेद पाउडर जो बाद में बालियों एवं तनों पर फैल जाता है। | रोगरोधी किस्मों की बुवाई करे। संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। प्रोपिकोनाजोल 25 ई.सी. या टेनूकोनाजोल 250 ई.सी. के 500 मि.ली./है. को 500 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करें । |
गेहूँ की भरपूर उपज प्राप्त करने हेतु फसल की कटाई उचित समय पर करनी चाहिए। गेहूँ की बालियॉ सुनहरे पीला रगं की हो जाय और थाडे़ झुक जाय। उस समय कटाई करें। कटाई क समय दान मे 14-15 प्रतिशत से अधिक नमी नही होनी चाहिए। समय से पहल कटाई करने से गेहूँ की उपज एव गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पडत़ा है। कटाई में दरे होने से चूहे एव चिडिय़ा से नुकसान होने का अदंश् रहता है।
गेहूँ की कटाई का समय विभिन्न प्रजातिया एव उत्पादक क्षत्रे मे अलग-अलग हाते है। उत्तर-पश्चिमी भारत मे गेहूँ की फसल की कटाई मध्य अप्रैल से अप्रैल के अतं तक की जाती है।
गेहूँ की मडा़ई करने के लिए कटी हुई फसल का सूखा हाने नितान्त आवश्यक है अन्यथा मडा़ई में अधिक समय लगता है। अतः कटाई क बाद 4-5 दिन तक सुखान के बाद गेहूँ की मडा़ई कर लेनी चाहिए। मडा़ई के तुरन्त बाद आसेई भी कर लेनी चाहिए। थ्रैसर से गहाई करना उचित है। आजकल कम्बाईन द्वारा कटाई-मडा़ई एवं आसेई सभी कार्य एक साथ किया जाता है।
भण्डारण
अनाज को भण्डारण से पर्वू अच्छी तरह सुखा लेना चाहिए। अनाज में नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से कम होनी चाहिए। अनाज को टीन की बनी बखारिया में भण्डारित करना चाहिए। भण्डारण से पर्वू भण्डार गृह को साफ करके फर्श एवं दिवारा पर मैलाथियान 50 ई.सी. क घाले (1:100) का 3 लीटर प्रति 100 वर्ग मीटर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए। कुठल एवं बखारी कढक्कन पर पॉलीथीन लगाकर मिट्टी से लेप करना चाहिए जिसस भण्डारण स्थल वायुराध् हो जाए।
उपज
सिंचत क्षेत्र में औसत उपज 50-60 कुन्तल/हैक्टर तक प्राप्त हाते है। असिंचत क्षेत्र में 25-30 कुन्तल/हैक्टर तक उपज प्राप्त होता है। दाना के अतिरिक्त 70-80 कुन्तल/हैक्टर भूसा भी प्राप्त होता है।
धान के खेत मे बिना जुताई गेहूँ की खेती
धान की कटाई के बाद गेहूँ हेतु खते की तैयार मे अधिक समय एवं व्यय हाते है। अतः धान के खते में बिना जुताई के गेहूँ की बुवाई हते पतं जीरा, टिल सीडड्रिल का विकास किया गया है। इससे निम्न लाभ होता है।
1. इस सीडडिल्र से एक घण्ट 0.4 ह.क्षत्रे फल की बुवाई रोकी जा सकती है।
2. पारम्परिक विधि की तुलना में नमी वाल खते म 6-8 दिन पहल बुवाई सम्भव है।
3. इस विधि में 10-12 घटं ट्रैक्टर का समय तथा 40-50 लीटर डीजल की बचत हाते है।
4. पारम्परिक विधि से बुवाई की तुलना में उपज पर कोई विपरीत प्रभाव नही पडत़ा है। कही-ंकही पर उपज अधिक पाई गयी है।
गेहूँ की विलम्ब दशा में बुवाई हेतु ध्यान देने योग्य बिन्दु
1. विलम्ब दशा में बुवाई 25 दिसम्बर तक अवश्य पूरा कर ले।
2. क्षत्रे विशष् हेतु विलम्ब दशा में बुवाई हते सस्ंतुत प्रजातिया का चयन करें।
3. विलम्ब दशा में बीज दर में 25 प्रतिशत की बढा़त् तरी करें।
4. बुवाई से पूर्व बीज का 8-10 घटं पानी में भिगंऐ । इसक बाद बीज को छाया में सुखाकर बुवाई करें।
5. विलम्ब दशा में उर्वरका की कम मात्रा 80-100 किलाग्राम नत्रजन, 40-50 किलाग्राम फास्फारेस तथा 30 किलाग्रेम पाटेश प्रति हैक्टर प्रयोग करें। बुवाई के समय 2/3 नत्रजन एवं फास्फोरस और पाटेश। बाकी 1/3 नत्रजन पहली सिचांई क बाद।
6. लाइना के बीच की दुरी 15-18 सन् टीमीटर तथा बुवाई की गहराई 2-3 सन्टीमीटर रखे।
7. उपलब्धता होने पर बुवाई के तुरन्त बाद सडी़ गोबर की भुरभुर खाद का बुरकाव के बाद पाटा लगाए।
8. पहली सिचंई में एक सप्ताह का विलम्ब करे।
9. मार्च के बाद की सिचंई हल्की करे। सिचंई समय तजे हवा नहीं चलनी चाहिए।
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Ishi prakar se boni honi chaiye ish se kafhi labh milega
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सर गेहूँ मे मुन्डी घास हो रही है किस दवा का प्रयोग करे
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Sir g namaskar ..main up saharanpur se hu …mane apni gheu ki fasal 8 nov ko boi thi ..2967 varity ..Bone ke time NPK daala tha ..uske baad first paani par ..urea+sulphur+homic acid daala tha ..dusre paani par pjir urrea daala tha ..uske baad ..fungisie+NPK 19 19 19 ka spray kiya …lekin abhi bhi fasal sahi nahi ha ..peeli aur kahi badi kahi choti ha ..plz koi upay batie
अरे भाई जरूरत से खाद दोगे तो नुकसान ही होगा किसी भी वैज्ञानिक ने ऐसी सलाह नहीं दी होगी अब कुछ मत डालो बस पानी की आवश्यकता को पूरा करो सुधार होगा