जौ(Barley) की उन्नत प्रजातियाँ , पैदावार कुन्तल/हेक्टेयर एवं विशेषताए|

जौ एक खाद्यान्न एवं औद्योगिक फसल है। इसका उपयागे मानव, पशुओं के चारे व दाने में एवं बियर आदि बनाने में किया जाता है। असिंचित दशा में जौ की खेती गेहूँ की अपेक्षा अधिक लाभपद्र है।

जौ

भूमि एवं जलवायु

अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि में जौ की फसल अच्छी होती है। रेतीली एवं कमजोर भूमि में भी यह सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। जौ जल भराव के प्रति गेहूँ की अपेक्षा अधिक संवेदनशील है। अम्लीय भूमि जौ के लिए अनुपयुक्त है। जौ शीतोष्ण जलवायु की फसल है। गर्म जलवायुवाले क्षेत्रों में इसकी खेती ठंडे (रबी) मौसम में की जाती है। जौ की खेती 6000 मीटर की उँचाई पर की जा सकती है। जौ सूखे के प्रति  गेहूँ से अधिक सहनशील है। जौ की बढ़वार पर पाले का विपरीत प्रभाव पड़ता है।

उन्नतशील प्रजातियां विभिन्न क्षेत्रों एवं परिस्थितियों के लिए जौ की उन्नत प्रजातियां सारणी-1 तथा उत्तराखण्ड हेतु संस्तुत  प्रजातियों का विवरण सारणी-2 में दिया गया है।

भूमि की तैयारी

खरीफ की फसल की कटाई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से एक जुताई तथा बाद में 2-3 जुताई देशी हल या हैरो से करना चाहिए। प्रत्येक जुताई के बाद पटेला लगाए ताकि खते में नमी बनी रहे।

बुवाई का समय

विलम्ब से बोने पर गेहूँ की अपेक्षा जौ में उपज की अधिक हानि होती है। अतः जौ की बुवाई समय पर करनी चाहिए। विभिन्न क्षेत्रों एवं परिस्थितियां हेतु बुवाई का उपयुक्त समय निम्नवत है:

पर्वतीय क्षेत्र

असिंचित– अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा तराई, भावर एवं मैदानी क्षेत्र

असिंचित – 20 अक्टूबर से 7 नवम्बर तक

सिंचित

समय से          – 15 नवम्बर तक
विलम्ब से        – 15 दिसम्बर तक

क्षेत्र सिंचित, समय से बुवाई सिंचित, विलम्बसे बुवाई असिंचित, समय से बुवाई
उत्तर पर्वतीय क्षेत्र बी.एच.एस.169, एच.बी.एल.113, एचबी.एल.276, बी.एच.एस.352, यू.पी.बी.1008, वी.एल.बी.1 एवं वी.एल.बी.56
उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्र डी.डब्लू.आर.यू.बी. 52, आर.डी. 2552, आर.डी. 2035, डी.डब्लू.आर. 28, आर.डी. 2668,आर.डी. 2592, बी.एच. 393,पी.एल. 426 के.329,आर.डी. 2508 आर.डी.2508, आर.डी.2624, आर.डी.2660, पी.एल.419
उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्र के. 508, क.े 551, आर.डी. 2552, एन.डीआर.1173, नरेन्द्र बी-2 के.329,आर.डी.2508 के. ,603, के. 560, जे. बी.58
मध्य क्षेत्र पी.एल. 751, आर.डी. 2035, आर.डी. 2552,आर.डी. 2052 जे. बी.58
प्रायद्वीपीय क्षेत्र बी.सी.यू.73, डी.एल.88
क्षारीय एवं लवणीय भूमि एन.डी.बी. 1173, आर.डी. 2552, डी.एल. 88,नरेन्द्र बी-1 एवं नरेन्द्र बी-3

 

