जानिये सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व, कमी के लक्षण एवं उपचार

अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों की भाँति सूक्ष्म पोषक तत्व भी पौधों की बढ़वार एवं उनसे प्राप्त होने वाली उपज पर प्रभाव डालते है। यद्यपि सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता फसल को कम मात्रा में ही होती हैं परन्तु इसका तात्पर्य है कि इनकी महत्ता कम है कदापि सत्य नहीं है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर उपज एवं उत्पाद की गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है। इसके अतिरिक्त इनकी कमी होने पर भरपरू मात्रा में नत्रजन, फोस्फरस एवं पोटाश उर्वरकों के प्रयोग करने पर भी अच्छी उपज नहीं प्राप्त होती है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की श्रेणी में जस्ता, लोहा, ताँबा, मैगनीज, बोरान, मॉलिब्डिनम एवं क्लोरीन आते हैं। मृदा परीक्षणों  के आधार पर, देश की मृदाओं मे सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का प्रतिशत इस प्रकार हैः जस्ता (49 प्रतिशत), बोरान (33 प्रतिशत), लोहा (12 प्रतिशत), मगैनीज (4 प्रतिशत), एवं ताँबा (3 प्रतिशत)। माॅलब्डिनम की कमी विशेषतया अम्लीय मृदाओं मे उगाई जाने वाली दलहनी फसलां एवं गोभी संवर्ग की फसलों पर देखी गयी है एवं माॅलब्डिनम की कमी वाली मृदाओं का प्रतिशत भी न्यून है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की निश्चित जानकारी मृदा परीक्षण एवं पादप उत्तक विश्लेषण से ही की जा सकती है। इसके अतिरिक्त सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर पौधों पर कुछ द्रश्य लक्षण भी उत्पन्न होते हैं। जिन की जानकारी होने, कृषक बंधुओ के लिए आवश्यक है। इसके अतिरिक्त कछु विशेष मृदा गुणों के होने पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की संभावना भी अधिक होती है। ये मृदा गुण इस प्रकार है:

सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व

सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व

1.जस्ता :मृदा क्षारीयता, मृदा में चूना पत्थर का अधिक प्रतिशत, निक्षालित बलुई मृदायें, जल भराव ग्रसित मृदायें, मृदा में जवै पदार्थ की कमी।
2.लोहा :मृदा क्षारीयता, मृदा में चूना पत्थर की उपस्थिति, मृदा में जवै पदार्थ का निम्न प्रतिशत।
3.ताँबा :मृदा क्षारीयता, जैव मृदाये।
4.मैंगनीज : मृदा क्षारीयता, मृदा में चूना पत्थर का उच्च प्रतिशत, निक्षालित बलुई मृदायें, निम्न जैव पदार्थ की उपस्थिति, जैव मृदाये।
5.बोरान  : मृदा अम्लीयता, मृदा में चूना पत्थर का उच्च प्रतिशत, निक्षालित बलुई मृदायें, मृदा में जवै पदार्थ का न्यनू प्रतिशत, जवै मृदायें।
6.मॉलिब्डिनम : मृदा अम्लीयता, निक्षालित बलुई मृदायें से, निम्न जैवांश वाली मृदायें।
प्रमुख सूक्ष्म पोषक तत्व जिन की कमी प्रायः कुछ फसलों में देखी जाती है उनके लक्षण एवं उपचार निम्न हैः

1. जस्ता

धान : धान की नर्सरी में जस्ते की कमी के लक्षण पौधों की पत्तियों पर छोटे कत्थई  रंग के धब्बों के रूप में आती है।इसके अतिरिक्त रोपाई के 10-15 दिनों के बाद, जस्ते की कमी होने पर तीसरी पत्ती के आधार पर पीलापन आता है और उसके पश्चात् छोटे -छोटे कत्थई रंग के धब्बे पत्तियो  पर पड़ते हैं जो बाद में मिलकर बड़े धब्बों या लाइन का रूप ले लेते हैं।
मक्का : जिन खेतो में जस्ते की कमी होते है। मक्के के पौधे लंबे नहीं हो पाते हैं आरै पत्ती के आधार पर शिराओं के बीच पीलापन आता है जो धीरे-धीरे ऊपर की आरे बढ़ता है। अधिक कमी रहने पर पत्तियों के बीच की दूरी घट जाती है जिसमे कि कई पत्तियाँ एक ही जगह से निकली हुई प्रतीत होती है।
गेहूँ : पत्तियों पर पीली धारी बनती है। अधिक कमी होने पर पत्ती का रगं घूसर सफदे होकर सूख जाता है।
गन्ना : पत्तियों का छोटा होना । नई पत्तियों के आधार पर पीलापन दिखाई देता है जिन खेतों में जस्ते की कमी हो, 25 कि.ग्रा. जिकं सल्फटे (21 प्रतिशत) प्रति हेक्टेयर का प्रयोग बुवाई के पूर्व करना चाहिए। यदि जि वक खाद का प्रयोग 5 टन प्रति हेक्टेयर पर किया गया हो तो जिंक सल्फेट की मात्रा आधी (12.5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर) की जा सकती है। यदि बुवाई के पूर्व जिंक सल्फेट का प्रयोग न किया गया हो और खड़ी फसल में जस्ते की कमी के लक्षण दिखाई दे तो 5 ग्राम जिंक सल्फेट और 20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर के घोल को 2-3 बार फसल पर छिड़कना चाहिए।सूक्ष्म पोषक तत्वों का  महत्व , क मी के लक्षण एवं उपचार

