मसूर की खेती (Split Red Lentil) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

उत्तराखण्ड में मसूर रबी की एक प्रमुख फसल है। मसूर की खेती मे अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

मसूर की खेती

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मसूर के खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ हैं?

मसूर की खेती में बुवाई की जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ जैसे की पूसा वैभव, आई पी एल८१, नरेन्द्र मसूर १, पन्त मसूर ५, डी पी एल १५ ,के ७५ तथा आई पी एल ४०६ इत्यादि प्रजातियाँ हैंI

मसूर की खेती मे बीज की मात्रा

समय से बुवाई                    : 30-40 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर
देर से बुवाई                        : 40-50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर
बडे दाने वाली प्रजाति         : 50-55 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर

मसूर की खेती मे बुवाई का समय एवं विधि

पवर्तीय क्षेत्र में मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बुवाई का उचित समय है। तराई एवं भावर क्षेत्रों में नवम्बर का प्रथम पखवाड़ा उपयुक्त होता है एवं पछेती बुवाई दिसम्बर के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती है। समय से बुवाई करने पर कतार से कतार की दूरी 25 से.मी. तथा विलम्ब से बोने पर 15-20 से.मी. रखनी चाहिए। बुवाई के समय बीज को 2 ग्राम थायरम तथा 1 ग्राम वैविस्टन/कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित करना चाहिए। उपयुक्त राइजोबियम कल्चर द्वारा चने की भॉति बीज उपचार अवश्य करें।

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मसूर की खेती में उर्वरको का प्रयोग

दलहनी फसल होने के कारण प्रारम्भ की अवस्था में 15-20 किग्रा. नत्रजन तत्व प्रति हेक्टर देना आवश्यक है। बाद में जड़ो में उपस्थित जीवाणु इसकी पूर्ति वायुमडंल से कर लेते है। फास्फोरस एवं पोटाश तत्व मृदा परीक्षण के आधार पर दें। यदि ऐसा सम्भव न हो तो 40-50 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 20-30 कि.ग्रा. पोटाश तत्व प्रति हेक्टर की दर से बुवाई से पूर्व अथवा बुवाई के समय दें।

सिंचाई

यदि जाड़े में वर्षा न हो तो पहली सिचांई फूल आने के पहले तथा दूसरी फलियॉ बनते समय अवश्य करें। पानी अधिक मात्रा में नहीं लगाना चाहिए।

मसूर की फसल में खरपतवारो का नियत्रण

मसूर की खेती मे बुवाई से 40-50 दिनों तक खरपतवार नियत्रंण अवश्य करें।  दो निराई पर्याप्त हाती है। खरपतवारनाशी का प्रयागे चने की भॉति करें।

फसल सुरक्षा

मसूर की फसल में लगने वाले कीट

पौधों का रस चूसने वाले कीड़े जैसे मॉहू एवं फली बेधक कीड़ो की रोकथाम के लिए मोनोकोटोफास 36 एस.एल. दवा की 500 मि.ली. मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिडक़ाव करने पर हानि से बचा जा सकता है।

मसूर की फसल में प्रमुख रोग कौन कौन से हैं, उसका नियंत्रण किस प्रकार से करें?

शुरु में सूखा या उकठा रोग के नियत्रंण के लिए कारबेन्डाजिम 1 ग्राम़ + थायरम 2 ग्राम अथवा कार्बोक्सीन 1 ग्राम़ + थायरम 2 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर से बीज का शोधन अवश्य करें। रतुआ रोग के नियत्रंण के लिए मैंकोजेब 2.00 कि.ग्रा. अथवा ट्राइडोमार्फ 80 ई.सी. 500 मि.ली. मात्रा 800 ली. पानी में  घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से 10 दिन के अन्तराल से 2-3 छिडक़ाव करें।

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मसूर की फसल की कटाई एवं मड़ाई का सही समय

भलीभॉति पकी फसल की ही कटाइ करें। मड़ाइ  करने के बाद दानों को इतना सुखा लें कि नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से अधिक न हो ।

गन्ने में मसूर की सहफसली खेती

शरद ऋतु में बोये जाने वाले गन्ने के खेत में इसकी मिली-जुली खेती की जा सकती है।गन्ने की दो कतारों के बीच दो कतारें मसूर की लगाने से करीब 6-8 कुन्तल मसूर की अतिरिक्त पैदावार प्रति हैक्टर प्राप्त की जा सकती है। गन्ने की फसल पर इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है।

मसूर की फसल से प्रति हैक्टर कितनी उपज प्राप्त की जा सकती है?

15-20 कुन्तल प्रति हैक्टर।

2 thoughts on “मसूर की खेती (Split Red Lentil) मे अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु

  1. BIRENDRA Kumar singh says:

    Good agriculture news

    1. agriavenue says:

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