प्रजातियाँ उत्पादकता (कु0/है0) पकने की अवधि (दिनों में)
1. छिलकायुक्त प्रजातियाँ
अ. तराई, भावर एवं मैदानी क्षेत्र असिंचित
आजाद (के-125)
के-141
हरितमा (के-560)
सिंचित
जागृति (के-287)
प्रति (के-409)
ज्योति (के-572/10)
रेखा (बी.सी.यू.-73)
विलम्ब से
ज्योति (के-572/10)
मंजुला (के-329)
28-32
30-32
30-3542-45
40-42
30-35
40-4225-28
28-30
110-115
120-125
110-115125-130
105-112
120-125
120-125120-125
110-115
ब. पहाड़ी क्षेत्र
पी.आर.बी.-502
एच.वी.एल.-113
वी.एल.बी.-1 (असिंचित)
वी.एल.बी.-56 (असिंचित)
वी.एल.बी.-85 (असिंचित)
यू.पी.बी. 1008 (असिंचित)
20-22
20-25
20-22
20-25
15-20
150-155
150-155
165-170
165-170
162-165
155-160
25-28
2. छिलका रहित प्रजातियाँ
अ. तराई व भावर
गीतान्जली (के-1149)
ब. पहाड़ी क्षेत्र
बी.एच.एस.352
25-27

20-25

95-100

165-170

3. माल्टिंग हेतु प्रजातियाँ
प्रगति (के-508)
ऋतुम्भरा (551)
अम्बर (के-71)
रेखा (बी.सी.यू.-73)
35-40
40-45
25-30
40-42
105-110
120-125
120-125
120-125

बीज दर

जौ की बुवाई सीड ड्रिल या हल के पीछे कूडँ में बोने पर बीज दर 80 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर रखना चाहिए। छिड़काव विधि से बुवाई करने पर बीज दर 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर प्रयोग करते हैं। विभिन्न परिस्तिथियों में निम्न बीज दर रखना चाहिएः

परिस्थिति             बीज की मात्रा
असिंचित            100 कि.ग्रा./हैक्टर
सिंचित                80 कि.ग्रा./हैक्टर
विलम्ब से            100 कि.ग्रा./हैक्टर
पर्वतीय क्षेत्र         80-100 कि.ग्रा./हैक्टर

बीजोपचार

गेहूँ की तरह से।

बुवाई की विधि

बुवाई पंक्तियों मेंकरना सवोर्त् तम होता है। विभिन्न परिस्तिथियोंहेतु निम्न बुवाई की विधियाँ अपनानी चाहिएः

परिस्थिति

बुवाई की विधि

असिं चत लाइन से लाइन 20 से. मी. की दूरी पर एवं 5-6 से. मी. की गहराई पर।
सिं चत लाइन से लाइन 20 से. मी. की दूरी पर एवं 5-6 से. मी. की गहराई पर।
विलम्ब से लाइन से लाइन 18-20 से. मी. की दूरी पर एवं 5-6 से.मी. की गहराई पर।

खाद एवं उर्वरक

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुति के अनुरूप करना चाहिए। यदि मृदा परीक्षण नहीं किया गया हो तो विभिन्न दिशाओं में निम्न उर्वरक की मात्रा का उपयोग करना चाहिए।
असिं चत : 40 कि.गा्र . नत्रजन, 20 कि.ग्रा. फास्फारे स एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश/हैक्टर बुवाई के समय लाइनों में बीज के बगल एवं नीचे डाले। अगर उपलब्ध हो तो बुवाई से 10 दिन पूर्व 40 कुन्तल/हैक्टर की दर से सड़ी गोबर की खाद का प्रयागे करे।
सिंचित : 60 कि.ग्रा. नत्रजन, 30 कि.ग्रा. फास्फोरस एवं 20 कि.ग्रा. पोटाश/हैक्टर बुवाई के समय तथा 20 कि.ग्रा./हैक्टर नत्रजन पहली सिंचाई पर टापॅड्रेसिंग के रूप में दे। अगर उपलब्ध हो तो बुवाई से 10 दिन पूर्व 40 कुन्तल/हैक्टर की दर से सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करे।