2. लोहा

धान : धान की नर्सरी में लोहे की कमी के लक्षण ऊपरी पत्तियों के पीला पड़ने या सफेद होने से प्रकट होते हैं। यह कमी जल की कम आपूर्ति होने पर अधिक दिखती है आरै यूरिया के छिरकाव से भी यह पीलापन दरू नही होता है। नर्सरी में यदि गोबर की खाद का प्रयोग किया गया हो आरै जल की आपूर्ति पूरी होती रहे तो यह लक्षण नही प्रकट होते है।
गन्ना : गन्ने की पेड़ी में लोहे की कमी के लक्षण प्रायः देखे जाते हैं। इसकी कमी से नई पत्तियों में शिरा के बीच पीलापन आता है और पत्ती शीर्ष से आधार की ओर सूखने लगती है।
सोयाबीन एवं मूगँ फलीः नई पत्तियों में शिराओं के बीच पीलापन आता है आरै बाद में शिराये भी पीली पड़ने लगती है। पत्ती के किनारे के भाग पर भूरे मृत धब्बे पड़ते है।

लोहे की कमी होने पर धान की नर्सरी में 10 ग्राम फैरस सल्फटे प्रति लीटर के घाले का छिड़काव सप्ताह में दो बार करना चाहिए। अन्य फसलों में लोहे की कमी को दरू करने के लिए इस घाले का छिड़कावव 10-15 दिनों के अन्तराल पर लक्षण दरू होने तक करना चाहिए।

3. मैंगनीज

गेहूँ : गेहूँ की फसल में मैगनीज की कमी होने पर पुरानी पत्तियों पर छोटे – गोल घूसर सफदे धब्बे पड़ते हैं जो बाद में जुड़कर धारी का रूप  ले लेते है ।
गन्ना : गन्ने की फसल में पत्तियों की शिराओं के बीच शीर्ष से मध्य की आरे पीलापन आता है। जिन खेतो में मैंगनीज की कमी हो बुवाई से पूर्व 30 किग्रा . मैंगनीज सल्फटे प्रति हैक्टर प्रयोग करना चाहिए। खड़ी फसल में मैगनीज की कमी के लक्षण दिखने पर 5 गा्रम मैगनीज सलफेट 20 ग्राम यि रया प्रति लीटर के घोल का 2-3 बार छिड़काव करना चाहिए।

4. बोरान

संकर धानः संकर धान की फसल में बोरान की कमी के लक्षण, नई पत्तियों पर सफेद लम्बे धब्बो के रूप में दिखाई देते हैं।
मक्का : नई पत्तियों पर लम्बे सफदे धब्बो के  रूप में बोरान की कमी के लक्षण दिखते हैं।
गन्ना : नई पत्तियों का सूखना और नई पत्तियों में शिराओं के बीच अधपारदर्शी धब्बे पड़ने लगते हैं।
सोयाबीन : नई पत्तियों का पीला या लाल हो जाना। फलू कम या नहीं बनते हैं।
सूरजमुखी : पौधों  के शीर्ष पर वृद्धि सामान्य नहीं होती है और पत्तियाँ मुड़ी-तुड़ी होती है। तने के निचले हिस्से पर छोटे-छोटे भूरे धब्बे बनते हैं।
टमाटर : पौधों की शाखाओं का शीर्ष अंदर की आरे मुड़ जाता है और मृत हो जाता है। पत्तियाँ छोटी एवं टेढी़ -मेढ़ी एवं बदरंग होती है।
नीबू : पत्तियों का टेढ़ा एवं मोटा पड़ना । कच्चे फलो का गिरना एवं फटना। फलो में केन्द्र भाग में गादें जैसा जमा होना बोरान की कमी का सचू क  है।
गोभी/पत्तागोभी : फलू न बनना। तने का खोखला एवं अन्दर से भूरा पड़ना।
लीची :  पत्तियों एवं फलों का आकार घट जाता  है।कच्चे फल गिरते एवं फटते है। फलों में मिठास कम होती है।
आम : कच्चेफलों का गिरना एवं फलों का निचले हिस्से से भूरा पड़ना। फलों में मिठास कम हो जाती  है।
सेब : फलों का अंदर  से भूरा पड़ना। कच्चे फलों  का गिरना बोरान की कमी दर्शाता है।

धान्य, सब्जियों एवं तिलहन वाली फसलां के लिए बोरान की कमी वाले खेतो में 10 कि.ग्राबोरेक्स प्रति हैक्टर का प्रयोग बुवाई से पूर्व करना चाहिए। फलदार वृक्षो में   2 ग्राम बोरेक्स प्रति लीटर के घोल का छिड़काव फूल आने के पूर्व एवं फल बनने के बाद करना चाहिए। बोरेक्स को सर्वदा गरम पानी में घोल ना चाहिए। सूक्ष्म पोषक तत्वों का पत्तियों पर छिड़काव सुबह के समय जिस दिन तजे हवा या अत्यधिक कडी़ धुप न हो पर करना चाहिए।

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