अलूचा (Plum) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

अलूचा की बागवानी पर्वतीय क्षेत्र, घाटी तथा तराई एवं भावर तक सफलतापूर्वक की जाती है। इसकी किस्में  निम्न हैं।

अलूचा

अलूचा की प्रमुख किस्में

पर्वतीय क्षेत्र (मध्य व ऊँचे क्षेत्र के लिए)

शीघ्र तैयार होने वाली– मिथले , फर्स्टप्लम , रामगढ मेनार्ड

मध्य समय मे– सेंटारोज़ा , विक्टोरिया , बरबंकै , न्यूप्लम , रेड ब्यूटी

देर से – मेनार्ड , सतसुमा , मैरीपोजा

घाटी, तराई एवं भावर क्षत्रे -तितरो , जामुनी , फ्ला 1-2

परागकर्ता किस्म – अलूचा की अच्छी फसल के लिए बगीचे में दो तीन किस्मो को एक साथ लगाना चाहिए। घाटी, तराई एवं भावर क्षेत्र के लिए अल्फा अच्छी परागकारक किस्म साबित हुई है।

रापे ण की दूरी एवं विधि

अलूचा की रोपण दूरी तथा विधि आड़ू के समान है। इसकी रोपाई करते समय 20-25 प्रतिशत परागकतार् किस्मो की रोपाई करनी चाहिए या दो-तीन किस्मों को मिलाकर लगाना चाहिए।

उर्वरक एवं खाद

अलूचा में आड़ू के समान उवर्र क एवं गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। उर्वरक की मात्रा छह वर्ष पश्चात् स्थिर कर देनी चाहिए। अलूचा की अच्छी फलत के लिए सूक्ष्म पोषक तत्व जस्ता, सुहागा तथा ताँबे का छिड़काव करना चाहिए। जस्ता 0.5 प्रतिशत, सुहागा 0.3 प्रतिशत तथा ताँबा 0.5 प्रि तशत का छिड़काव अप्रलै /मई माह में करना चाहिए। घाटी, तराई एवं भावर क्षेत्र में उर्वरक का प्रयागे आड़ू के समान करे।

काट-छांट

अलूचा के पेड़ में फल एक वर्ष या इससे अधिक पुरानी स्पर पर आते हैं। साधारणतः इसकी काट-छांट हल्की करनी चाहिए। यूरोपीय अलूचा के पौधे अधिक नहीं फैलते इसलिए फल कलिकाआें के निर्माण हेतु हल्की काट-छांट करनी चाहिए। इसकी जापानी किस्में बहतु अधिक फैलती हैं। अतः इन किस्मों में अधिक काट-छांट करनी चाहिए।

सिंचाई, निराई-गुड़ाई तथा नमी संरक्षण

जहाँ पर पानी की सुविधा उपलब्ध हो वहाँ पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करनी चाहिए। सिंचाई की आवश्यकता छोटे पौधों  को अधिक होती है। इनमें सिंचाई अप्रलै से जनू माह तक खेत  में नमी के अनुसार करते रहना चाहिए। फलदार वर्क्षो में अपै्रल से जून माह तक सिंचाई करें अथवा पलवार द्वारा थालों में नमी का सरं क्षण करें। थालों की गुड़ाई वर्ष में दो बार अवश्य करें। पहली गुड़ाई वर्षा ऋतु की समाप्ति के  बाद तथा दसूरी गुड़ाई उर्वरक तथा गोबर की खाद का प्रयोग करते समय दिसम्बर/ जनवरी माह में करें। थालों को हमेशा खरपतवार से मुक्त रखें।

फसल सुरक्षा 

कीट नियंत्रण

पणर्क चुं न कीट– इसका निदान आड़ू के समान करें।

तना छेदक कीट एवं जड़छदे क कीट– इसका नियंत्रण सेब के समान करना चाहिए।

व्याधि नियंत्रण

लाल पर्ण कुचं न रागे – इसकी राके थाम आड़ू  के समान करें।

गांदे निकलना – इस समस्या का निदान आड़ू  के समान करें।

प्रभावी बिन्दु

  • अलूचा में भी काट-छाटं हल्की करनी चाहिए तथा खुवानी के समान पौधों की सधाई की जाती है। कटे भाग पर चाबै टिया पेस्ट लगायें
  • परागकर्ता किस्मों को 20-25 प्रतिशत लगाना चाहिए।
  • समय पर कीट एवं व्याधि नियंत्रण करें।
  • नमी के संरक्षण हेतु पलवार का प्रयागे करें।
  • जहाँ यातायात के साधन ठीक हो वहीं पर बाग लगायें।

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