नाशपाती (Pear) के अधिकतम उत्पादन एवं फसल सुरक्षा हेतु ध्यान देने योग्य विशेष बिन्दु।

नाशपाती की खेती ऊंचे पर्वतीय क्षत्रे से लकेर घाटी, तराई एवं भावर क्षेत्र तक की जाती है।

नाशपाती

नाशपाती की मुख्य किस्में

पर्वतीय क्षेत्र (मध्य एवं ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र 1600-2400 मी.)

  • अगेती– थम्वपियर, डा. जूल्स गॉयट, अर्ली चाइना
  • मध्य– व्यूरे  डी अमने लिस, बग्गूगोसा, डायनडेयुकोमिस , विक्टोरिया, कान्फ्रेंस, फ्लेमिस व्यूटी
  • पछेती – विन्टर नेलिस , व्यरूहार्डी , विलियम (वार्टलटे ), मैक्सरेड वार्टलेट, जार्गनेल, पैखम्स ट्रायफ
  • घाटी, तराई एवं भावर– चायनापियर, लिंकान्टे, कीफर, गाले ा, स्मिथ, पत्थरनाख, पतं नाशपाती-17
  • परागकर्ता किस्मे – चायनापियर, गोला  अच्छी फलत के लिए एक ही समय में फूल लगने वाली दो-तीन किस्मों को मिलाकर लगाना चाहिए

रोपण की दूरी एवं विधि

6 मीटर कतार से कतार तथा 6 मीटर पौध  से पौध  की दूरी पर सेब के समान लगाये।

नाशपाती के उत्पादन खाद में एवं उर्वरक का प्रयोग 

पर्वतीय क्षत्रे में खाद एवं उर्वरक का प्रयागे सेब के समान करें। घाटी तथा तराई क्षेत्र के लिए गाबेर की खाद की मात्रा सेब के समान ही देना चाहिए। नत्रजन 50 ग्रा., फास्फोरस 30 ग्रा. तथा पोटाश 50 ग्रा. प्रति पौधा प्रतिवर्ष आयु के अनुसार देना चाहिए। यह मात्रा 10 वर्ष पश्चात् स्थिर कर देनी चाहिए। इसके उपरान्त् 500 ग्रा. नत्रजन, 300 ग्रा. फास्फोरस तथा 500 ग्रा. पोटाश प्रति वृक्ष देना चाहिए। नत्रजन की मात्रा फरवरी में  तथा शेष मात्रा फल बनने  की प्रक्रिया पूरी होने के पश्चात अप्रैल में दी जानी चाहिए। गाबेर की खाद तथा फास्फारे से एवं पोटाश की सम्पूर्ण मात्रा दिसम्बर/जनवरी में देनी चाहिए। उवर्रक मिलाने की विधि सेब के समान अपनाये।

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सिंचाई, निराई-गुड़ाई तथा नमी संरक्षण

सेब के समान ही करे। तराइ एवं भावर क्षत्रे में सिंचाई के साधन उपलब्ध हैं। वहाँ पर फल लग जाने के पश्चात् आवश्यकतानुसार सिचाई करते रहना चाहिए। इसके साथ-साथ निराइ-गुडा़ई द्वारा खरपतवारों को पौधों के थालो से मुक्त रखना चाहिए। थालो की निराई-गुडा़ई दो बार अवश्य करनी चाहिए। पहली दिसम्बर-जनवरी में तथा दूसरी अक्टूबर में करनी चाहिए।

काट-छाँट

नाशपाती में फल पुरानी स्पर पर आते हैं। इसकी काट-छांट सेब के समान करना चाहिए। इसके साथ-साथ पुरानी शाखाओं को निकालते रहना चाहिए।

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नाशपाती की फसल सुरक्षा

कीट एवं रोग नियत्रंण सबे पर लगने वाले कीट एवं रोगों का आक्रमण नाशपाती पर भी होता है। अतः सेब के समान ही फसल सुरक्षा कार्यक्रम अपनाना चाहिए।

प्रभावी बिन्दु

  • काट-छाटं हल्की तथा प्रतयेक वर्ष होनी चाहिए। कटे भाग पर चौबटिया पेस्ट लगाये।
  • परागकर्ता किस्मे को 20-25 प्रतिशत लगाना चाहिए।
  • किस्मो का चुनाव  करते समय ऊँचाई का ध्यान रखना चाहिए।
  • तीन-चार चुनाव को लगाना चाहिए।
  • नमी सरंक्षण हेतु पलवार का प्रयोग करना चाहिए।
  • कीट एवं व्याधि का समय पर नियंत्रण करना चाहिए।
  • सन्ति लत उर्वरक तथा गाबेर की खाद का प्रयोग करना चाहिए।

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