विलम्ब से एवं पर्वतीय क्षेत्र

40 कि.गा्र . नत्रजन एवं 20 कि.ग्रा. फास्फारे स प्रति हैक्टर प्रयोग करें। अगर उपलब्ध हो तो बुवाई से 10 दिन पूर्व 40 कुन्तल/हैक्टर की दर से सड़ी गोबर की खाद का प्रयोग करे।

जिंक की कमी के लक्षण व उपचार

आजकल जौ की फसल में जिंक की कमी के लक्षण सामान्य रूप से दिखाई पड़ रही हैं।बुवाई से 25-30 दिन पर पत्तियो की शिराओं के मध्य अनियमित धब्बे बनते हैं। ये धब्बे बाद में बड़े होकर मिलते हैं जिससे पत्तियो पर सफदे व हरी चित्तियाँ बन जाती हैं। कमी वाले पौधों की पत्तियो पर बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। नई पत्तियाँ बढ़ती नहीं तथा उनके किनारे सफेद नई पत्तियाँ बढ़ती नहीं तथा उनके किनारे सफेद हो जाते हैं।गेहूँ में बताई गयी विधि द्वारा जिंक की कमी के उपचार करे।

निराई-गुड़ाई तथा खरपतवार नियंत्रण

गेहूँ में बताई गयी विधि के अनुसार करे।

सिंचाई

जौ की फसल में गेहूँ की अपेक्षा कम सिचाईयों की जरूरत होती है। जौ के लिए दो सिंचाईयाँ काफी होती हैं।
प्रथम : बुवाई के 30-35 दिनों के बाद कल्ले निकलते समय।
दूसरा : दुग्धावस्था में।
दुग्धावस्थाकी सिचाईं उस समय करना चाहिए जबकि तजे हवा नही चल रही हो एवं सिचाईं हल्की करना चाहिए क्याेंक इस समय फसल के  गिरने का अंदेशा रहता है। जौ जलभराव के प्रति संवेदनशील है , अतः जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए।

रोग का नाम एवं लक्षण रोकथाम
अनावृत कण्डुआः गेहूँ की तरह गेहूँ की भाँति।
पीला या धारीदार रतुआ: गेहूँ की तरह गेहूँ की भाँति।
काला रतुआः गेहूँ की तरह गेहूँ की भाँति।
भूरा या पत्तों का रतुआः छोटे गोल आकार के पीले-भूरे रंग
के धब्बे पत्तियों पर बनते है जो बाद में काले हो जाते है।
गेहूँ की भाँति।
धारियों वाला रोगः पत्तों पर लम्बी गहरी भूरी लाइनें पड़ जाते है। रोग के लक्षण दिखाई पड़ते ही मैन्कोजेब 2.0 कि.ग्रा./
हैक्टर को 100 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।

कीट नियंत्रण

गेहूँ की फसल की भाँति करे।

रागे नियंत्रण

कटाई एवं मड़ाई

जौ की फसल गेहूँ की फसल की अपेक्षा जल्दी पकती हैं। बालियों के पक जाने पर फसल को जल्द काट लें। खेत में कटी हुई फसल को 2-3 दिन के लिए सूखने छोड़ दे। मड़ाई थ्रेसर से करे। मड़ाई के बाद ओसाई द्वारा दानों की सफाई कर दे।

उपज एवं भण्डारण

उपरोक्त विधि से जौ की खेती करके संचित क्षत्रे में 30-35 कुन्तल/हैक्टर तथा असिं चत क्षेत्र में 20-25 कुन्तल/हैक्टर उपज प्राप्त कर सकते हैं। जौ में भूसा एवं दाने की बराबर मात्रा निकलती है। दानों को 10-12 प्रतिशत नमी तक सुखाकर भण्डारित करते हैं।

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