औषधीय कृषि – सनाय(Sine) की खेती कैसे करें?

सनाय(Sine) की खेती कैसे करें

साधारण नाम- सनाय
वानस्पतिक नाम- केसिया अंगुस्तिफोलिया

उन्नत किस्म- सोना

सनाय

सनाय

[By Lalithamba from India [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons]

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उपयोग– फलियों के छिलके तथा पत्तियों का उपयोग यूनानी एवं भारतीय चिकित्सा पद्यति में दस्तावर औषधि के रूप में होता है। सम्पूर्ण पौधे में सेनोसाइट पाया जाता है, लेकिन इसकी मात्रा फलियों के छिलकों में 3-4℅ तथा पत्तियों में 1.5- 2.0 होती है।

पौध परिचय– मूलतः: दक्षिणी अफ्रीका का पौधा, बहुवर्षीय झाड़ियों के रूप में मिलता है।

जलवायु– शुष्क ग्रीष्म तथा मध्यम तापक्रम अनुकूल। वातावरण में नमी, अधिक ठंड एवं बरसात इसके लिए प्रतिकूल है।

भूमि- दोमट तथा लेटराइट भूमि जो कम या औषत उपजाऊ हो, मृदा का पी एच 7.0-8.0 हो तो अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।

प्रवर्धन– बीज द्वारा 30 किग्रा/हे.( असिंचित ), 15 किग्रा/हे. ( सिंचित )

भूमि की तैयारी व बुवाई– उत्तर भारत में फरवरी-मार्च तथा दक्षिणी भारत में सितम्बर- अक्टूबर ( असिंचित ) या फरवरी-मार्च ( सिंचित ) में खेत को अच्छी तरह तैयार करके 30 सेमी की दुरी पर हल्की गहरी ( 1.5 सेमी ) कूड़ो में बुवाई करनी चाहिए।

खाद एवं उर्वरक- 50-100:20-50:24-30 किग्रा प्रति हे. नत्रजन,फास्फोरस व पोटास ( तत्व के रूप में ), आधा नत्रजन, पूरा फास्फोरस व पोटास बुवाई से पहले तथा शेष नत्रजन दो बार में बराबर-बराबर मात्रा में पत्तियों की पहली व दूसरी तुड़ाई के पश्चात डालना चाहिए।

सिंचाई- कम सिंचाई चाहने वाली फसल है, अतः आवश्यकतानुसार 2-3 सिंचाई ग्रीष्म ऋतु में उत्तर भारतीय दशाओं में करें।

निराई- सनाय में कम से कम 2 निराई, बुवाई के 40-45 दिनों के अंदर करें।

कटाई/पत्ती चुनाई/तुड़ाई- पहली चुनाई, बुवाई के लगभग 60- 65 दिन बाद दूसरी 90- 110 दिन बाद व तीसरी 135- 150 दिन के अंतर पर कर लेनी चाहिए। तीसरी चुनाई के समय पुरे पौध को काट लें जिसमें फलियां भी होती हैं। पत्तियों तथा फलियों का छिलका अलग- अलग इकट्ठा करें।

प्रसंस्करन व भंडारण– पत्तियों को छाया में सुखाकर ग्रेडिंग कर लेनी चाहिए। इनका भंडारण बोरियों में करें जिसमें नमी न पहुंच सके।

उपज- पत्तियां 8-10 कु.सिंचित, 5-7 कु. असिंचित, फलियों के छिलके 4-5 कु. सिंचित तथा 2-3 कु. असिंचित दशा में प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है।

आय- व्यय– व्यय रु. 15- 20 हजार/हे. आय रु. 40-50 हजार/ हे., शुद्ध लाभ रु. 25,000- 30,000 प्रति हेक्टेयर।

 

 

स्रोत- सीमैप- लखनऊ

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